मुक्तिदाता विद्या : एम.एस.रावत
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गबर सिंह भण्डारी
श्रीनगर गढ़वाल। विद्या वह धन है,जिसे प्राप्त करने पर ज्ञान वर्धन हो जाए उसे मुक्त कर देती है,प्रत्येक व्यक्ति का दुःख,बुढ़ापा,बीमारी,मृत्य, पराजय,अपमान,आदि से मुक्ति प्राप्त करना चाहता है और उसके लिऐ निरंतर प्रयास भी करता है,सुख,समृद्धि,यस उन्नति,स्वास्थ्य,बजाय आदि प्राप्त करने के लिए,तरह-तरह की विद्याओं का अध्ययन शोध करके ज्ञानार्जन करता है,वह भाषा,गणित,भूगोल,खगोल,ज्योतिष,नीतिशास्त्र,सदृष्य असंख्य विद्याओं का अध्ययन करता है,किंतु इन विध्याओं को प्राप्त कर लेने पर उसे सुख दुःख, जन्म मृत्यू,आदि सांसारिक द्वंद्वों से मुक्ति मिल सकती है?उत्तर नकरात्मक ही है,तो वह विद्या कौनसी है,जिससे मुक्ति मिलती है?
संसार में वेद ही एक मात्र वह विद्या है,जिससे प्राप्त कर लेने पर मुक्ति मिल जाती है,वेद अ पौरुषयं है,यह पुस्तक नही यह विद्याज्ञान है,जिस प्रकार पृथ्वी की गुरुत्व क्रषण शक्ति अपौरुष यां है,उसे किसी ने बनाया नही है,वह न्यूटन के पहले भी थी बाद में भी है,न्यूटन केवल ने केवल उसे जान लिया था,उसका साक्षात्कार कर लिया था,उसको बनाया नही था,इसी प्रकार सहस्त्रों वर्ष पूर्व से ऋषिवेद को जानने का प्रयास करते रहे,पंचमहाभूतों से निर्मित इस संसार के तरह तरह के बंधनों से मुक्ति दिलाने वाली विद्या का साक्षात्कार करके वे अपने शिष्यों को मौखिक रूप से उसे हस्तांतरित कर देते थे,लेकिन वे स्पष्ट से यह बतला देते थे कि जो कुछ तुमने हमसे सुना है,वह अन्तिम नहीं है,वेद अनंत हैं,अत:तुम स्वयं अपने ढंग से उसका साक्षात्कार करो,सुन-सुन कर वेद अगली पीढ़ियों को प्राप्त हो रहा था इस लिऐ वेदो श्रुति भी कहते हैं,अनेक ऋषियों ने सहस्त्रों वर्षों तक इसी प्रकार मुक्ति प्रदान करने वाली विद्या अर्थात वेद को स्वयं प्राप्त किया और मौखिक रूप से पढ़ाया,फिर एक द्वीप में कृष्ण नाम के ऋषि का जन्म हुआ,द्वीप में पैदा होने से उनका नाम कृष्ण द्वैपायन कहते हैं, उन्होंने अपने पूर्ववर्ती ऋषियों द्वारा प्राप्त किए गए वेद के ज्ञान को व्यास रूप मे अर्थात विस्तार से चार भागों में सहिंता वद्ध किया,वेद के चार भागों के नाम हैं,ऋग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद,और अथर्ववेद,पूर्ववर्ती ऋषियों द्वारा प्रदत्त वेद के ज्ञान को व्यास रूप में संहिताबद्ध करने के कारण ही श्रीकृष्ण द्वैपायन,महऋषि वेदव्यास के नाम से प्रस्तुत हुआ है,इन्ही महऋषि वेदव्यास ने वेद को जन-जन तक पहुंचाने के लिऐ न केवल पंच वेद के नाम से विख्यात महाभारत की रचना की, वरन श्रीमद्भागवत समेत अठारह पूर्ण भी सरल संस्कृत भाषा में लिखे,यद्धपि हमारे पास ऋग्वेद, यजुर्वेद,सामवेद,अथर्ववेद,के रूप में चार महान ग्रंथ हैं,किंतु इन चारों का विषय वस्तु एक ही है,मुक्तिदायिनी विद्या का ही ज्ञान प्राप्त करना है।