संपत्तियां बनती रही हैं संतों की मौत का कारण
संपत्तियां बनती रही हैं संतों की मौत का कारण
[निर्वाणी के महंत सुधीर गिरी को उतारा मौत के घाट, बड़े अखाड़े के मोहनदास का आजतक पता नहीं]
सबसे तेज प्रधान टाइम्स
-कुमार दुष्यंत
हरिद्वार,।अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी की असमय मौत ने एकबार फिर से धन-संपत्ति व मोहमाया के रंग में रंगते जा रहे भगवे और उसके दुष्परिणामों की ओर इंगित किया है। धर्मनगरी संतों के ऐसे ही दर्जनों मामलों से भरी पड़ी है।हरिद्वार मंदिरों, अखाड़ों, मठों, आश्रमों की नगरी है।कभी इन आश्रमों, मठों में संतजन मोहमाया से दूर रहकर शांतिपूर्ण जीवन के संदेश देकर समाज का मार्गदर्शन किया करते थे।लेकिन बदले दौर में संतई खुद ही मोहमाया का शिकार होकर धन-संपत्ति सृजन में लिप्त हो गई।हरिद्वार में आश्रमों, अखाड़ों के पास राजा, महाराजाओं व दानदाताओं से धर्मप्रचार व लोकहित के लिए मिली अकूत सपंत्तियां हैं। लेकिन अब इन संपत्तियों पर फ्लैट, कालोनियां बनाकर माया बटोरी जा रही हैं। संत पार्किंग व बारातघर भी चला रहे हैं। इन गैर संतई कार्यों के लिए भगवे को विशुद्ध धंधेबाज लोगों का सहारा लेना पड़ रहा है। जो त्यागी संतों को उनकी बेशकीमती जमीनों का मोल समझा रहे हैं। इसमें उलझकर संतई कलंकित हो रही है। धर्म मार्ग पर कायम वअवरोध बनने वाले संतों को ठिकाने लगाया जा रहा है।2012 के मंहत सुधीर गिरी हत्याकांड को लोग अभी नहीं भूले हैं। महानिर्वाणी अखाड़े के सुधीर गिरी भूमाफियाओं के हाथों अखाड़े की संपत्तियों को फ्लैट्स के लिए बेचने में बाधा बने तो हत्यारों ने हरिद्वार से बेलड़ा तक उनका पीछा किया और ठिकाने लगा दिया। कनखल के बड़े अखाड़े के कोठारी मोहनदास सितंबर 2017 में ट्रेन से बाहर जाने के लिए निकले तो आजतक लौटकर नहीं आए। माना जा रहा है कि वह भी ऐसे ही किसी कुचक्र का शिकार हो गये।अपने गुरु की संपत्ति चेतनदेव कुटिया की देखरेख करने वाली साध्वी प्रेमानंद भारती भी आश्रम के शौचालय में संदिग्ध हालात में मृत मिली थी।भोले बाबा, राघवाचार्य, अमृतानंद, रंगाचार्य जैसे संत भी आश्रम-अखाड़ों के ऐसे ही विवादों की भेंट चढ़ गए। धर्मनगरी के मोक्षधाम, रामायण सत्संग भवन, कमलदास कुटिया, चेतनदेव कुटिया, संगमपुरी आश्रम जैसे अनेक आश्रम अपनी बेशकीमती जमीनों को लेकर संतों के आपसी विवादों में हैं। महंत नरेंद्र गिरी ने ही कुछ समय पूर्व अखाड़े की संपत्तियों को लेकर अपने ही अखाड़े के एक संत रामानंद पुरी की जान को भी खतरा बताया था।