उत्तराखण्ड के कांग्रेस उपाध्यक्ष जोत सिंह बिष्ट ने उत्तराखण्ड की राजधानी को लेकर भाजपा की त्रिवेन्द्र रावत सरकार अपनी बात को करे स्पष्ट, प्रदेश के विकास को लेकर पिछले चार सालों में नही किये गए काम
सुनील सोनकर
सबसे तेज प्रधान टाइम्स
उत्तराखण्ड के कांग्रेस उपाध्यक्ष जोत सिंह बिष्ट ने मसूरी में पत्रकारों से वार्ता करते हुए कहा कि उत्तराखंड के आंदोलन में शहीद हुए लोगों और आंदोलनकारियों की हमेशा से यह सपना रहा की उत्तराखण्ड की राजधानी गैरसेंड में बने। परंतु हाल में मुख्यमंत्री द्वारा प्रदेश की जनता से देहरादून को राजधानी समझ लेना चाहिये के बयान से उत्तराखण्ड की जनता काफी आहत है वहीं कांग्रेस भी मुख्यमंत्री के इस बयान का पुरजोर तरीके से विरोध कर रही है। उन्होंने कहा कि जब मुख्यमंत्री देहरादून को राजधानी मानने की बात कह रहे तो गैरसेंड को लेकर तमाम तरीके के ड्रामा क्यों किये जा रहा है। वह इस बार का बजट सत्र भी गैरसेंड में आयोजित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी और मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की प्रदेश की राजधानी को लेकर दोहरी मानसिकता को परिलक्षित करता है। उन्होंने कहा कि ना तो मुख्यमंत्री और ना ही भाजपा इस बात को स्पष्ट कर रही है कि आखिरकार उत्तराखंड की राजधानी कहा बनेगी।
उन्होंने कहा गैरसेंड उत्तराखंड के लोगों की अस्मिता का प्रश्न है। उन्होंने कहा कि गैरसेंड ही उत्तराखण्ड की राजधानी बनना चाहिए। उन्होंने कहा कि गैरसेंड को राजधानी बनाए जाने को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा महत्वपूर्ण कार्य किए गए जो आज दिखाई दे रहे हैं। भाजपा की त्रिवेन्द्र रावत की सरकार द्वारा गैरसेंड के लिये विकास के लिये कुछ भी काम नहीं किया है। उन्होंने कहा कि चुनाव को देखते हुए भाजपा गैरसेंड को लेकर नए-नए प्रोपेगेंडा कर रही है परन्तु इससे कुछ होने वाला नहीं है। प्रदेश की जनता सब कुछ जानती है और 2022 में भाजपा का जाना तय है। उन्होंने कहा कि भाजपा उत्तराखंड विरोधी पहाड़ विरोधी है 4 साल में त्रिवेंद्र रावत सरकार ने विकास के नाम पर प्रदेश में एक इंट लगाने का काम नहीं किया है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत मनरेगा के तहत 100 दिन की जगह 150 दिन काम देने की बात कर रहे हैं परंतु उसके लिए बजट व्यवस्था सरकार के पास है नहीं है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में 6 लाख पंजीकृत श्रमिक है जिसके लिए सरकार को बजट की व्यवस्था करनी होगी उन्होंने कहा कि अगर आंकड़ों की बात करी जाए तो सरकार पर मनरेगा के तहत मात्र 46 दिनों के लिए श्रमिकों को पैसे देने के लिए है बाकी की व्यवस्था कहां से होगी यह अपने आप में बड़ा सवाल है। उन्होंने कहा कि मनरेगा एक ऐसी योजना है जिससे गरीब परिवारों की रोजी रोटी देने का काम करती है और ऐसी योजना के लिए सरकार पर पैसा ना हो तो यह प्रदेश का दुर्भाग्य है।