गहन मंथन के बाद ही बढ़ाई जाए कन्या के विवाह की आयु : भारती शर्मा
सचिन शर्मा
हरिद्वार। भारती शर्मा,एसोसिएट प्रोफेसर,अंग्रेजी विभाग,श्री सनातन धर्म प्रकाशचंद कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय रुड़की ने कन्या के विवाह की उम्र 18 से 21 वर्ष करने पर पक्ष एवं विपक्ष में विचार के बिंदु प्रस्तुत किए हैं।
पक्ष के बिंदु
स्वस्थ, सबल व सक्षम नारी भारत देश की प्राथमिकता रही है। विवाह की उम्र 21 वर्ष होने पर मातृत्व मृत्यु दर व शिशु मृत्यु दर में कमी आएगी।शिक्षा, आर्थिक क्षमता व रोजगार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। स्वास्थ्य समस्याओं में कमी आएगी।जनसंख्या वृद्धि में नियंत्रण होगा।गृह क्लेश में कमी व संगठन शक्ति में बढ़ोतरी होगी। कन्या भ्रूण हत्या में कमी होगी। शिक्षित मां भावी पीढ़ियों के लिए हितकारी होगी। अलगाव व तलाक के मामलों में कमी आएगी।
विपक्ष के बिंदु
हिंदुस्तान की 70% आबादी गांव अथवा निम्न वर्ग से संबंधित है जिन्हें विवाह की उम्र 18 से 21 वर्ष होने पर फर्क पड़ता है। अभावपरस्ती, ख़ुदपरस्ती और लव जेहाद के माहौल में एक पिता पर 21 वर्ष तक पुत्री की सुरक्षा व संरक्षण का दायित्व डालना क्या उचित होगा ? साथ ही एक भाग का मानना है कि उम्र बढ़ाना कोई हल नहीं, समाधान - कुपोषण और अशिक्षा को हटाना होना चाहिए |
उक्त विषय के प्रचलन से पूर्व उसके मंथन की आवश्यकता है। ऐसा होने पर लिव इन रिलेशनशिप जैसी परंपरा में इजाफा होगा। दुराचार, व्यभिचार वृद्धि की संभावना है। वोकेशनल ट्रेनिंग से आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करना होगा। देह व्यापार,सरोगेसी एडेप्टेशन के धंधे पैर पसारेंगे। यदि हम 18 वर्ष में अच्छे एथलीट बन सकते हैं तो विवाह के लिए उपयुक्त क्यों नहीं हो सकते? 10 वर्ष की उम्र से माहवारी शुरू हो जाती है। बेटियां कैसे 21 वर्ष तक अपनी शारीरिक जरूरतों को रोक सकेंगी?
उन्होंने समस्त नीर क्षीर विवेकी सुधी पाठकों से अपील की है कि विरोध की राजनीति छोड़कर इस संदर्भ में मंथन करें।