गंगनहर ना होने से गढवाल व कुमाऊँ का विकास अधूरा
प्रशान्त भाटिया
सबसे तेज प्रधान टाइम्स
कोटद्वार - उत्तराखण्ड देवभूमि के मुख्य दो द्वार हरिद्वार व कोटद्वार जहाँ से चार धाम यात्रा में जाने के लिए इन्हीं दो द्वारों से पहला कदम रखा जाता है तो वहीं दूसरी ओर आज तक लालढांग से रामनगर तक गंगनहर नहीं बनायी गयी यदि गंगनहर बनायी भी गयी है। तो वह उत्तर प्रदेश से अलग हुए उत्तराखण्ड के बजाए उत्तरप्रदेश के अधीन हो गयी है। यदि गढवाल के लालढांग से लेकर कुमाऊँ के रामनगर तक लगभग 90 किलोमीटर की गंगनहर बनायी जाए तो इस गंगनहर से सटे कई ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों का विकास होना संभवतः तय है। गंगनहर के बन जाने से जहाँ एक ओर क्षेत्र का वाटर लेवल बढेगा तो वहीं दूसरी ओर राजाजी नेशनल पार्क व टाइगर नेशनल पार्क के पशु पक्षियों को आसानी से ग्रीष्म काल में भी पानी उपलब्ध हो सकेगा। अक्सर ग्रीष्म काल में कई स्रोत के सूख जाने की कमी से पशु पक्षी मर जाते हैं तो उन्हें भी पानी की प्राप्ति से जीवन मिल सकेगा। विकास की दृष्टि से देखा जाए तो नहर के आ जाने से कई हेक्टेयर बंजर पडी भूमि उपजाऊ हो सकेगी ,उद्योगिक क्षेत्रों को पानी की भरपूर मात्रा मिल सकेगी, ऊपरी पहाडी क्षेत्रों से मृतक लोगों को हरिद्वार ले जाने के बजाए आस-पास के क्षेत्रों में बने मुक्ति धाम मे ही मुख अग्नि देने के पश्चात अस्थियों का विसर्जन भी किया जा सकेगा। जहाँ राज्य सरकार भरत की जन्म भूमि जिससे हमारे देश का नाम भारत वर्ष पडा है उसके विकास के लिए लगातार प्रयास कर रही है तो वहीं यदि यहाँ नहर आ जाती है तो राज्य सरकार द्वारा कण्वाश्रम के विकास के लिए किये जा रहे प्रयासों को भी लाभ मिल सकेगा।