देवी सती का धाम जहाँ रात में गंधर्व, अप्सराएं मां के दरबार में करते हैं नृत्य
अक्षिता रावत
उत्तराखंड के सिद्धपीठों में से एक है- मां चंद्रबदनी का मंदिर। यहां की महिमा अपरंपार है। मंदिर में माँ चन्द्रबदनी की मूर्ति न होकर श्रीयंत्र स्थापित है।
श्री चंद्रबदनी सिद्धपीठ की स्थापना की पौराणिक कथा मां सती से जुड़ी हुई है। एक बार सती के पिता राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने भगवान शंकर को छोड़ सभी को आमंत्रित किया। सती ने भगवान शंकर से वहां साथ जाने की इच्छा जाहिर की, भगवान शंकर ने उन्हें वहां न जाने की सलाह दी, परंतु वह मोहवश अकेली चली गईं। यज्ञ मंडप में भगवान शंकर को छोड़कर सभी देवताओं का स्थान था। सती ने भगवान शंकर का स्थान न होने का कारण पूछा तो राजा दक्ष ने उनके बारे में अपमानजनक शब्द सुना डाले। जिस पर गुस्से में सती यज्ञ कुंड में कूद गईं। सती के भस्म होने का समाचार पाकर भगवान शिव वहां आए और दक्ष का सिर काट दिया। भगवान शिव विलाप करते हुए सती का जला शरीर कंधे पर रख कर तांडव करने लगे। उस समय प्रलय जैसी स्थिति आ गई। तब भगवान विष्णु ने अपना अदृश्य सुदर्शन चक्र शिव के पीछे लगा दिया। जहां-जहां सती के अंग गिरे वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। मान्यता है कि चंद्रकूट पर्वत पर सती का बदन (शरीर) गिरा, इसलिए यहां का नाम चंद्रबदनी पड़ा। कहते हैं कि आज भी चंद्रकूट पर्वत पर रात में गंधर्व, अप्सराएं मां के दरबार में नृत्य और गायन करती हैं।
मंदिर में मूर्त नहीं, श्रीयंत्र
यहां के पुजारी बताते हैं, मंदिर में मूर्त नहीं, श्रीयंत्र है। किवंदती है कि सती का बदन भाग इस स्थान पर गिरने से देवी की मूर्ति के कोई दर्शन नहीं कर सकता है । जनश्रुति है कि कभी किसी पुजारी ने अज्ञानतावश अकेले में मूर्ति देखने की चेष्टा की थी, तो पुजारी अंधा हो गया था ।रावल यानी पुजारी भी आंखें बंदकर या नजरें झुकाकर ही मां को स्नान करवाते हैं और श्रीयंत्र पर कपड़ा डालते हैं। मान्यता है कि यदि आंखें बंद न हों तो चुंधिया जाएंगी। गर्भगृह में एक शिला के ऊपर उत्कीर्ण यंत्र पर चांदी का छत्र अवस्थित है। कहा यह भी जाता है कि आदिगुरु शंकराचार्य ने श्रीयंत्र से प्रभावित होकर चंद्रकूट पर्वत पर चंद्रबदनी मंदिर की स्थापना की थी।
ऋषिकेश से देवप्रयाग के रास्ते यहां पहुंचा जा सकता है। मंदिर के निकट यात्रियों के विश्राम और भोजन की समुचित व्यवस्था है। वैसे तो हर दिन दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं, पर नवरात्रों में श्रद्धालुओं की संख्या हजारों में पहुंच जाती है।अप्रैल महीने में हर साल यहां मेला लगता है। मान्यता है कि यहां आने वालों की हर मुराद पूरी होती है।