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पंचकेदार हिन्दुओं के पाँच शिव मंदिरों का सामूहिक नाम है,ये मन्दिर भारत के देवभूमि उत्तराखण्ड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित हैं

पंचकेदार हिन्दुओं के पाँच शिव मंदिरों का सामूहिक नाम है,ये मन्दिर भारत के देवभूमि उत्तराखण्ड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित हैं

पंचकेदार हिन्दुओं के पाँच शिव मंदिरों का सामूहिक नाम है,ये मन्दिर भारत के देवभूमि उत्तराखण्ड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित हैं                                                   

सबसे तेज प्रधान टाइम्स                                                        गबर सिंह भण्डारी                                                                                                                       श्रीनगर गढ़वाल ।आज आपको देवभूमि में स्थित पंचकेदार मंदिरों से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी से अवगत कराते हैं किंवदन्तियाँ हैं की जिनके अनुसार इन मन्दिरों का निर्माण पाण्डवों ने किया था. इन मन्दिरों में भगवान शिव के विभिन्न अंगों की पूजा की जाती है,

उत्तराखंड के गढ़वाल में प्राकृतिक सौंदर्य को अपने गर्भ में छिपाए हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य सनातन हिन्दू संस्कृति का शाश्वत संदेश देने वाले और अडिग विश्वास के प्रतीक केदारनाथ और अन्य चार पीठों को 'पंच केदार' के नाम से जाना जाता है,तीर्थयात्री सदियों से इन पावन स्थलों के दर्शन पाकर अपने मनोरथ को सिद्ध करते हैं.आज आपको /ज्योतिषाचार्य अजय कृष्ण कोठारी/ पंच केदार के विषय में विस्तृत जानकारी दे रहे हैं.! शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मद्महेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुईं,इसलिए इन चार स्थानों के साथ केदारनाथ धाम को पंचकेदार कहा जाता है,समुद्र की सतह से करीब साढ़े 12 हजार फीट की ऊंचाई पर केदारनाथ मंदिर देवभूमि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है.

उत्तराखंड राज्य को देवभूमि यूँ ही नही बोला जाता हैं, इसके पीछे कई कारण हैं,उन्हीं में से एक कारण हैं यहाँ स्थित पंचकेदार,पंचकेदार का अर्थ हुआ पांच केदार धाम जिनका संबंध भगवान शिव व महाभारत के पांडवों से हैं, ये पंच केदार उत्तराखंड के पहाड़ों पर अलग-अलग जगहों और ऊँचाइयों पर स्थित हैं.

  - हिन्दुओं में निम्नलिखित पाँच केदार माने जाते हैं -

देवभूमि उत्तराखंड गढ़वाल और नेपाल का डोटी भाग में असीम प्राकृतिक सौंदर्य को अपने गर्भ में छिपाए, हिमालय की पर्वत शृंखलाओं के मध्य, सनातन हिन्दू संस्कृति का शाश्वत संदेश देने वाले, अडिग विश्वास के प्रतीक केदारनाथ और अन्य चार पीठों सहित, नव केदार के नाम से जाने जाते हैं,श्रद्धालु तीर्थयात्री, सदियों से इन पावन स्थलों के दर्शन कर, कृतकृत्य और सफल मनोरथ होते रहे हैं.

 केदारनाथ - गिरिराज हिमालय की 'केदार' नामक चोटी पर अवस्थित है, देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में सर्वोच्च केदारनाथ धाम,मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि समुद्र तल से 11746 फीट की ऊंचाई पर केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मंदिर का निर्माण पांडवों ने कराया था,पुराणों के अनुसार केदार महिष अर्थात् भैंसे का पिछला अंग है,मंदिर की ऊंचाई 80 फीट है, जो एक विशाल चबूतरे पर खड़ा है,इस मन्दिर के निर्माण में भूरे रंग के पत्थरों का उपयोग किया गया है,सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह है कि यह भव्य मन्दिर प्राचीन काल में यान्त्रिक साधनों के अभाव में ऐसे दुर्गम स्थल पर उन विशाल पत्थरों को लाकर कैसे स्थापित किया गया होगा? यह भव्य मन्दिर पाण्डवों की शिव भक्ति, उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति तथा उनके बाहुबल का जीता जागता प्रमाण है,मन्दिर में उत्तम प्रकार की कारीगरी की गई है,मन्दिर के ऊपर स्तम्भों में सहारे लकड़ी की छतरी निर्मित है, जिसके ऊपर ताँबा मढ़ा गया है,मन्दिर का शिखर (कलश) भी ताँबे का ही है, मन्दिर के गर्भ गृह में केदारनाथ का स्वयंमभू ज्योतिर्लिंग है, जो अनगढ़ पत्थर का है.!

