ॐ में छिपा है सम्पूर्ण संसार का रहस्य,चमत्कार ॐ उच्चारण मात्र से होते हैं, अनेकों लाभ,जानिए इसका महत्व
ॐ में छिपा है सम्पूर्ण संसार का रहस्य,चमत्कार ॐ उच्चारण मात्र से होते हैं, अनेकों लाभ,जानिए इसका महत्व
सबसे तेज प्रधान टाइम्स गबर सिंह भण्डारी
श्रीनगर गढ़वाल । ॐ का उच्चारण तीन ध्वनियों से मिलकर बना है,{अ, उ और म} इनका अर्थ वेदों में भी बताया गया है,यह तीनों अक्षर तीनों देवों से संबंधित हैं,अ आकार,उ,उंकार और म,मकार है,अ,ब्रह्मा का बोध कराने वाला है तो वहीं ॐ पालनकर्ता श्री हरि विष्णु का वाचक है. आज आपको /ज्योतिषाचार्य अजय कृष्ण कोठारी/ ओम् के महत्व, इतिहास एवं धार्मिक मान्यताओं के बारे में विस्तार से बता रहे हैं,ॐ ब्रह्माण्ड के अंदर नियमित ध्वनि है,सूक्ष्म इंद्रियों द्वारा ध्यान लगाने पर इसकी अनुभूति हो सकती है,सर्वत्र व्याप्त होने के कारण इस ध्वनि (ॐ) को ईश्वर (प्रणव) की संज्ञा दी गई है,जो ॐ के अर्थ को जानता है,वह अपने आप को जान लेता है और जो अपने आप को जान लेता है वह ईश्वर को जान लेता है.
ॐ की उत्पत्ति कहाँ से हुई? -ओम की उत्पत्ति भगवान शिव के मुख से ही हुई है जो भी इस ओंकार मंत्र का जप प्रति दिन करता है वो शिव कृपा का भागी होता है.
ओम किसका प्रतीक है? - इस लिहाज से इसे ईश्वर के तीन स्वरूपों- ब्रह्मा, विष्णु, और महेश का संयुक्त रूप कहा जाता है. यानी ॐ में ही सृजन, पालन और संहार शामिल हैं. तभी ॐ को स्वयं ईश्वर का ही स्वरूप माना गया है. ॐ के सही प्रयोग, उच्चारण और जाप से जीवन की हर समस्या दूर करने के साथ ही ईश्वर को भी पाया जा सकता है.
ॐ का रहस्य क्या है? और कैसे होतें हैं ॐ से स्वास्थ्य लाभ ?- मन पर नियन्त्रण करके शब्दों का उच्चारण करने की क्रिया को मन्त्र कहते है,मन्त्र विज्ञान का सबसे ज्यादा प्रभाव हमारे मन व तन पर पड़ता है,मन्त्र का जाप एक मानसिक क्रिया है,कहा जाता है कि जैसा रहेगा मन वैसा रहेगा तन, यानि यदि हम मानसिक रूप से स्वस्थ्य है तो हमारा शरीर भी स्वस्थ्य रहेगा,मन को स्वस्थ्य रखने के लिए मन्त्र का जाप करना आवश्यक है,जीवन जीने की शक्ति और संसार की चुनौतियों का सामना करने का अदम्य साहस देने वाले ओम् के उच्चारण करने मात्र से विभिन्न प्रकार की समस्याओं व व्याधियों का नाश होता है.
सृष्टि के आरंभ में एक ध्वनि गूंजी ओम और पूरे ब्रह्माण्ड में इसकी गूंज फैल गयी,पुराणों में ऐसी कथा मिलती है कि इसी शब्द से भगवान शिव, विष्णु और ब्रह्मा प्रकट हुए,इसलिए ओम को सभी मंत्रों का बीज मंत्र और ध्वनियों एवं शब्दों की जननी कहा जाता है.
इस मंत्र के विषय में कहा जाता है कि,ओम शब्द के नियमित उच्चारण मात्र से शरीर में मौजूद आत्मा जागृत हो जाती है और रोग एवं तनाव से मुक्ति मिलती है.
इसलिए धर्म गुरू ओम का जप करने की सलाह देते हैं, जबकि वास्तुविदों का मानना है कि ओम के प्रयोग से घर में मौजूद वास्तु दोषों को भी दूर किया जा सकता है.
ओम मंत्र को ब्रह्माण्ड का स्वरूप माना जाता है। धार्मिक दृष्टि से माना जाता है कि ओम में त्रिदेवों का वास होता है इसलिए सभी मंत्रों से पहले इस मंत्र का उच्चारण किया जाता है जैसे - ॐ नमः शिवाय.!
