लाखों घर हो गए तबाह* अभिनव आशु
सबसे तेज प्रधान टाइम्स
गौरव अरोड़ा
आज मैं यह लेख लिखने में मजबूर हो गया हूं और यह सिर्फ यह एक लेख नहीं है बल्कि यह एक ऐसा दर्द है जिन्होंने लाखों घर तबाह कर दिए है। बर्बाद हो गए हैं वह लोग जिनके घर में इस प्रकार के झूठे मुकदमे दर्ज होते हैं। उन परिवारों को ना तो किसी प्रकार की कोई मदद मिलती है ना ही कोई उनके दर्द में शरीक होता है। यह दर्द ना जाने एक कांटे का पौधा बनकर धीरे-धीरे बड़ा होता है और उस पुरुष के जीवन को क्षतिग्रस्त कर देता है। ना तो वह पुरुष अपना मुंह दिखा पाता है ना ढंग से नौकरी कर पाता है ना ही किसी तरह का कोई सामाजिक कार्यों में उनको रुचि होती है। झूठे मुकदमे की वजह से अपने माता पिता को अपने बहन भाइयों को अपने निजी संबंधी को खुद को खो देते हैं उनके लिए आज कोई भी नहीं है। एक झूठी कंप्लेंट उनको तबाह करने के लिए काफी है। हम हर वर्ष 96000 से ज्यादा पुरुषों को खोते हैं और यह पुरुष मानसिक उत्पीड़न और शारीरिक उत्पीड़न की वजह से आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। किसको नहीं दिखता है कि इनकी जिंदगी बर्बाद हो रही है कोई इनको सुनने वाला नहीं है ना ही किसी तरीके का कोई सरकारी विभाग इनको सहारा देता है । यह अपने अंदर घुटते रहते है,नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक झूठे केस की वजह से तंग आकर पुरुष आत्महत्या करते हैं । यह संख्या महिलाओं की आत्महत्या से दुगनी से भी ज्यादा है। महिला तो थाना ,वूमेन सेल,न्यायपालिका जा सकती है परंतु पुरुषों के लिए कोई भी पुरुष कमीशन नहीं है जहां पर जाकर वह महिला से तंग आकर कंप्लेंट दर्ज करा सके। दहेज प्रताड़ना का कानून उनको हर तरीके से डराता है धमकाता है। और इस दंड संहिता से कोई भी पुरुष बच नहीं सकता। सबसे पहले यह कंप्लेंट वूमेन सेल में जाती है वूमेन सेल में जाने के बाद वह पुरुष अपनी बात रखता है तो उसका कोई सुनने वाला नहीं होता और अगर वह अपने तरफ से सबुत प्रस्तुत करता है तो उसे यह कह कर टाल दिया जाता है कि यह एक घरेलू व सामाजिक बातचीत है । प्रश्न यह उठता है कि अगर यह घरेलू व सामाजिक बातचीत है तो फिर थाने में और कोर्ट में यह कंप्लेंट दर्ज कैसे होती है क्योंकि झूठी कंप्लेंट करना या झूठी स्टेटमेंट देना भारतीय दंड संहिता का उल्लंघन होता है और इसकी सजा उसी वक्त कोर्ट को या थाने को पबंध कर्के करनी चाहिए। महिलाएं जिनकी शादी हो चुकी है वही नहीं बल्कि झूठे रेप के केस भी आज समाज को दाग दाग कर रहे हैं। सबसे प्रचलित केस विष्णु तिवारी जी का है जिन्होंने 20 साल अपने जीवन के जेल में काटे । उन्होंने अपने 20 सालों में अपने परिवार के सदस्यों को खो दिया जब वह गिरफ्तार हुए थे तो उस समय की दुनिया कुछ और थी और जब वह जेल से निर्दोश होकर बाहर आए तो वह खुद को दूसरी दुनिया में देख रहे थे। जिस महिला ने पर झूठा केस किया है उनको उसी धारा में पाबंद करके सजा सुनाने का प्रावधान होना चाहिए और जिस राज्य ने इस केस को क्रियान्वयन किया है और अगर न्याय देने में ज्यादा समय लगाया है उस राज्य को उस पुरुष को जिसने अपना सारा जीवन कोर्ट और पुलिस के चक्कर काटने में बर्बाद कर दिए उसको मुआवजा मिलना चाहिए। दहेज प्रथा का कानून कई दशकों से चलता आ रहा है और अगर यह आगे चलता रहा तो ना जाने इन झूठे केसों की वजह से कितने घर समाज में बर्बाद