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3 अक्टूबर को होने वाले शारदीय नवरात्रि व्रत के संदर्भ में विशेष--अखिलेश चन्द्र चमोला

3 अक्टूबर को होने वाले शारदीय नवरात्रि व्रत के संदर्भ में विशेष--अखिलेश चन्द्र चमोला

3 अक्टूबर को होने वाले शारदीय नवरात्रि व्रत के संदर्भ में विशेष--अखिलेश चन्द्र चमोला                                                                         


सबसे तेज प्रधान टाइम्स                     गबर सिंह भण्डारी                                                                                श्रीनगर गढ़वाल। हमारी भारतीय संस्कृति सभी संस्कृतियों में अनुपम तथा बेजोड़ मानी जाती है। यह अपने आप में विशिष्ट तथा प्रभावकारी दृष्टिगोचर होती है। इस अदभुत संस्कृति के कारण भारतवर्ष की गरिमा जगतगुरु के रूप में रही है। यहां नारी शक्ति को सर्वोपरि महत्व दिया जाता रहा है। इसी आधार पर मनुस्मृति में इस सत्यता को इस प्रकार से उद्घाटित किया गया है-यत्र नार्येस्तु पुजयन्ते रमन्ते तत्र देवता,अर्थात् जिस कुल में नारियों की पूजा अर्थात् सत्कार होता है उस कुल में दिव्य योग और उतम संतान होती हैं और जिस कुल में स्त्रियों की पूजा नहीं होती। वहां सब प्रकार की क्रिया निष्फल होती है। जहां नारियों की पूजा होती है वहां देवता भी निवास करते हैं। जब हम इतिहास के पन्नों पर नजर डालते हैं तो नारी की गरिमा प्राचीन काल से ही देखने को मिलती है। प्राचीन साहित्य में गार्गी का स्थान सर्वोपरि था। जिसने अपनी बुद्धि और ज्ञान से याज्ञवल्क्य ऋषि को चुनौती देकर पराजित किया। मन्डन मिश्र की पत्नी भारती ने भी शंकराचार्य को शास्तार्थ में पराजित किया। वास्तव में सही अर्थों में चिन्तन किया जाय तो नारी नर से बढ़ कर है। नारी मनुष्य के जीवन में कई रूपों में प्रकटित होती है। इसी कारण हमारी संस्कृति में नारी को देवी का रूप माना जाता है। इसका साक्षात प्रमाण नवरात्री का त्योहार माना जाता है। नव रात्रि पूजा के आठवें व नौवें दिन कन्यायों का पूजन कर उन्हें भोजन कराने व यथोचित उपहार देने की परम्परा रही है। जीवन के विभिन्न रूपो में नारी ही जीवन की सच्ची मार्गदर्शिका होती है। मां ही जीवन का केन्द्र बिन्दु और आधार होती है। मां के बिना जीवन की कल्पना नहीं कर सकते। मां बच्चे को नौ मास गर्भ में धारण करके अनेक प्रकार का कष्ट सहन करती है। इसी कारण माँ को सर्व श्रेष्ठ स्थान दिया गया है। जिसका स्मरण करने मात्र से ही सब प्रकार के दुःखों से मुक्ति मिल जाती है। यही कारण है यहां गंगा माता गौ माता पृथ्वी माता कहकर उस निष्ठा को बड़ी श्रद्धा के साथ सम्बोधित किया जाता है। नवरात्रि का त्योहार इसी शक्ति का प्रतीक है। नवरात्रि का अर्थ है नौ दिन और नौ रात्रि तक एकाग्रचित्त होकर मां की आराधना में लीन होकर सम्पूर्ण भाव से जप तप करता। पूरे वर्ष में चैत्र आषाढ़ अश्विन एवं माघ मास मे शुक्ल पक्ष के प्रथम नौ दिन दुर्गा मां की पूजा परम शुभ मानी जाती है। इन चारों महीनों में चैत्र माह वसन्तीय एवं आश्विन माह में शारदीय नवरात्रि प्रमुख विशिष्ट माने जाते हैं। आषाढ़ एवं माघ मास के नवरात्रि गुप्त नवरात्रि के नाम से जाने जाते हैं। इन सभी नवरात्रों में मां भगवती की पूजादुर्गा सप्तशती के पाठो से की जाती है। ऋग्वेद में कहां गया है। मां भगवती ही महत्वपूर्ण शक्ति है,उन्हीं से संपूर्ण विश्व का संचालन होता है। उनके अतिरिक्त कोई दूसरी शक्ति नहीं है। इस वर्ष यह पुनीत त्यौहार 3 अक्टूबर से 12 अक्टूबर तक है। तृतीय नवरात्रि की तिथि बड़ी हुई है 6 व 7 अक्टूबर दोनों तिथियां में मां कुष्मांडा देवी की पूजा होगी। 12 अक्टूबर को विजयदशमी का पर्व मनाया जाएगा। नवरात्रि गुरुवार से शुरू होने के कारण मां भगवती का आगमन,पालकी पर होगा। तिथि बढ़ने के कारण नवरात्रि का पूजन 10 दिन तक होगा। घटस्थापना 3 अक्टूबर को 6:25 से 8:45 तक। अभिजीत मुहूर्त दिन में 11:52 से 12:59 तक सर्वार्थ सिद्धि योग को दर्शा रहा है। देवी भागवत पुराण में मां दुर्गा के नाम का वर्णन इस प्रकार से देखने को मिलता है। प्रथमशैलपुत्री च. द्वितीयम.ब्रह्मचारिणी। तृतीयम चन्द्रघंटेति कुष्माण्डेति चतुर्थकम॥ पंचम स्कन्दमातेति षष्टम कात्या यतीति च। सप्तम कालरात्रि च महागौरिति चाष्टम " नवमं सिद्धिदात्री च नव दुर्गा प्रकीर्तिता। 

