गीता गैलरी में छात्रों ने श्री कृष्ण कथा को मूर्तियों के साथ टेक्नोलॉजी का सामंजस्य स्थापित करते हुए
दैनिक प्रधान टाइम्स
दीपक राणा
"कुरुक्षेत्र शैक्षिक यात्रा-मेरी कलम से"
भ्रमण संसार के व्यवहारिक ज्ञान को प्राप्त करने का सुनहरा अवसर है इस सत्य को सभी मनोवैज्ञानिक और शिक्षाविदों द्वारा परम सत्य के रूप में स्वीकार किया गया है। शैक्षिक भ्रमण या शैक्षिक यात्राएं छात्रों में परस्पर व्यवहार से संबंधित मूल्यों को विकसित करने के साथ ही उनमें अनुशासन और नियमों की महत्ता को भी बढ़ाती हैं। इन यात्राओं द्वारा विविध प्रकार के अनुभवों से घटनाओं और वस्तुओं को नई दिशा से देखने का नजरिया विकसित होता है। पुस्तकीय ज्ञान से हम जो सीखते हैं इन यात्राओं द्वारा पढ़कर बुनी गई उन कल्पना को ठोस धरातल मिलता है जिससे पाठ्य पुस्तकों का ज्ञान समृद्ध होने के साथ-साथ अपने दावों को पुख्ता कर दिखाता है। सारा इतिहास वास्तविक हो जाता है, भूगोल साकार हो जाता है, समाजशास्त्र के नियम मजबूत होते हैं, कई वैज्ञानिक सिद्धांतों का परीक्षण होने से नई चुनौतियां उभर जाती हैं और ऐतिहासिक महत्व के स्थानों के भ्रमण से पुस्तकों में पढी धुंधली छवि प्रकाशित होकर साकार हो जाती है। इन्हीं सब लक्ष्यों को दृष्टिगत रखते हुए बेसिक शिक्षा विभाग सहारनपुर द्वारा ऐतिहासिक नगरी कुरुक्षेत्र की यात्रा का आयोजन 19 दिसंबर सोमवार 2022 को किया गया जिसका समन्वय डॉक्टर कृपाल मलिक जी के द्वारा किया गया और इस भ्रमण को हरी झंडी दिखाकर खंड शिक्षा अधिकारी श्री अंशुल कुमार जी ने समस्त छात्रों को इस भ्रमण के उद्देश्यों की पूर्ति करने हेतु आशीर्वाद दिया। बलियाखेड़ी के उच्च प्राथमिक विद्यालय से श्रीमती स्मृति चौधरी एवं श्री अनुज कुमार गुप्ता के मार्गदर्शन में कक्षा 6 और कक्षा 7 के छात्र छात्राओं ने इसमें प्रतिभाग किया और सहयात्री के रूप में अन्य विकास खंडों जैसे गंगोह, ननौता, नकुड, रामपुर मुजफ्फराबाद, सरसावा, नगर क्षेत्र एवं सढोली कदीम के शिक्षक विशाखा चौहान, जितेंद्र राठी, राजेश शर्मा, प्रवीण चौहान, आशा गौर, विमल सैनी, नीलम मलिक, सपना सैनी, वीरेंद्र बटार, वंदना मलिक इत्यादि रहे।
शैक्षिक यात्रा की शुरुआत कुरुक्षेत्र के श्री कृष्ण संग्रहालय से हुई जहां छात्रों ने तमिलनाडु, उड़ीसा, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश से प्राप्त कृष्ण जी की अनेक बाल लीलाओं की धातु, कासष्ठ, हाथी दांत एवं स्फटिक से बनी हुई विभिन्न छोटी और बड़ी प्रतिमाओं, यम, कुबेर, उमा महेश्वर, वरहा आदि हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियों का अवलोकन कर अपना ज्ञानवर्धन किया। विभिन्न राज्यों की लोक कलाओं जैसे हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा शैली, पश्चिमी बंगाल और उड़ीसा की पट्ट चित्रकारी, महाराष्ट्र वरली पेंटिंग्स, कपड़े के पपेट्स, चमड़े के छाया चलचित्र, तरह-तरह के कपड़ों की बुनाई में बुने गए श्री कृष्ण के जीवन के विभिन्न पहलुओं को बच्चों ने बहुत नजदीक से देखा और महसूस किया। उस समय के लकड़ी और लोहे के दरवाजों, चबूतरो और फर्नीचरों के साथ-साथ छात्रों ने गीता और महाभारत की अरबी और फारसी की 18, 19 वी शताब्दी की कृतियों को भी देखा। दूसरी ईसा पूर्व के भारतीय यवन राजा अगाथोक्लियस द्वारा जारी चांदी के सिक्कों के प्रतिरूप भी यहां देखने को मिले जिस पर खड़कधारी श्री कृष्ण और हल मूसलधारी श्री बलराम जी के यूनानी वेशभूषा में चित्र अंकित हैं। 1970 ई.वी. में फ्रांसीसी पुरातत्वविद श्री पाॅल बर्नाड ने अफगानिस्तान में आॅक्सस नदी के किनारे पर आई-खानुप नामक स्थल की प्राचीन ग्रीक बस्ती के उत्खनन से इन्हें प्राप्त किया था। इसके के अग्रभाग में "वैसिलियास अगाथूक्लियो" ग्रीक लिपि में लिखा गया है। इससे छात्रों को भारतीय सभ्यता के सर्वाधिक पुरातन एवं लोकप्रिय होने के साक्ष्य प्राप्त हुए।