होंगे। वकील नोच नोच कर पैसे लेते रहेंगे और डराते रहेंगे। कई केसों में तो अर्नेश कुमार वर्सेस स्टेट ऑफ बिहार की जजमेंट का उल्लंघन किया जाता है और बिना 41अ नोटिस दिए गिरफ़्तार किया जाता है। एक पुरुष जो अपना सारा जीवन मेहनत करने में अपने परिवार को देखने में अपनी जिंदगी को सरलता से चलाने के लिए जीवन में कई तरह की कठिनाइयों का सामना करता ही वह पैदा होने से लेकर मरते दम तक लड़ाई लड़ता है। इस अभिशाप से आज कोई भी बच नहीं पाया है। एक पुरुष अपनी समझदारी से अपने जीवन यापन में हर तरह की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपना ताउम्र निछावर कर देता है। वो पुरुष जोकि किसी का भाई है तो किसी का बाप है वह पुरुष किसी का पति भी है वह पुरुष शायद किसी का पड़ोसी भी है और वही पुरुष किसी दूर रिश्तेदारी में भी आता है। आज हमारे कानून में महिलाओं और जानवरों के लिए हर तरीके के कानून प्रावधान में लाए जाते हैं उनका उपयोग व दुरुपयोग किया जाता है। परंतु कोई इसके बचाव के बारे में या निर्दोष पुरुषों को या उनके परिवार को बचाने में और असक्षम है। यह एक पैसों का मायाजाल है जिसमें पुरुष को झूठा केस होने के बाद भी अपनी पत्नी को मेंटेनेंस देना पड़ता है। बहुत दुख की बात है की सबको समाज में इस दहेज के दुरुपयोग के बारे में पता होता है परंतु जब तक उन लोगों के परिवार में कोई ऐसा झूठा केस नहीं दिखता तब तक वह समाज समझता नहीं है। एक पुरुष अपने पूरे जीवन में सरकारी टैक्स देता है अपनी सैलरी में से कटवाता है। उसके बाद भी उसको किसी प्रकार का बचाव सरकार द्वारा नहीं किया जाता। आज भारत में 4:30 करोड़ से ऊपर केस पेंडिंग है जिसका निर्णय आगे आने वाले 100 सालों में भी नहीं हो सकता। अगर इसी प्रकार से झूठे केस रजिस्टर होते रहे तो इसकी वजह से कितने ही साल कोर्ट और पुलिस के बर्बाद हो जाएंगे। दहेज अधिनियम के अनुसार दहेज देना और लेना दोनों ही बराबरी के दोषी हैं अगर यह शादी से पहले रोका जाए और कोर्ट में दोनों एक एग्रीमेंट साइन करें जिसमें यह लिखा जाए कि हम दोनों ने किसी प्रकार का दान दहेज का आदान प्रदान नहीं किया है तो हम हम 2 परिवार। हम समाज में घर बचाने की बात तो करते हैं परंतु जब घर बचाने की बात आती है तो हम किसी भी प्रावधान को लाने में असक्षम रहते । इसी प्रकार का एक केस घरेलू हिंसा का है जिसको डोमेस्टिक वायलेंस बोलते हैं इस केस को जिस प्रकार सिविल सूट में रखा गया है वैसे ही 498 ए को रखा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट भी इस कानून के दुरुपयोग को लेकर चेतावनी दे चुका है और राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी इसके दुरुपयोग को लेकर चिंता जाहिर की है। ऐसा कानून की नियुक्ति प्रक्रिया को जटिल बना देगी और भ्रष्टाचार के लिए एक अतिरिक्त खिड़की खोल देगी। अभियोजन एजेंसी और न्यायिक प्रणाली की प्रभावशीलता में सुधार करके ही पाठ्यक्रम सुधार आ सकता है।
दहेज की बुराई को ध्यान में रखते हुए, यह बेहतर होता अगर अदालत ने बुराई को रोकने के लिए कुछ दिशानिर्देश जारी किए होते जिस्से झूठ कैस से बचा ज। सक्ता | समय आ गया है कि समाज से दहेज की बुराई को लोहे के हाथ से खत्म किया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि अब दहेज संबंधी पुरुश उत्पीड़न न हो।
मेरा लेखन सिर्फ समाज को जागरूक करना और सच्चाई को सामने लाना है |