शारदीय कांवड़ है प्राचीन कांवड़ परंपरा
शारदीय कांवड़ है प्राचीन कांवड़ परंपरा
[अब सावन में उमड़ती है कांवड़ियों की भीड़]
सबसे तेज प्रधान टाइम्स
-कुमार दुष्यंत
हरिद्वार।हरिद्वार में फाल्गुनी कांवड़ मेला इस समय चरम पर है।अगले दो दिन मेले के भीड़भाड़ वाले दिन रह सकते हैं।इस मेले में यूपी के विभिन्न जिलों के कांवड़िए आमतौर पर जल लेने हरिद्वार पहुंचते हैं हालांकि कांवड़ का यही मेला प्राचीन कांवड़ मेला माना जाता है। क्योंकि शिवरात्रि केवल फागुन में ही आती है।हरिद्वार वर्ष में दो बार सावन और फागुन में लगने वाले कांवड़ मेले में आजकल चल रही फाल्गुनी कांवड़ ही प्राचीन कांवड़ परंपरा है। हालांकि वक्त के साथ साथ अब इसका स्वरूप भी बदल गया है।एक वक्त इस मेले में बुजुर्गों का ही आगमन रहता था लेकिन अब सावन कांवड़ मेले की भांति फागुनी कांवड़ मेले भी युवाओं की संख्या बढ़ने लगी है।हरिद्वार में वर्ष में दो बार जुलाई और आजकल यानि फरवरी माह में कावड़ मेला लगता है। हालांकि भीड़ के कारण सावन के कांवड़ मेले को ही प्रमुख कांवड़ मेला माना जाता है लेकिन आजकल चल रही फागुनी कावड़ ही प्राचीन कांवड़ परंपरा है। एक वक्त तक यही कांवड़ मेला कांवड़ का मुख्य मेला था। जिसमें देहात से श्रद्धालु कांवड़िए हरिद्वार आया करते थे। जबकि सावन के कांवड़ मेले में केवल दिल्ली, हरियाणा आदि क्षेत्रों से शहरी लोग कांवड़ लेने आया करते थे। तब सावन के कांवड़ मेले में कम भीड़भाड़ रहा करती थी। लेकिन राममंदिर आंदोलन गर्माने के बाद से सावन के कांवड़ मेले में युवाओं का आगमन बढ़ने लगा। जिसके बाद अब सावन का कांवड़ मेला ही कांवड़ का प्रमुख मेला माना जाने लगा है। आजकल चल रहा कांवड़ मेला एक वक्त तक विशुद्ध भक्तिभाव का ही मेला बना रहा। हालांकि अब इस मेले में भी युवाओं के बढ़ने से इसका स्वरूप भी अब पहले सा नहीं रह गया है।कभी फागुन के कांवड़ मेले में देहात के विशुद्ध भक्ति भाव से ओतप्रोत व प्रायः वृद्ध व प्रौढ़ कांवड़िए ही हरिद्वार पहुंचा करते थे। तब सजावटी आधुनिक कांवड़ों का चलन नहीं था और बांस तथा टोकरियों की हाथ से बनी कांवड़ों में ही कांच से बनी छोटी छोटी शीशियों जिन्हें सागर कहा जाता था उनमें जल भरकर ले जाया जाता था। तब कांवड़िए शहरी मार्गों और सड़कों की अपेक्षा जंगलों के रास्ते वापसी किया करते थे। तब इस मेले में विशुद्ध आस्थावान लोग ही कावड़ लेने हरिद्वार आया करते थे जो घरों से कांवड़ के लिए निकलने के बाद से वापस जलाभिषेक तक कड़े धार्मिक नियमों का पालन किया करते थे। मेले के दौरान हरिद्वार के आश्रम धर्मशालाएं, गंगा घाट कावड़ियों की राग-रागनियों व चौपाइयों से गुंजायमान रहा करते थे।अब इस मेले में बढ़ते युवाओं और घटते बुजुर्ग कांवड़ियों के कारण राग रागनिया भी इस मेले से लुप्त हो गई हैं। इसका स्थान अब फिल्मी धुनों पर डीजे में बजते कानफोडू संगीत ने ले लिया है। हालांकि सावन के कांवड़ मेले के मुकाबले शारदीय कांवड़ में बहुत कम कांवड़िए जल लेने हरिद्वार पहुंचते हैं। फागुनी कांवड़ में महज बीस-पच्चीस लाख तक ही कांवड़िया आता है जबकि सावन के कांवड़ मेले में यह संख्या करोड़ों में पहुंच जाती है।
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शिवरात्रि का जल इसबार 18 और 19 दोनों दिन चढ़ाया जा सकेगा। ज्योतिषविद् डा.प्रतीक मिश्रपुरी के अनुसार रात्रि की चार पहर पूजा 18 फरवरी को की जा सकेगी। त्रियोदशी 18 में रात आठ बजे सम्पन्न हो जाएगी। तत्पश्चात चतुर्दशी आरंभ हो जाएगी जो 19 में शाम सवा चार बजे तक रहेगी। त्रियोदशी और चतुर्दशी दोनों दिन जलाभिषेक किया जा सकेगा।
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