पंजाब के किसानों ने ही हमेशा हिलाई दिल्ली की सल्तनत... खारी
(हमेशा दिल्ली सल्तनत की पंजाब के किसानों ने ही हिलाई है)(प्रमोद खारी)
कांग्रेस नेता प्रमोद खारी ने कहा है कि
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और अब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अपने भाषणों और ट्विटर पर गलत ऐतिहासिक तथ्य देकर ये सिद्ध कर दिया है कि दक्षिणपंथी सन्गठन भाजपा का इतिहास कितना कमजोर होता है। यही कारण है कि पंजाब और वहां के किसान आंदोलनों द्वारा दिल्ली सल्तनत की चूलें हिलाने के रिश्तों के इतिहास से ये अनजान हैं।
भाजपा के मातृ सन्गठन का स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के लिए सेना भर्ती का इतिहास रहा। इसके बीच वो ये भूल गए कि भगत सिंह के चाचा सरदार अजीतसिंह में 1917 के आसपास पंजाब में 'पगड़ी सम्भाल जट्टा' किसान आंदोलन का आगाज किया।
अंग्रेजों की कैद से भागने के बाद उन्होंने कनाडा और अमेरिका जाकर किसान आंदोलनों के लिए विदेशों में रह रहे पंजाबियों से धन उगाह कर भारत की आजादी के आंदोलन को मजबूत करने के लिए वहां से धनराशि भिजवाने की परम्परा शुरू की। जो आज के किसान आन्दोलन में भी जारी है।
ये तो आधुनिक भारत की घटना हो गई, लेकिन मध्यकाल में भी पंजाब के किसानों ने आक्रांताओं और निरंकुश सत्ताओं के दाँत अपने आंदोलनों से कैसे खट्टे किये हैं ये इतिहास के पन्नों में दर्ज है।
सत्ता के अहंकार में डूबी भाजपा ये नहीं भूले कि गुरु गोविंद सिंह के देहावसान के बाद उनकी सेना की कमान बन्दा बैरागी ने संभाली। सिखों ने मुगल सल्तनत से कई युद्ध किए और बन्दा बैरागी ने उन्हें परास्त किया।
ये जीत असल में पंजाब के 'किसानों' और 'शाही सेना' के बीच अन्तर्विरोधों का परिणाम थी। लगान और दीगर मामलों में मुगल सेना ने वहां पर लूट मचा रखी थी। जिससे आंदोलित किसानों ने बन्दा बैरागी के सहयोग से दिल्ली की मुगल सल्तनत की चूलें हिला दी थी।
भाजपा ये भी नहीं भूले कि इन किसानों में कैसे नादिरशाह के दांत खट्टे किये थे। बन्दा बैरागी की हत्या के बाद जब पंजाब के सूबेदार अब्दुल समद खान ने सिखों को सरेंडर करने को कहा और हत्याएं शुरू की तो अधिकांश योद्धा जंगलों में चले गए। इनकी खेतीबाड़ी छूट गई।
यहीं से उन्होंने वैशाख की पहली तारीख और दीपावली को मिलने की परंपरा शुरू की जिसे 'सरबत खालसा' के नाम से जाना गया और इन बैठकों में।लिए निर्णयों को 'गुरमत'। इन्हीं सिख सैनिकों और किसानों ने 1739 में दिल्ली और पंजाब में लूट मचाने वाले नादिरशाही सेना के दांत खट्टे किये थे।
सिख सेना और पंजाब की किसान जनता ने मिलकर एक मजबूत खालसा सेना बना ली। जिसने महाराजा रणजीत सिंह के साथ सुदूर कश्मीर तक अपना राज फैलाया।
अब लोकतंत्र में नागपुर से उठे नए नादिरशाह पंजाब के इन्हीं किसानों की बहादुरी, समर्पण और इनके दिल्ली की सल्तनतों के दांत खट्टे करने की जिद्द को भूलकर इतिहास को दोहराने की की गलती कर रहे हैं।
वैसे ये गलती करना स्वाभाविक है क्योंकि दक्षिणपन्थियों का इतिहास सामान्यतः कमजोर ही होता है ये बात अलग है कि कहानीकार और अफवाहबाज इनसे अच्छा नहीं होता।