पितरों के निमित्त श्रद्धा से किया गया कर्म ही है श्राद्ध:डॉ विश्वेश्वरी देवी
पितरों के निमित्त श्रद्धा से किया गया कर्म ही है श्राद्ध:डॉ विश्वेश्वरी देवी
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सचिन शर्मा/प्रमोद गिरि
हरिद्वार। उत्तरी हरिद्वार की प्रख्यात धार्मिक संस्था श्रीराम कृपा धाम की परमाध्यक्ष परम पूज्य साध्वी डॉ विश्वेश्वरी देवी के सानिध्य में श्रीराम कृपा धाम आश्रम के तत्वाधान में हरिद्वार में प्रथम बार मां गंगा जी के तट से पितृपक्ष के विशेष अवसर पर पूर्णिमा से अमावस्या तक 16 दिन पितरों का आह्वान, पूजन, तर्पण, श्रेष्ठ वैदिक आचार्यों के माध्यम से पितृदोष की शांति के लिए और पितरों की कृपा प्राप्त करने के लिए विधिवत विशेष पूजा प्रतिदिन सुबह 9:00 बजे से चल रही है जिसमें आज परम पूज्य साध्वी डॉ विश्वेश्वरी देवी जी ने बताया किशास्त्र का वचन है-“श्रद्धयां इदम् श्राद्धम्” अर्थात पितरों के निमित्त श्रद्धा से किया गया कर्म ही श्राद्ध है। इन सोलह (16) दिनों पितृगणों (पितरों) के निमित्त श्राद्ध व तर्पण किया जाता है। किन्तु जानकारी के अभाव में अधिकांश लोग इसे उचित रीति से नहीं करते जो कि दोषपूर्ण है क्योंकि शास्त्रानुसार “पितरो वाक्यमिच्छन्ति भावमिच्छन्ति देवता:” अर्थात देवता भाव से प्रसन्न होते हैं और पितृगण शुद्ध व उचित विधि से किए गए कर्म से। पितृदोष — वह दोष जो पित्तरों से सम्बन्धित होता है पितृदोष कहलाता है। यहाँ पितृ का अर्थ पिता नहीं वरन् पूर्वज होता है। ये वह पूर्वज होते है जो मुक्ति प्राप्त ना होने के कारण पितृलोक में रहते है तथा अपने प्रियजनों से उन्हे विशेष स्नेह रहता है। श्राद्ध या अन्य धार्मिक कर्मकाण्ड ना किये जाने के कारण या अन्य किसी कारणवश रूष्ट हो जाये तो उसे पितृ दोष कहते है।विश्व के लगभग सभी धर्मों में यह माना गया है कि मृत्यु के पश्चात् व्यक्ति की देह का तो नाश हो जाता है लेकिन उनकी आत्मा कभी भी नहीं मरती है। पवित्र गीता के अनुसार जिस प्रकार स्नान के पश्चात् हम नवीन वस्त्र धारण करते है उसी प्रकार यह आत्मा भी मृत्यु के बाद एक देह को छोड़कर नवीन देह धारण करती है।हमारे पित्तरों को भी सामान्य मनुष्यों की तरह सुख दुख मोह ममता भूख प्यास आदि का अनुभव होता है। यदि पितृ योनि में गये व्यक्ति के लिये उसके परिवार के लोग श्राद्ध कर्म तथा श्रद्धा का भाव नहीं रखते है तो वह पित्तर अपने प्रियजनों से नाराज हो जाते है।समान्यतः इन पित्तरों के पास आलौकिक शक्तियां होती है तथा यह अपने परिजनों एवं वंशजों की सफलता सुख समृद्धि के लिये चिन्तित रहते है जब इनके प्रति श्रद्धा तथा धार्मिक कर्म नहीं किये जाते है तो यह निर्बलता का अनुभव करते है तथा चाहकर भी अपने परिवार की सहायता नहीं कर पाते है तथा यदि वह नाराज हो गए तो इनके परिजनों को तमाम कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है ।