आध्यात्मिक दृष्टि से यह माना जाता है कि नियमित ओम मंत्र का जप किया जाए तो व्यक्ति का तन मन शुद्घ रहता है और मानसिक शांति मिलती है,ओम मंत्र के जप से मनुष्य ईश्वर के करीब पहुंचता है और मुक्ति पाने का अधिकारी बन जाता है.
वैदिक साहित्य इस बात पर एकमत है कि ओ३म् ईश्वर का मुख्य नाम है. योग दर्शन में यह स्पष्ट है. यह ओ३म् शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है- अ, उ, म. प्रत्येक अक्षर ईश्वर के अलग अलग नामों को अपने में समेटे हुए है. जैसे “अ” से व्यापक, सर्वदेशीय, और उपासना करने योग्य है. “उ” से बुद्धिमान, सूक्ष्म, सब अच्छाइयों का मूल, और नियम करने वाला है,“म” से अनंत,अमर, ज्ञानवान, और पालन करने वाला है. ये तो बहुत थोड़े से उदाहरण हैं जो ओ३म् के प्रत्येक अक्षर से समझे जा सकते हैं. वास्तव में अनंत ईश्वर के अनगिनत नाम केवल इस ओ३म् शब्द में ही आ सकते हैं, और किसी में नहीं.
अनेक बार ओ३म् का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनावरहित हो जाता है।
अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ओ३म् के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं!
यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है।
यह हृदय और खून के प्रवाह को संतुलित रखता है।
ॐ के उच्चारण का रहस्य?? - ॐ है एक मात्र मंत्र, यही है आत्मा का संगीत ओम का यह चिन्ह ‘ॐ’ अद्भुत है, यह संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतीक है,बहुत-सी आकाश गंगाएँ इसी तरह फैली हुई है,ब्रह्म का अर्थ होता है विस्तार, फैलाव और फैलना,ओंकार ध्वनि के 100 से भी अधिक अर्थ दिए गए हैं,यह अनादि और अनंत तथा निर्वाण की अवस्था का प्रतीक है,ॐ को ओम कहा जाता है। उसमें भी बोलते वक्त ‘ओ’ पर ज्यादा जोर होता है,इसे प्रणव मंत्र भी कहते हैं.
त्रिदेव और त्रेलोक्य का प्रतीक :- ॐ शब्द तीन ध्वनियों से बना हुआ है- अ, उ, म इन तीनों ध्वनियों का अर्थ उपनिषद में भी आता है,यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी है और यह भू: लोक, भूव: लोक और स्वर्ग लोग का प्रतीक है.
बीमारी दूर भगाएँ : तंत्र योग में एकाक्षर मंत्रों का भी विशेष महत्व है,देवनागरी लिपि के प्रत्येक शब्द में अनुस्वार लगाकर उन्हें मंत्र का स्वरूप दिया गया है। उदाहरण के तौर पर कं, खं, गं, घं आदि,इसी तरह श्रीं, क्लीं, ह्रीं, हूं, फट् आदि भी एकाक्षरी मंत्रों में गिने जाते हैं.
उच्चारण की विधि : प्रातः उठकर पवित्र होकर ओंकार ध्वनि का उच्चारण करें। ॐ का उच्चारण पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन, वज्रासन में बैठकर कर सकते हैं, इसका उच्चारण 5, 7, 10, 21 बार अपने समयानुसार कर सकते हैं,ॐ जोर से बोल सकते हैं,धीरे-धीरे बोल सकते हैं,ॐ जप माला से भी कर सकते हैं.ॐ की ध्वनि शाश्वत है - संपूर्ण ब्रह्मांड में ॐ का नाद व्याप्त है,यह ध्वनि संपूर्ण सृष्टी और ब्रह्मांड में व्याप्त है। इसलिए ॐ की ध्वनि को ईश्वर के समानार्थ बताया गया है। सम्सत वेदों में ॐ का व्याख्या की गई है,पुराणों में बताया गया है कि ॐ की ध्वनि और प्रकाश के मिलन से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई है,आज भी यह ध्वनि निरंतर रूप से जारी है। पूरे ब्रह्मांड में कंपन,ध्वनि और प्रकाश ही मौजूद है,जिस दिन सूर्य की ऊर्जा भी समाप्त हो जाएगी, उस दिन भी केवल ॐ की ध्वनि और प्रकाश ही उपस्थित होगा.!!शुभ मंगलमय हो भगवान केदार बाबा की कृपा बनी रहें। आचार्य अजय कृष्ण कोठारी श्रीमद्भागवत कथा वक्ता ज्योर्तिविद/ग्राम कोठियाडा़,पो.ओ-बरसीर, रुद्रप्रयाग {श्री कोटेश्वर शक्ति वैदिक भागवत पीठ एवं ज्योतिष संस्थान्}उत्तराखंड