पूजा पाठ में शंख बजाना क्यों है जरूरी जानिए कैसे हुई संत की उत्पत्ति और क्या है इसके लाभ
पूजा पाठ में शंख बजाना क्यों है जरूरी जानिए कैसे हुई संत की उत्पत्ति और क्या है इसके लाभ
सबसे तेज प्रधान टाइम्स गबर सिंह भण्डारी श्रीनगर गढ़वाल ।पाठको आज आपको शंख की उत्पत्ति और लाभ पूजा पाठ में शंख बजाना क्यों है जरूरी शंख बजाने के हैं बड़े फायदे, विज्ञान एवं पौराणिक शास्त्रों में है इसका महत्व के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दें रहें हैं
शंख हमारे जीवन से जुड़ी वो पवित्र वस्तु है जो उपासना से लेकर उपचार तक में काम आती है. इसे लेकर ऐसी मान्यता है कि शंख की उत्पत्ति भगवान विष्णु के भक्त दंभ के बेटे दानव से हुई थी. कहते हैं कि इसी शंखचूड़ की अस्थियों में विभिन्न प्रकार के शंखों का निर्माण हुआ था. आज आपको/ज्योतिषाचार्य अजय कृष्ण कोठारी/ शंख की उत्पत्ति शंख का महत्व एवं शंख के लाभ के बारे में विस्तार से बता रहे हैं..पूजा में शंख का क्या महत्व है? सनातन धर्म में शंख का विशेष महत्व है और इसे घर के मंदिर में रखना बहुत शुभ माना जाता है,धार्मिक ग्रंथों में शंख को भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का बहुत प्रिय बताया गया है,इसलिए माना जाता है कि जिस घर में शंख होता है,वहां भगवान विष्णु का वास होता है,और जहां भगवान विष्णु होंगे वहां महालक्ष्मी स्वयं आ जाती हैं.
समुद्र मंथन में से निकले 14 रत्नों में से एक शंख भी है. सनातन परंपरा में होने वाली पूजा में शंख का अत्यधिक महत्व है,हिंदू धर्म में लगभग सभी देवी-देवताओं ने अपने हाथों में शंख धारण किया है. शंख को जैन, बौद्ध, शैव, वैष्णव आदि परंपराओं में अत्यंत शुभ माना गया है. भगवान विष्णु का तो ये अत्यंत प्रिय है. यही वजह है कि जहां कहीं भी भगवान श्री नारायण की पूजा होती है, वहां शंखनाद जरूर ही होता है.
इस तरह हुई शंख की उत्पत्ति - शंख हमारे जीवन से जुड़ी वो पवित्र वस्तु है जो उपासना से लेकर उपचार तक में काम आती है. इसे लेकर ऐसी मान्यता है कि शंख की उत्पत्ति भगवान विष्णु के भक्त दंभ के बेटे दानव से हुई थी. कहते हैं कि इसी शंखचूड़ की अस्थियों में विभिन्न प्रकार के शंखों का निर्माण हुआ था.
पूजा में क्यों जरूरी है शंख - प्राचीन काल से ही हमारे ऋषि-मुनि अपनी पूजा-साधना में शंख ध्वनि का प्रयोग करते रहे हैं. श्रीहरि का प्रिय वाद्य यंत्र किसी साधक की मनोकामना को पूर्ण करके उसके जीवन को सुखमय बनाता है. मान्यता है कि शंख बजाने से जहां तक उसकी ध्वनि जाती है, वहां तक की सभी बाधाएं, दोष आदि दूर हो जाते हैं. शंख से निकलने वाली ध्वनि नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट कर देती है.
कैसे करें शंख का पूजन? - घर में नया शंख लाने के बाद सबसे पहले उसे किसी साफ बर्तन में रख लें. फिर उसे अच्छी तरह से जल से साफ कर लें. इसके बाद उसे गाय के कच्चे दूध से स्नान कराएं. इसके बाद गंगाजल से स्नान कराएं. फिर शंख को साफ कपड़े से पोंछकर चंदन, पुष्प, धूप आदि से पूजन करें. इसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी से निवेदन करें कि वो इस शंख में निवास करें. शुभ फलों की प्राप्ति के लिए प्रतिदिन पूजा करने से पहले इसी तरह शंख की पूजा करके ही बजाएं.
