जौ/यव काले तिल एवं अक्षत/चांवल का महत्व एवं लाभ
जौ/यव काले तिल एवं अक्षत/चांवल का महत्व एवं लाभ
सबसे तेज प्रधान टाइम्स गबर सिंह भण्डारी
श्रीनगर गढ़वाल ।आज आपको जौ/तिल/अक्षत चावल के महत्व के बिषय पर जानकारी से अवगत कराते हैं ।जौ, तिल, अक्षत देव तत्वों को सक्रिय कर घर-मन्दिर के वास्तु दोष, कलह-क्लेश का निवारण करने में सहायक होते हैं,जौ, तिल,अक्षत में दुःख दूर करने की भी होती है क्षमता. हिंदू धर्म में जो काले तिल एवं अक्षत का विशेष महत्व है वैसे तो हिंदू धर्म पूजा पाठ आदि मांगलिक शुभ कर्मों पर प्रत्येक वस्तु का अपना अपना विशेष महत्व है लेकिन जो काले तिल एवं अक्षत का धर्म ग्रंथों में विशेष महत्व बताया गया है,अलग-अलग धर्मों के लोग अपने भगवान या इष्ट देव की पूजा अलग-अलग विधान से करते हैं हिंदू धर्म ग्रंथों में सभी देवी देवताओं की पूजा करने की विधियां भी अलग-अलग बताई गई हैं लेकिन लगभग हर देवी देवता की पूजा में अक्षत काले तिल और जो चढ़ाने की परंपरा सदियों पुरानी है जो आज तक चली आ रही है आज आपको /ज्योतिषाचार्य अजय कृष्ण कोठारी/ जो तिल एवं अक्षत के महत्व गुण एवं लाभ के विषय में विस्तार से बता रहे हैं.जौ है ब्रह्म का स्वरूप- धर्मग्रंथों की मानें तो जौ को ब्रह्म माना गया है,कहा जाता है कि आदिकाल से पूजा-पाठ में हवन के दौरान जौ को आहुति देने की परंपरा चली आ रही है,इसके अलावा पूजा-पाठ में इसका सम्मान करने का अर्थ है कि हमें अन्न यानी कि जो ब्रह्म स्वरूप है उसका सम्मान करना चाहिए. सृष्टि की सबसे पहली फसल जौ थी, इसलिए नवरात्रि में भी देवी की उपासना से पहले इन्हें मिट्टी के बर्तन में बोने की परंपरा है. जौ एक पूर्ण फसल होती है. नवरात्र पूजा में केवल जौ बोने का ही महत्व नहीं है, बल्कि यह कितनी तेजी के साथ बढ़ती है, ये भी अहम होता है.
जौ यानी यव अनाजों में सर्व शेष्ठ है. यह सोने के ही समान शुद्ध और खरा है. इसलिए यह उन तमोगुणी वैभव का प्रतीक है, जिनके प्रति मनुष्य जीवन रहते लालायित रहते हैं. इनके प्रति जीवन रहते मोह नहीं कम हो पाता और मृत्यु के बाद भी यह इच्छा अतृप्त ही रह जाती है. तर्पण में जो का प्रयोग पितरों को वैभव की संतुष्टि देता है. इसके साथ ही जौ नकारात्मक शक्तियों को दूर रखता है. इसलिए श्राद्ध पूजन में जौ का प्रयोग किया जाता है.
धर्म शास्त्रानुसार काले तिल से पूजा करना बेहद शुभ माना जाता है. शनि देव की पूजा के दौरान उन्हें प्रसन्न करने के लिए भी काला तिल चढ़ाया जाता है. वहीं पूर्णिमा और अमावस्या के दिन काला तिल दान करना भी बहुत शुभ माना जाता है.
ग्रह दोष करें दूर - ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक अगर कुंडली में ग्रह दोष है, तो इससे करियर और कारोबार में बाधा आती है. इतना ही नहीं इस प्रभाव से प्रभावित व्यक्ति की शारीरिक स्थिति भी ठीक नहीं रहती हैं. अगर कुंडली में शनि दोष है,तो इसके लिए आप काले तिल से उपाय कर सकते हैं. इसके लिए हर शनिवार को जल में तिल मिलाकर अर्घ्य दें. कहते हैं कि इससे हर तरह की समस्या का समाधान हो सकता है.
