शास्त्रों में गंगा का महात्म्य विषय पर गंगा सभा ने किया संगोष्ठी का आयोजन
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मनीषा सूरी /पीयूष सूरी
हरिद्वार। " माँ गंगा के तट भारत के विभिन्न शहरों में स्थापित वह तीर्थस्थल हैं, जहाँ हमारे अनेक ऋषि-मुनियों ने सैकड़ों वर्षों तक कठोर तप-साधना की है और ऐसी कठिन साधना के ज्ञानरूपी फल को उन्होंने केवल भारत ही नहीं, बल्कि, विश्व के लोगों के मध्य वितरित किया है। इनमें भी हरिद्वार के कनखल के गंगा तट को तो महाकवि कालिदास तक को आकर्षित किया है, जिसका उन्होंने अपने 'मेघदूत' नामक महाकाव्य में भी वर्णन किया है।"
माँ गंगा के विषय में अपने उपरोक्त उद्गार पतंजलि विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति डा. महावीर प्रसाद ने आज गंगा सभा, हरिद्वार द्वारा हर की पैड़ी पर स्थित अपने कार्यालय पर गंगा दशहरे की पूर्व संध्या के अवसर पर 'शास्त्रों में गंगा का महात्म्य' विषय पर आयोजित एक विचार संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए व्यक्त किए। गोष्ठी में गंगा सभा के शीर्ष पदाधिकारियों के अतिरिक्त, अनेक शिक्षा शास्त्रियों, साहित्यकारों, विद्वानों और काव्य रचनाकारों ने अपनी-अपनी विधाओं में अपने विचार व्यक्त में मां गंगा के महात्मा पर अपने विचार रखे। कार्यक्रम की अध्यक्षता गंगासभा के अध्यक्ष नितिन गौतम ने की। चेतना पथ के संपादक अरुण कुमार पाठक ने कार्यक्रम का कुशल संचालन किया। कार्यक्रम में गंगासभा द्वारा सभी अतिथियों व वक्ताओं का स्वागत का अंगवस्त्र, श्रीगंगा प्रसाद तथा गंगाजली भेंट करके सम्मान किया गया।
मुख्य वक्ता राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त गुरुकुल महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डा. हरि गोपाल शास्त्री ने माँ गंगा के अवतरण का विस्तार से वर्णन किया। डा. उत्तराखण्ड शिक्षा विभाग की पूर्व निदेशक श्रीमती पुष्पा रानी वर्मा ने गंगा की महिमा का वर्णन करते हुए कहा, कि 'गंगा है तो जीवन है क्योंकि जल ही जीवन का पर्याय है यही कारण है कि गंगा और गंगाजल न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में पूजनीय है।" विशिष्ट अतिथि एवं उत्तराखंड संस्कृत एकेडमी के शोध अधिकारी डा. हरिश्चंद्र गुरुरानी, अध्यात्म चेतना संघ के संस्थापक एवं संचालक आचार्य करुणेश मिश्र, उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति डा. दिनेश चन्द्र शास्त्री, जगदेव सिंह संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य डा. राजेंद्र प्रसाद गौनियाल उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के व्याकरण विभाग के अध्यक्ष डा. शैलेश तिवारी ने भी शास्त्रों में माँ गंगा के महत्व पर अपने विचार रखे। अधिकतर विद्वानों ने हरिद्वार में गंगा शोध संस्थान की स्थापना पर बल दिया और कहा कि यह शोध संस्थान पूरे विश्व के लिए अध्यात्म का मार्ग प्रशस्त करने वाला होगा। अरुण कुमार पाठक ने कहा कि, "माँ गंगा की शास्त्रों में इतनी महिमा गाई गयी है, कि भगवान ब्रह्मा चतुर्मुखी होने के बावजूद उसका बखान करने में असमर्थ हैं।
गंगासभा अध्यक्ष नितिन गौतम ने कहा कि, "गंगासभा की विद्वत परिषद में हरिद्वार में एक ऐसा गंगा विद्यापीठ स्थापित करने का निर्णय लिया है, जिसमें गंगाजी से संबंधित समस्त इतिहास, चित्र, वृत्तचित्र, पुस्तकें तथा सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण अन्य सभी सामग्री उपलब्ध होगी।" उन्होंने यह भी कहा कि, हरिद्वार और हर की पैड़ी के इतिहास तथा उससे संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियों से संबंधित एक पुस्तक का प्रकाशन भी गंगासभा शीघ्र करना चाहती है। महामंत्री पं. तन्मय वशिष्ठ ने कहा कि, "श्री गंगासभा, हरिद्वार अब प्रतिमाह विभिन्न विषयों का चयन कर इसी प्रकार की विचार गोष्ठियों का आयोजन करने की योजना बना रही है। साथ ही इन गोष्ठियों में व्यक्त किये जाने वाले विचारों को प्रकाशित कर प्रचारित भी किया जायेगा।" उन्होंने आगे बताया की गंगासभा की विद्वत परिषद् सभी विद्वानों की सहमति से यह भी प्रयास करेगी कि आने वाले समय में हिन्दुओं के सारे पर्व त्यौहार सर्वसम्मति से कम से कम हरिद्वार में एक ही दिन मनाये जायें।
डा. सुशील कुमार त्यागी 'अमित' ने 'पतित पावनी मोक्षदायिनी माँ गंगा की है जलधार, पापनाशिनी प्राणदायिनी, करती है जग का उद्धार' और कंचन प्रभा गौतम ने ' पतित पावनी हे गंगा मां है अमृत तेरा नीर समझ सका ना कोई जग में तेरे मन की पीर' काव्य रचनाएं प्रस्तुत करके माँ गंगा का गुणगान किया। गंगासभा के महामंत्री तन्मय वशिष्ठ ने सभी अतिथिगण का धन्यवाद ज्ञापन किया।
कार्यक्रम में उज्जवल पंडित,सिद्धार्थ चक्रपाणी, प्रमोद वर्मा,कवियत्री कल्पना कुशवाहा,डा. अजय पाठक सहित गंगा सभा के अनेक सदस्य व पदाधिकारी उपस्थित थे।