तुंगनाथ मन्दिर -तृतीय केदार के रूप में प्रसिद्ध तुंगनाथ मंदिर सबसे अधिक समुद्र तल से 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है,यहाँ भगवान शिव की भुजा के रूप में पूजा-अर्चना होती है,चंद्रशिला चोटी के नीचे काले पत्थरों से निर्मित यह मंदिर हिमालय के रमणीक स्थलों में सबसे अनुपम है,मन्दिर स्वयं में कई कथाओं को अपने में समेटे हुए है,कथाओं के आधार पर यह माना जाता है कि जब कुरुक्षेत्र के मैदान में पांडवों के हाथों काफ़ी बड़ी संख्या में नरसंहार हुआ, तो इससे भगवान शिव पांडवों से रुष्ट हो गये,भगवान शिव को मनाने व प्रसन्न करने के लिए पांडवों ने इस मन्दिर का निर्माण कराया,इस मन्दिर को 1000 वर्ष से भी अधिक पुराना माना जाता है,यहाँ भगवान शिव के 'पंचकेदार' रूप में से एक की पूजा की जाती है,ग्रेनाइट पत्थरों से निर्मित इस भव्य मन्दिर को देखने के लिए प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में हज़ारों तीर्थयात्री और पर्यटक यहाँ आते हैं.!

रुद्रनाथ मन्दिर - यहाँ भगवान शिव के बैल रूपी अवतार की मुखाकृति प्रकट हुई थी,इसलिए यहाँ उनके मुख की पूजा की जाती हैं,यह उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित हैं,यह मंदिर समुद्र तल से 2286 मीटर की ऊंचाई पर एक गुफ़ा में स्थित है, जिसमें भगवान शिव की मुखाकृति की पूजा होती है,रुद्रनाथ के लिए एक रास्ता उर्गम घाटी के दमुक गांव से गुजरता है,लेकिन बेहद दुर्गम होने के कारण श्रद्धालुओं को यहाँ पहुँचने में दो दिन लग जाते हैं, इसलिए वे गोपेश्वर के निकट सगर गांव होकर ही यहाँ जाना पसंद करते हैं.!

मद्महेश्वर - चौखंभा शिखर की तलहटी में 3289 मीटर की ऊंचाई स्थित मद्महेश्वर मंदिर में भगवान शिव की पूजा नाभि लिंगम् के रूप में की जाती है,पौराणिक कथा के अनुसार नैसर्गिक सुंदरता के कारण ही शिव-पार्वती ने मधुचंद्र रात्रि यहीं मनाई थी,मान्यता के अनुसार यहाँ का जल इतना पवित्र है कि इसकी कुछ बूंदें ही मोक्ष के लिए पर्याप्त मानी जाती हैं.!

कल्पेश्वर मन्दिर - यहाँ भगवान शिव की जटा की पूजी जाती हैं,कहते हैं कि इस स्थल पर दुर्वासा ऋषि ने कल्प वृक्ष के नीचे घोर तपस्या की थी,तभी से यह स्थान 'कल्पेश्वर' या 'कल्पनाथ' के नाम से प्रसिद्ध हुआ,इसके अतिरिक्त अन्य कथानुसार देवताओं ने असुरों के अत्याचारों से त्रस्त होकर कल्पस्थल में नारायणस्तुति की और भगवान शिव के दर्शन कर अभय का वरदान प्राप्त किया था,श्रद्धालु 2134 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कल्पेश्वर मंदिर तक 10 कि.मी. की पैदल दूरी तय कर उसके गर्भगृह में भगवान शिव की जटा जैसी प्रतीत होने वाली चट्टान तक पहुँचते हैं,गर्भगृह का रास्ता एक प्राकृतिक गुफा से होकर है.

पंच केदार की कथा है कि महाभारत युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे , केदारनाथ धाम के साथ-साथ चार स्थान और हैं, जो पंच केदार कहलाते हैं, देवभूमि उत्तराखंड में पंच केदार भगवान शिव के पवित्र स्थान हैं, यहां भगवान शंकर के विभिन्न विग्रहों की पूजा होती है.

पंच केदार का वर्णन स्कंद पुराण के केदारखंड में स्पष्ट रूप से वर्णित है,पंच केदार में प्रथम केदार भगवान केदारनाथ हैं, जिन्हें बारहवें ज्योर्तिलिंग के रूप में भी जाना जाता है,द्वितीय केदार मद्महेश्वर हैं,तृतीय केदार तुंगनाथ,चतुर्थ केदार भगवान रुद्रनाथ और पंचम केदार कलेश्वर हैं,पंच केदार की कथा है कि महाभारत युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे,वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, पांडव भगवान शिव को खोजते हुए हिमालय पहुंचे, भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे अंतरध्यान होकर केदार में जा बसे,पांडव उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच गए,भगवान शंकर ने बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं के बीच चले गए,पांडवों को संदेह हुआ तो भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर लिया,भीम ने दो पहाड़ों पर पैर फैला दिए,अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए पर भगवान शंकर रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए, भीम बैल पर झपटे तो बैल भूमि में अंतरध्यान होने लगा, तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति और दृढ़ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए, उन्होंने दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया,उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं,माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतरध्यान हुए तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ,अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है,शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मद्महेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुईं, इसलिए इन चार स्थानों के साथ केदारनाथ धाम को पंचकेदार कहा जाता है.!!शुभ मंगलमय हो भगवान केदारनाथ प्रभो की कृपा बनी रहें। आचार्य अजय कृष्ण कोठारी श्रीमद्भागवत कथा वक्ता ज्योर्तिविद/ग्राम कोठियाडा़,पो.ओ-बरसीर, रुद्रप्रयाग {श्री कोटेश्वर शक्ति वैदिक भागवत पीठ एवं ज्योतिष संस्थान्}उत्तराखंड



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