पितृ दोष -ऐसा माना जाता है कि कभी-कभी पितृ दोष के कारण भी जीवन में समस्याएं बनी रहती हैं. पितृ दोष दूर करने के लिए आप तिल से जुड़े उपाय अपना सकते हैं. इसके लिए अमावस्या और पूर्णिमा के दिन तिल को दान करें. कहा जाता है कि अगर पितृ नाराज रहते हैं, तो जीवन में आर्थिक और शारीरिक दोनों तरह की परेशानियां बनी रहती हैं.
करियर के लिए - कभी-कभी कड़ी मेहनत और लगन के बावजूद लोगों को करियर में वो सफलता नहीं मिल पाती है, जिसकी तलाश में वे अक्सर रहते हैं. करियर में बेहतर मुकाम पाने के लिए काले तिल से जुड़े उपाय शुभ माने जाते हैं. इसके लिए मंगलवार या शनिवार के दिन पीपल के पेड़ पर तेल के साथ काले तिल भी चढ़ाएं. ऐसा करीब 11 मंगलवार या शनिवार को करें.
सूर्य देव को करें प्रसन्न - कुंडली में सूर्य अगर मजबूत हो तो जीवन में सुख एवं समृद्धि भरा माहौल बना रहता है. कुंडली में सूर्य को मजबूत करने के लिए काले तिल से पूजा-पाठ शुरू करें. वैसे इसके लिए स्नान कर तिलांजलि करना शुभ होता है. कहते हैं कि इससे सूर्य मजबूत होता है.
राहु-केतु और शनि से राहत पाने के लिए - यदि आपकी कुंडली में शनि के दोष हों या फिर आपके ऊपर शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या चल रही हो जो प्रत्येक शनिवार नदी के बहते जल में आपको काले तिल प्रवाहित करने चाहिए। ऐसा करने से शनि के दोष में लाभ होता है। काले तिल को दान करने से आपके ऊपर से राहु और केतु के भी दुष्प्रभाव कम होते हैं।
सबसे शुद्ध अनाज - अक्षत/चावल को सबसे शुद्ध अनाज माना जाता है क्योंकि ये धान के अंदर बंद होता है, और कोई पशु-पक्षी इसको झूठा नहीं कर पाते. हिन्दू धर्म में पूजा के दौरान चावल चढ़ाने का विशेष महत्व होता है. ऐसी मान्यता है कि यदि पूजा में कोई सामग्री न हो तो चावल उसकी कमी पूरी कर देता है,हिन्दू धर्म में पूजा के दौरान चावल चढ़ाने का विशेष महत्व होता है, जब भी पूजा की जाती है तो भगवान को अर्पित करने वाला चावल हमेशा साबुत होना चाहिए. टूटे चावल से भगवान की पूजा नहीं की जाती.
अक्षत का अर्थ समझें - अक्षत का भाव पूर्णता से जुड़ा हुआ है. अक्षत यानी जिसकी क्षति न हुई हो. जब भी हम पूजा के दौरान अक्षत चढ़ाते हैं तो परमेश्वर से अक्षत की तरह ही अपनी पूजा को क्षतिहीन यानी पूर्ण बनाने की प्रार्थना करते हैं. उनसे अपने जीवन की कमी को दूर करने और जीवन में पूर्णता लाने के लिए प्रार्थना करते हैं. इसलिए पूजा में हमेशा साबुत चावल ही चढ़ाए जाने चाहिए. अक्षत का सफेद रंग शांति को दर्शाता है.कहा जाता है कि प्रकृति में सबसे पहले चावल की ही खेती की गई थी. उस समय ईश्वर के प्रति अपनी श्रद्धा को व्यक्त करने के लिए लोग उन्हें चावल समर्पित करते थे. इसके अलावा अन्न के रूप में चावल को सबसे शुद्ध माना जाता है क्योंकि ये धान के अंदर बंद रहता है. इसलिए पशु-पक्षी इसे जूठा नहीं कर पाते. जैसा कि भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि मुझे अर्पित किए बिना जो कोई अन्न और धन का प्रयोग करता है, वो अन्न और धन चोरी का माना जाता है. इस तरह अन्न के रूप में भगवान को चावल अर्पित किया जाता है. ये भी माना जाता है कि अन्न और हवन ईश्वर को संतुष्ट कर देता है. इससे हमारे पूर्वज भी तृप्त हो जाते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है.
