निष्ठापूर्वक तीज व्रत करने वाली स्त्री को मिलता है अटल सुहाग : पं.अनुराग शास्त्री
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पंकज राज
हरिद्वार : शिव मंदिर समिति सेक्टर 1 भेल द्वारा सेक्टर वन स्थित मंदिर में आयोजित 8 अगस्त से जारी शिव महापुराण कथा के चौथे दिन बुधवार को पंडित अनुराग कृष्ण शास्त्री ने भक्तो को हरियाली तीज एवम शिव विवाह की कथा सुनाई।
कथा में भगवान शिव और माता पार्वती के वार्तालाप का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि शिवजी कहते हैं, 'हे पार्वती! बहुत समय पहले तुमने हिमालय पर मुझे वर के रूप में पाने के लिए घोर तप किया था। इस दौरान तुमने अन्न-जल त्यागकर और मात्र सूखे पत्ते चबाकर दिन व्यतीत किये थे। मौसम की परवाह किए बिना तुमने निरंतर तप किया। तुम्हारी इस स्थिति को देखकर तुम्हारे पिता बहुत दुःखी और नाराज़ थे। ऐसी स्थिति में एक दिन नारद मुनि तुम्हारे घर पधारे। जब तुम्हारे पिता ने उनसे आगमन का कारण पूछा तो नारदजी बोले- 'हे गिरिराज! मैं भगवान् विष्णु के भेजने पर यहां आया हूं। आपकी कन्या की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर वह उससे विवाह करना चाहते हैं। इस बारे में मैं आपकी राय जानना चाहता हूं। नारदजी की बात सुनकर पर्वतराज अति प्रसन्नता के साथ बोले- हे नारदजी! यदि स्वयं भगवान विष्णु मेरी कन्या से विवाह करना चाहते हैं तो इससे बड़ी कोई बात नहीं हो सकती,मैं इस विवाह के लिए तैयार हूंं।
शिवजी पार्वती जी से कहते हैं, 'तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर नारदजी,विष्णुजी के पास गए और यह शुभ समाचार सुनाया। जब तुम्हें इस विवाह के बारे में पता चला तो तुम्हें बहुत दुख हुआ। तुम मुझे यानी कैलाशपति शिव को मन से अपना पति मान चुकी थी। तुमने अपने व्याकुल मन की बात अपनी सखी को बताई। तुम्हारी सखी ने सुझाव दिया कि वह तुम्हें एक घनघोर वन में ले जाकर छुपा देगी और वहां रहकर तुम शिवजी को प्राप्त करने की साधना करना। तुम्हारे द्वारा ऐसा ही किए जाने पर तुम्हारे पिता तुम्हें घर में न पाकर बड़े चिंतित और दुःखी हुए। वह सोचने लगे कि यदि विष्णुजी बारात लेकर आ गए और तुम घर पर ना मिली तो क्या होगा? उन्होंने तुम्हारी खोज में धरती-पाताल एक कर दिए लेकिन तुम नहीं मिली। तुम वन में एक गुफा के भीतर मेरी आराधना में लीन थी। श्रावण शुक्ल तृतीया को तुमने रेत से एक शिवलिंग का निर्माण कर व्रत रखकर मेरी आराधना की जिससे प्रसन्न होकर मैंने तुम्हारी मनोकामना पूर्ण करने का वरदान दिया। इसके बाद तुमने अपने पिता को वहां बुलाकर कहा, 'पिताजी! मैंने अपने जीवन का लंबा समय भगवान शिव की तपस्या में बिताया है और भगवान शिव ने मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर मुझे स्वीकार भी कर लिया है। अब मैं आपके साथ एक ही शर्त पर चलूंगी कि आप मेरा विवाह भगवान शिव के साथ ही करेंगे। पर्वतराज ने तुम्हारी इच्छा स्वीकार कर ली और तुम्हें घर वापस ले गए। कुछ समय बाद उन्होंने पूरे विधि-विधान के साथ हमारा विवाह किया।
भगवान् शिव ने इसके बाद बताया, 'हे पार्वती! श्रावण शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के परिणाम स्वरूप हम दोनों का विवाह संभव हो सका। इस व्रत का महत्व यह है कि मैं इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाली प्रत्येक स्त्री को मनोवांछित फल प्रदान करता हूं। इस व्रत को जो भी स्त्री पूर्ण श्रद्धा से करेंगी उसे तुम्हारी तरह अचल सुहाग प्राप्त होगा।
कथा के पश्चात शिव जी के विवाह का उत्सव मंदिर में धूमधाम के साथ मनाया गया तथा सभी लोगो ने भगवान शिव-पार्वती की झांकी का आनंद लिया।
कथा में मुख्य यजमान अशोक सिंघल,नीता सिंघल,ब्रिजेश कुमार शर्मा,राकेश कुमार,विष्णु,रेणु,सरला,अनिल कुमार,पुष्पा,अंजू पंत,सोनिया,पूनम दलसिंगार आदि उपस्थित रहे।