सिर्फ सेहत नहीं आत्मसम्मान को भी खत्म कर रहा है कोरोना - नितिन गर्ग
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मनोज ननकानी
हरिद्वार - कोरोना काल मे नए नए शब्द सुनने को मिले हैं जैसे आइसोलेट, क्वारिंटन "कोरोना वॉरियर्स" यह शब्द हमारी सेहत की सुरक्षा करने वालों को मिला है जिनका वास्तव में कोरोना से लड़ने में बहुत बड़ा योगदान है। डॉक्टर , नर्सिंग स्टाफ , पुलिस , सफाई कर्मचारी आदि सभी बधाई के पात्र हैं व हम इनके काम को सलाम करते हैं।।
निसंदेह पहला सुख है निरोगी काया लेकिन जीवन जीने के लिए निरोगी काया के साथ माया भी जरूरी है ज्यादा न हो पर इतनी तो जरूरी है ही कि आप अपने परिवार का भरण पोषण आत्मसम्मान के साथ कर सकें।।
कोरोना शब्दावली में हम एक वर्ग जिसे व्यापारी वर्ग कहा जाता है जो इस देश का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस वर्ग को इस काल मे अनदेखा किया गया है अतः इस वर्ग को किसी शब्द से नही नवाजा गया पर अनौपचारिक रूप से इसे कोरोना शोषित वर्ग कहा जा सकता है। हाँ ये व्यापारी वर्ग ही है जो बीमार न होने पर भी कोरोना के शोषण का शिकार है।
व्यापारी सरकारों के लिए हमेशा से ही वट वृक्ष रहा है।बैंकों को सबसे ज्यादा व्यापार भी व्यापारियों से ही मिलता है, बिजली विभाग भी इन्ही को कमर्सिअल के नाम पर सबसे महंगी दरों पर बिजली देता है। सेल टैक्स सर्विस टैक्स आदि तो केवल बने ही व्यापारियों के लिए हैं इसके अलावा लंबी लिस्ट है व्यापारियों से वसूली की। आज इस महामारी का सबसे बड़ा दंश व्यापारी ही झेल रहा है। क्योंकि न तो वे वर्क फ्रॉम होम कर सकते हैं और ना ही उन्हें कोई घर बैठे सैलरी दे रहा है । तन, मन, धन तीनों से टूट चुका व्यापारी आज उपेक्षा का शिकार बन गया है।य
यह बात ठीक है कि महामारी का यह दौर बहुत ही भयावय है पर सरकार ये बात सिर्फ व्यापारी को समझाने के साथ साथ सरकारी विभागों , बैंकों , स्कूल आदि को भी समझाये।
1. आज बैंक लगातार अलग अलग तरह से व्यापारियों से वसूली कर रहे है।
2. बिजली का बिल लगातार बढ़ रहा है।
3. पानी व सीवर का बिल
4. बच्चों की स्कूल व ट्यूशन फीस
5. घर के बुजुर्गों की दवाइयों का खर्च
6. घर का राशन , सब्जी , फल , दूध आदि का खर्च
7. दुकान का किराया , मकान का किराया
8. काम पर रखे गए कर्मचारियों का वेतन
9. व्यवसायिक कर , हाउस टैक्स आदि
10. वार्षिक खर्चे जैसे जीवन बीमा , बेटी की शादी के लिए ली गयी बीमा पॉलिसी आदि।
अनेको अनेक खर्चे है, इसके अलावा भगवान ने करे कि यदि इन अतिआधुनिक बीमारियों (करोना,ब्लैक फंगस, वाइट फंगस) आदि के जाल में कोई फंस जाए तो उसके इलाज पर होने वाले असीमित खर्च की व्यवस्था कैसे हो पाएगी। एक सामान्य व्यक्ति बीमारी से ज्यादा यह बात सोच कर की खर्च की व्यवस्था कैसे हो पाएगी से डर जाता है।।
कोरोना की काट व्यक्तिगत दूरी है (भीड़ एकत्रित न हो पाए है)ना कि दुकान बंद करवा देना।। बैंकों में रुपयों की निकासी व अन्य कार्यों के लिए लंबी लंबी कतारें दिखाई देती हैं। राशन की दुकानों पर लाइनें हैं जहाँ खाद्य सामग्री वितरित की जाती है वहाँ भीड़ होती है।
सरकार को समझना चाहिए कि जितना अनुसाशन अन्य जगहों पर है उससे ज्यादा व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर होगा क्योंकि अभी ग्राहकों की संख्या बहुत सीमित रहने वाली है और व्यापारी खुद भी अपने परिवार और समाज की सेहत को लेकर चिंतित है।।
मेरा एक व्यापारी होने के नाते सरकार को एक सुझाव है कि अगर लॉक डाउन ही एक मात्र विकल्प है तो सरकार को एक बार पूर्ण लॉक डाउन लगा देना चाहिए न सिर्फ व्यापार पर बल्कि सरकारी विभागों की वसूली पर , बैंकों की उगाही पर , स्कूलों की मनमानी पर , इलाज के नाम पर होने वाली लूट पर। या फिर
सरकार की तरफ से आवश्यक रियायते देते हुए
1. सभी दुकानों के बाहर गोल घेरे बना कर उचित प्रबंध किया जाए।
2. दुकानों में एक समय में दो से ज्यादा ग्राहकों को अनुमति न हो।
3. मास्क व सैनिटाइजर हर दुकान पर अनिवार्य हो।
आदि नियमों का पालन कराएं और सभी को आत्मसम्मान के साथ परिवार का भरण पोषण भी करने दें।।
अंत मे एक प्रश्न - "जब फसल बर्बाद होने पर किसानों का ऋण माफ कर मुआवजा दिया जा सकता है।। तो व्यापारियों से बैर क्यों ?"