अक्षत है जीवन का आधार - पितर आत्माओं की तृप्ति के लिए उन्हें अक्षत अर्पण किया जाता है. अक्षत जीवन का आधार है और धन-धान्य का पहला प्रतीक है. पितरों को चावल की खीर अर्पित की जाती है. इसमें मिला हुआ मिष्ठान्न रस का और दूध चेतना का प्रतीक व ,स्त्रोत है. पितर इन्हें पाकर संतुष्ट होते हुए इसी प्रकार परिपूर्ण रहने का आशीर्वाद देते हैं. खीर खाना उनकी हर अतृत्प इच्छा की पूर्ति का संकेत है.
सनातन धर्म के हर कर्म में तिल के बिना कोई काम पूरा नहीं होता. विष्णु को तिल अति प्रिय है इसलिए उनकी पूजा में तिल का प्रयोग आवश्यक है. ज्योतिष में भी तिलों का बड़ा महत्व है, जन्म से मृत्यु तक षट्कर्म में तिल ज़रूरी है. काल गणना याने सूर्य का घटना बढ़ना तिल के अंशानुपात में मापा जाता है. तो चलिये ये जानते हैं तिल का छ: तरह से इस्तेमाल करने से कैसे मिटेगा दुर्भाग्य और कैसे जागेगा सौभाग्य.
माघ कृष्ण ग्यारस को षटतिला एकादशी मनाई जाएगी, इस दिन छ: प्रकार से तिलों का प्रयोग लिए जाने का विधान है इसी कारण इसे षटतिला कहते हैं.
शास्त्र मनुस्मृति के अनुसार षटकर्म में काले तिल और लक्ष्मी कर्म में सफेद तिल इस्तेमाल करने से जल्दी ही आर्थिक लाभ होता है.
गाय के घी में सफ़ेद तिल मिलाकर लक्ष्मी या श्री सूक्त का हवन करने से माता लक्ष्मी की अति शीघ्र कृपा होती है.
मनुस्मृति में तिल को दारिद्रय नाशक कहा है और आयुर्वेद ने तिल को रोग नाशक कहा है.
तिल वात, पित्त व कफ विकार को दूर करके बल व पौरुषशक्ति प्रदान करता है.
राशि अनुसार तिलों से करें खास उपाय दुर्भाग्य को मिटाकर सौभाग्य जगाए.
मेष: मुट्ठी भर काले तिल सिर से 11 बार वारकर पीपल के पेड़ पर चढ़ाएं. - दुर्भाग्य मिटेगा.
वृष: भगवान विष्णु पर तिल-उड़द की खिचड़ी का भोग लगाएं - सर्व मनोकामनाएं पूरी होंगी.
मिथुन: विष्णु मंदिर में तिल गुड से बनी रेवड़ियां चढ़ाएं. - बाधाएं दूर होंगी.
कर्क: दूध में तिल मिलाकर भगवान विष्णु का अभिषेक करें. - वैभव की प्राप्ति होगी.
सिंह: भगवान विष्णु पर चढ़े काले तिल व नारियल गरीब महिला को दान करें. रोगों का निवारण होगा.
कन्या: रोटी पर तिल की तेल लगाकर किसी गरीब बच्चे को खिलाएं. - प्रेम जीवन से कटुता मिटेगी.
तुला: पूजाघर में कर्पूर से काले तिल जलाकर भगवान पर धूप करें. - गृहक्लेश से मुक्ति मिलेगी.
वृश्चिक: भगान विष्णु पर चढ़े काले तिल किस गरीब को दान करें. - संकटों हा निवारण होगा.
धनु: भगवान विष्णु पर चढ़े काले तिल चढ़ाकर शहद के साथ खाएं. - शनिजनित दोषों में कमी आएगी.
मकर: आटे और काले तिल की रोटी काले कुत्ते को खिलाएं. - नजर दोष का निवारण होगा.
कुंभ: भगवान विष्णु के निमित तिल के तेल का ग्यारह मुखी दीपक जलाएं. - आर्थिक संकट दूर होंगे.
मीन: विष्णु पर चढ़े तिल पीले कपड़े में बांधकर किचन में रखें. - धन-धान्य में वृद्धि होगी.!!शुभ मंगलमय हो मां भगवती राजराजेश्वरी की कृपा बनी रहें।
आचार्य अजय कृष्ण कोठारी श्रीमद्भागवत कथा वक्ता ज्योर्तिविद/ग्राम कोठियाडा़,पो.ओ-बरसीर, रुद्रप्रयाग {श्री कोटेश्वर शक्ति वैदिक भागवत पीठ एवं ज्योतिष संस्थान्}उत्तराखंड