नवरात्रि पर निम्न बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है।

1 -मां के नौ रूपों की पूजा विशेष तरीके से करें,जिस दिन जिस रूप का दिन है उस दिन उस रूप का मंत्र का ध्यान करें।

2 -नवरात्रि के समय सुबह 8:00 बजे से पहले स्नान कर लेना चाहिए।

3- 9 दिन तक नमक का सेवन न करें।

4 -नवरात्रि के 9 दिन तक ज्योति जलाएं।

5 -नवरात्रि के दिनों में घर में जो भी भोजन बने उसे सबसे पहले मां को भोग लगाना चाहिए।

6 -नवरात्रि के दौरान सात्विक खाना ही खाएं।

7 -अखंड ज्योत जलाने पर पूजा स्थान को खाली न छोड़ें।

8 -चमड़ी से निर्मित वस्तुओं का प्रयोग न करें।

8 -नवरात्रि के दौरान भोजन में लहसुन और प्याज का प्रयोग बिल्कुल ना करें।

9 -मांस मदिरा का प्रयोग न करें।

10 -जमीन पर शयन।

11 -अनावश्यक वार्तालाप  से बचें। 

12 -मन में वासनात्मक विचार ना लाएं।

13 -दुर्गा सप्तशती नामक ग्रंथ का नियमित श्रद्धा पूर्वक पूजन करें।

14 -छोटी-छोटी कन्याओं को भगवती का रूप मानकर प्रतिदिन श्रद्धा भाव से भोजन  करायें। इस प्रकार नवरात्रि की शुभ घड़ी में उपवास रखने से शरीर को भी आराम मिल जाता है। अच्छी सोच व सकारात्मक विचारों का प्रकटीकरण हो जाता है। मां अपने भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करती है। हृदय की शुद्धता व सच्चा समर्पण बहुत जरूरी है। जब-जब देवताओं पर घोर संकट आया तो उन्होंने भी नव दुर्गा की आराधना कर उस संकट से मुक्ति पाई है। किसी भी स्थिति में पशु बलि नहीं देनी चाहिए। कन्या पूजन करने से सभी विघ्न  बाधाऐं दूर हो जाती हैं। जीवन के प्रति नवीन उत्साह का संचार पैदा होता है। संपूर्ण मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। लेखक-अखिलेश चंद्र चमोला मां काली उपासक श्रीनगर गढ़वाल



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