गीता गैलरी में छात्रों ने श्री कृष्ण कथा को मूर्तियों के साथ टेक्नोलॉजी का सामंजस्य स्थापित करते हुए जीवंत रूप में देखने का अनुभव प्राप्त किया। यहां राजा शांतनु का मत्स्य कन्या को देखकर अनुरक्त हो जाना, मां गंगा का धरती पर अवतरित होना, भीष्म का प्रतिज्ञा लेना, द्रोणाचार्य के आश्रम में कौरव और पांडवों की शिक्षा दीक्षा से लेकर द्रौपदी स्वयंवर, पांडवों का वनवास, लक्षागृह का जलना, महाभारत के युद्ध के मुख्य पहलुओं जैसे कृष्ण जी का दुर्योधन को समझाने का प्रयास, युद्ध में परिवार के ही लोगों का दो पक्षों में आमने सामने आना, अर्जुन का युद्ध से मना कर देना, श्री कृष्ण का विराट स्वरूप दिखा अर्जुन को गीता का ज्ञान देना, सारथी संजय द्वारा धृतराष्ट्र को महाभारत युद्ध का आंखों देखा हाल सुनाना, भीष्म पितामह का शैय्या पर अंतिम विराम करना, यक्ष द्वारा युधिष्ठिर से प्रश्नों का पूछना इत्यादि महाभारत दृश्यों को छात्रों ने अत्यंत पसंद किया।
कुरुक्षेत्र पैनोरमा एवं विज्ञान केंद्र में जहां एक और छात्रों को गांधी व विज्ञान के आधुनिक प्रयोगों के बारे में पढ़ने का अवसर मिला वही गांधीजी का विज्ञान आधुनिक चिकित्सा और औद्योगीकरण पर दृष्टिकोण जानने का अवसर भी प्राप्त हुआ। हड़प्पा कालीन सभ्यता और संस्कृति जैसे चूड़ियां, मालाएं, उस समय के मिट्टी के बर्तन, उन पर की गई हाथ से नक्काशी, उन लोगों का रहन-सहन इत्यादि को भी पास से देखने का अवसर प्राप्त हुआ। पुराने समय में जस्ता गलाने का तरीका, लोहे के सामान बनाने का तरीका, विभिन्न प्रकार की मोहरें और सिक्कों के ढा़लने का तरीका, प्राचीन कांच तकनीकी के बारे में नजदीक से जानने के अवसर प्राप्त हुए। प्राचीन वैज्ञानिक जैसे वाराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, भास्कर, आर्यभट्ट इत्यादि को बच्चों ने पढ़ा और अपने अनुभव शिक्षकों के साथ साझा किए। कुछ वैज्ञानिक तथ्यों को बच्चों को पास से जानने का अनुभव प्राप्त हुआ जैसे उत्प्लावन बल, गोलीय दर्पण के साथ अनुभव, रंगीन पिरामिड, मानसिक और दृष्टिभ्रम की स्थितियां जैसे अंतहीन सुरंग, हाइपरस्कोप, पोंजो दृष्टिभ्रम, धैर्य परीक्षण, चलचित्र, चंद्रमा की गतियां, सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण, शून्य की अवधारणा, पाइथागोरस प्रमेय और बहुत सारे गणितीय नियमों को खेल खेल में छात्रों ने समझा। स्पर्श से विद्युत धारा की उत्पत्ति, टेस्ला क्वायल द्वारा स्मार्टफोन का टहलते समय जेब में ही चार्ज हो जाना, टेलीविजन का बिना तार के कार्य करना जैसी अवधारणाओं को आसानी से समझने में मदद मिली। छोटी-छोटी चीजें जो बच्चों को जादू लगती है उनके पीछे छिपे वैज्ञानिक कारणों को जानने में छात्रों ने बहुत उत्सुकता दिखाई जिससे छात्रों का वैज्ञानिक दृष्टिकोण सभी के समक्ष निखर कराया।
ब्रह्म सरोवर के किनारे टहलते हुए वहां अंकित पत्थरों के चित्रों में महाभारत के दृश्यों को देखकर अपने अध्यापकों से सरोवर के किनारे बैठकर महाभारत कालीन कहानियों को सुनते हुए, मछलियों और बत्तखों को दाना खिलाते हुए छात्रों के अंदर एक संवेदनशील हृदय और मस्तिष्क का अनुभव हम सभी अध्यापकों ने किया। ब्रह्म सरोवर के बीचों बीच स्थित मंदिर का दर्शन करने के बाद ज्योतिसर में स्थित कुंड एवं मंदिर दर्शन करते हुए छात्रों ने बरगद की जटाओं और उनके कार्य के विषय में विमर्श करते हुए इस यात्रा के सभी उद्देश्यों को उत्साह पूर्वक प्राप्त किया। इस समय भी छात्रों के चेहरे पर दिखाई दे रही खुशी और उनका उत्साह यह बता रहा था कि ज्ञान प्राप्ति से कभी किसी को थकान नहीं होती अपितु वह तो व्यक्ति में जिज्ञासा की प्यास बढ़ाकर ऐसी ऊर्जा का संचार करता है, जो उसे बिना रुके, बिना थके एक संवेदनशील, सभ्य एवं प्रकृति के रहस्य को जानने में सक्षम व्यक्तित्व बनाती है। हाथों से छूकर, आंखों से देखकर, हृदय से महसूस कर पाठ्य पुस्तकों में संचित ज्ञान इन शैक्षिक यात्राओं के जरिए अपनी पूर्णता को प्राप्त करता है और शिक्षा के लिए एक समग्र दृष्टिकोण पैदा कर विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास करता है जो आज की शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है।
-स्मृति चौधरी
विज्ञान शिक्षिका
उच्च प्राथमिक विद्यालय सबदलपुर, बलियाखेड़ी
सहारनपुर