लकड़ी के अभाव में राजकीय मौन पालन केन्द्र नहीं बन पा रहा भारतीय मौन, एपिस इण्डिका के बक्से जरूरतमंद परेशान
सुरेश तिवारी
सबसे तेज प्रधान टाइम्स
उत्तराखंड सरकार की मौन पालन के क्षेत्र में चलाई जा रही योजना के बाद भी मौन पालकों को मधुमक्खी के बक्से व उपकरण सुलभ नहीं हो पा रहे हैं जिस कारण मौन पालन व्यवसाय प्रभावित हो रहा है खासतौर से भारतीय मौन एपीस इंडिका को पालने के लिए भारतीय मौन बॉक्स सुलभ नहीं हैं। राजकीय मौन पालन केन्द्र ज्योलिकोट में भी यह बी हाइव उपलब्ध नहीं हैं। मौन पालन केंद्र से संपर्क करने पर ज्ञात हुआ कि उनको लकड़ी उपलब्ध न होने से बक्से नहीं बनाए जा सके हैं। विदित हो कि यहां अच्छी खासी तनख्वाह प्राप्त कर रहे मोन बॉक्स बनाने वाले कारीगर भी खाली बैठे हैं ।
आपको बताएं कि मौन पालन से बागवानी में 40 से 60% तक की वृद्धि होती है वहीं शुद्ध मधु सेवन से व्यक्ति निरोग रहते हुए तन्दुरूस्त बना रहता है। हनी बी से प्राप्त मोम भी पालिस, मसाज, फिजियोथेरेपी सहित मेडिकल कार्यो में प्रयोग किया जाता है।
लॉकडाउन पीरियड से खाली पड़े युवाओं व युवतियों के लिए रोजगार का सबसे सस्ता और उत्तम साधन मौन पालन है। ऐसे समय में सख्त जरूरत है कि विभागीय अधिकारियों व राज्य सरकार के संबंधित मंत्री को इस ओर विशेष रूचि दिखानी चाहिए,ताकि उद्यमी लाभान्वित हो और उसकी रुचि इस बहुउपयोगी व्यवसाय में लगी रहे। संसाधनों के अभाव में कोई उद्यम ठीक से चल नहीं सकता।
विदित हो कि पर्वतीय क्षेत्रों में मार्च अप्रैल माह में मौन वंशों की वृद्धि होती है, और इस समय एक शक्तिशाली मौन वंश से दो और दो से अधिक वंश बनाए जा सकते हैं, ऐसे समय में जब मौन पालक को को इंडिका के बक्से सुलभ नहीं होंगे तब कैसे संभव है कि मौन पालन उद्योग को बढ़ावा दिया जा सकेगा। अफसोस इस बात का भी है कि इस क्षेत्र में तमाम एनजीओ भी काम कर रही हैं और किसी ठेकेदार को भी बक्से बनाने का पूरे राज्य का ठेका दिया गया है उसके बाद भी बक्सों का अभाव अपने आप पर संबंधित विभागों पर प्रश्नचिन्ह छोड़ता है। मौन पालकों को मौन वंश मौन बाक्स के अलावा अन्य उपकरणौं जिनमें शिशु खंड और मधु खंड के फ्रेम, तलपटबाटम व ढक्कनों,मुंह जाली की जरूरत पड़ती है, परंतु इन सब का अभाव बना हुआ है। ऐसे में तमाम दूरदराज क्षेत्रों के मौन पालक भी प्रभावित हुए हैं । सरकार से मिलने वाले मौन बॉक्स में कीमतों में कुछ छूट भी है इसके साथ ही बाजार से मौन वंश या मौन बॉक्स क्रय करने पर भारी भरकम रकम खर्च करनी पड़ती है । मौन वंश का निर्माण आम कारीगरों के बस का भी नहीं है। बहुत ही दक्ष कारीगर और मौन पालन के बारे में सूज-बूछ रखने वाले व्यक्ति ही इन कामों को निपुणता के साथ कर सकते हैं। भारतीय मौन बॉक्स बहुत ही वैज्ञानिक तरीके से बनाया जाता है मौन बक्से के निर्माण में थोड़ा भी चूक होगी तो आधुनिक तकनीक से मौन पालन करने में बहुत दिक्कत आती हैं। बॉक्स निर्माण करते समय एक-एक सूत का अन्तर बहुत मायने रखता है । फ्रेम की बीच की दूरी तलपट और शिशु खंड की दूरी इनर कवर और शिशु खंड की दूरी इनर कवर और ढक्कन की दूरी के अलावा शिशु खंड और मधु खंड के फ्रेम उनकी बनावट और उनकी दूरी इस व्यवसाय में बहुत मायने रखती है । ज्योलिकोट स्थिति राजकीय मौन पालन केंद्र में बनने वाले भारतीय मौन बक्से अच्छे और कुशल कारीगरों द्वारा बनाए जाते हैं। हालांकि अब मौन बॉक्स निर्माण में ज्योलिकोट मौन पालन केंद्र का भी काम उतना अच्छा नहीं जितना आज से 30 वर्ष पूर्व था, बहुत ही विधि विधान से इन बक्सों का निर्माण यहां किया जाता था। तत्कालीन समय में खादी एवं ग्रामोद्योग कमीशन सहित उद्यान विभाग मौन केेअलावा और कई मौन पालक इस बात पर पूरी निगरानी रखते थे मौन बक्स में कोई कमी न रहे। उस समय ऐसे मौन पालक थे जो उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी इस और रुचि रखते थे। आज की तारीख में स्वरोजगार का सबसे अच्छा साधन मौन पालन है । इस कार्य में बहुत अधिक समय भी नहीं लगता और घरेलू तथा अन्य काम के साथ मौन पालन का काम कुटीर उद्योग के रूप में घर-घर में किया जा सकता है। इस कार्य से मनुष्य प्रकृति को करीब से देखने के साथ-साथ शुद्ध मधु प्राप्त करता है जिसके सेवन से वह रोग रहित और चिरायु रहता है। इसके साथ ही खेती बाड़ी मैं भी अत्यधिक वृद्धि होती है मौन पालन एक बहुआयामी उद्योग है । सरकार को इस कार्य को हल्के में न ले कर मौन पालन के क्षेत्र में काम रहेे लोगों को तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराकर उनको प्रेरित करना होगाा।