शंख के लाभ - शंख समुद्र मंथन के दौरान माता लक्ष्मी के साथ ही उत्पन्न हुआ था. ऐसे में शंख को माता लक्ष्मी का भाई माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि जिस घर में शंख होता है, वहां पर माता लक्ष्मी का सदैव वास होता है. दक्षिणावर्ती शंख को देवता समान माना गया है. इसे पूजा घर में रखना और बजाना अत्यंत शुभ माना जाता है. शंख को हमेशा पूजा स्थान पर जल भरकर रखना चाहिए. शंख में जल भरकर घर में छिड़कने से घर की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है. घर में सुबह-शाम शंख बजाने से भूत-प्रेत की बाधा भी दूर होती है,अथर्ववेद के अनुसार, शंख से राक्षसों का नाश होता है
- शंखेन हत्वा रक्षांसि.!
घर पर शंख रखने का केवल धार्मिक पहलू ही नहीं बल्कि शंख को बजाना सेहत की दृष्टि से भी बहुत लाभकारी माना जाता है,आइए जानते हैं शंख बजाने के फायदे…
शंख का महत्व - शंख में जल भरकर पूजा स्थल पर रखना चाहिए। इस जल को जहां भी छिड़का जाता है वह स्थान पवित्र हो जाता है यानी वहां से नकारात्मक उर्जा दूर हो जाती है। साथ ही उस जल को बच्चे को पिलाने पर उसकी बौद्धिक क्षमता का विकास होता है। शंख की ध्वनि से सात्विक उर्जा का संचार होता है और जादू-टोना और दूसरी नकारात्मक शक्तियों का भय नहीं रहता। नियमित शंख बजाने से फेफड़ों का व्यायाम होता है और हृदय रोग की आशंका कम हो जाती है।
गणेश शंख - समुद्र मंथन के दौरान 8वें रत्न के रूप में गणेश शंख की उत्पत्ति हुई थी। इस शंख की आकृति बिल्कुल गणेशजी जैसी दिखती थी इसलिए इसका नाम गणेश शंख रखा गया। यह शंख दरिद्रतानाशक और धन प्राप्ति का कारक है। गणेश शंख प्रकृति का मनुष्य के लिए अनूठा उपहार है।
दक्षिणावर्ती शंख दक्षिणावर्ती शंख का घर में होना बहुत ही शुभ माना जाता है। इस शंख को घर में बजाने से पॉजिटिव एनर्जी आती है। दक्षिणावर्ती शंख को दाएं हाथ से पकड़ा जाता है। इस शंख को देवस्वरूप माना गया है और इसके पूजन से लक्ष्मी प्राप्ति के साथ-साथ संपत्ति भी बढ़ती है।
कौरी शंख -कौरी शंख बेहद दुर्लभ पाया जाता है। इस शंख को घर में रखने से भाग्य की वृद्धि होती है और सभी कार्य बनने लगते हैं। कौरी को कई जगह कौड़ी भी कहा जाता है और पीली कौड़ियां घर में रखने से धन वृद्धि होती है। इस शंख का प्राचीनकाल में गहनों में प्रयोग किया जाता था।
कामधेनु शंख कामधेनु शंख को गौमुखी भी कहा जाता है। यह शंख कामधेनु गाय के मुख जैसी रूपाकृति का होने की वजह से इसे गोमुखी कामधेनु शंख कहा जाता है। कहते हैं इस शंख की पूजा करने से तर्कशक्ति प्रबल होती है। इसे कलयुग में मनोकामना पूर्ति का साधन बताया गया है।
वामवर्ती शंख - वामवर्ती शंख को बांए हाथ से बजाया जाता है। इसके बजाने के लिए एक छिद्र होता है। यह शंख नकारात्मक ऊर्जा को घर से बाहर निकालने में सक्षम होता है। इसके घर पर रहने से हमेशा सुख-शांति का वास होता है। यह शंख आसानी से मिल जाता है।
पाञ्चजन्य शंख - महाभारत काल के दौरान भगवान कृष्ण के पास पाञ्चजन्य शंख था। बताया जाता है कि इस शंख की आवाज कई किमी तक पहुंचती थी। अब यह शंख मौजूद नहीं है। बताया जाता है कि भारत में कहीं पर यह शंख आज भी मौजूद है। कुछ लोग कहते हैं कि यह आदि बद्री में सुरक्षित रखा है। वैसे ही पौण्ड्र शंख भीष्म के पास और युधिष्ठिर के शंख का नाम अनंतविजय था। अर्जुन के शंख का नाम देवदत्त था।
हीरा शंख - हीरा शंख को पहाड़ी शंख भी कहा जाता है, तांत्रिक लोग महालक्ष्मी की पूजा के लिए इस शंख का प्रयोग करते हैं। यह बहुमुल्य माना जाता है और पहाड़ों पर पाया जाता है। यह शंख दक्षिणावर्ती शंख की तरह ही खुलता है।
मोती शंख मोती शंख को घर में स्थापित करने पर सुख-शांति का वास होता है। साथ ही यह हृदय रोगनाशक भी माना गया है। इसकी हर रोज पूजा करने पर आर्थिक उन्नति होती है। अगर इस शंख को कारखाना, दुकान या ऑफिस में रखेंगे तो कभी भी आपको व्यापार घाटा नहीं होगा।
महालक्ष्मी शंख - इस शंख को श्रीयंत्र भी कहा जाता है क्योंकि इसका नाम महालक्ष्मी शंख है। मान्यता है कि यह महालक्ष्मी का प्रतीक है। इसकी आवाज सुरीली होती है और जिस भी घर में पूजा-अर्चना होती है, वहां देवी लक्ष्मी का स्वयं वास होता है।
शंख के प्रकार - सनातन परंपरा में शंख को बेहद शुभ माना गया है,जिनमें कामधेनु शंख, गणेश शंख, अन्नपूर्णा शंख, मोती शंख, विष्णु शंख, ऐरावत शंख, पौंड्र शंख, मणिपुष्पक शंख, देवदत्त शंख और दक्षिणावर्ती शंख शामिल है. वामावर्ती, दक्षिणावर्ती तथा गणेश शंख या मध्यवर्ती शंख,इन तीनों ही प्रकार के शंखों में कई तो चमत्कारिक हैं, तो कई दुर्लभ और बहुत से सुलभ हैं, सभी तरह के शंखों के अलग-अलग नाम हैं.
शंख की ध्वनि शुभता को दर्शाती है, हिन्दू पूजा-पद्धति में शंख बजाया जाता है,भगवान विष्णु जी के हाथों में भी शंख है, जिसका नाम पांचजन्य है,ब्रह्मवैवर्त पुराण में शंख के महत्व को बताते हुए कहा गया है कि शंख में जल रखने और इसे छिड़कने से वातावरण शुद्ध होता है, अर्थात शंख धार्मिक और वैज्ञानिक रूप से बेहद ही महत्वपूर्ण है,वैदिक कर्म कर्मकांड के तहत पूजा-पाठ में शंख का विशेष महत्व माना गया है, इसकी ध्वनि से न केवल आस-पास का वातावरण पवित्र होता है, बल्कि इसे रखने मात्र से ही तमाम तरह की बीमारियां भी दूर होती हैं.
वास्तु और फेंगशुई के अनुसार, शंखनाद और शंख रखने के कई फायदे हैं,वास्तु शास्त्र के अनुसार शंख नियमित रूप से बजाना सेहत के लिए बेहतर होता है,फिर चाहे छोटा शंख हो या बड़ा,मान्यता है कि शंख बजाने से हृदय संबंधी बीमारियां नहीं होती.
फेंगशुई के मुताबिक शंख रखना बेहद शुभ होता है,यह कार्यक्षेत्र में सुख-समृद्धि लेकर आता है,इसे रखने मात्र से ही व्यवसाय-व्यापार में वृद्धि होती है,शंख भगवान बुद्ध के पैरों में बने 8 शुभ चिन्हों में से एक है.
वैज्ञानिकों का मानना है कि शंख की आवाज से वातावरण में मौजूद कई तरह के जीवाणुओं-कीटाणुओं का नाश हो जाता है,कई शोध से इस तरह के नतीजे मिले हैं.!!शुभ मंगलमय हो भगवान केदारनाथ प्रभो की कृपा बनी रहें। आचार्य अजय कृष्ण कोठारी श्रीमद्भागवत कथा वक्ता ज्योर्तिविद/ग्राम कोठियाडा़,पो.ओ-बरसीर, रुद्रप्रयाग {श्री कोटेश्वर शक्ति वैदिक भागवत पीठ एवं ज्योतिष संस्थान्}उत्तराखंड