त्रिदिवसीय अखिल भारतीय शोध सम्मेलन का हुआ समापन
सचिन शर्मा
हरिद्वार। श्री भगवानदास आदर्श संस्कृत महाविद्यालय में चल रहे त्रिदिवसीय शोधसम्मेलन का आज समापन हुआ। सम्मेलन के तृतीय दिवस पर देश के प्रतिष्ठित विद्वानों ने विभिन्न शास्त्रीय विषयों पर अपने विचार प्रस्तुत किये। समापन दिवस के प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए गुरुकुल काङ्गड़ी समविश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर प्रो. श्रवण कुमार ने भारतीय एवं पाश्चात्य काव्य परम्परा पर अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में बताया की भारतीय काव्यशास्त्र परम्परा मानवीय जीवन को अनुशासित करना सिखाती है। काव्यशास्त्र में निहित शब्दशक्ति के द्वारा शब्दों के असङ्ख्य अर्थ निकाले जा सकते हैं।
केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय श्रीरघुनाथकीर्त्तिपरिसर देवप्रयाग से मुख्यवक्ता के रूप में उपस्थित प्रो. विजयपाल शास्त्री जी ने पाणिनीव्याकरण तथा भाषाविज्ञान पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि यदि भाषाविज्ञान को ग्रामीण भाषा से जोडकर पढा जाये तो पाणिनीव्याकरण का अध्ययन सरल हो जाता है।
मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रो. जयप्रकाशनारायण ने काव्यशास्त्र की प्रयोजनमूलकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सहृदय व्यक्ति ही काव्य का रसास्वाद ले सकता है। काव्यशास्त्र के ज्ञान के द्वारा मनुष्य व्यवहारज्ञानी तथा यश को प्राप्त करता है। काव्य मानव जीवन का कल्याण करने वाला होता है।
समापन दिवस के द्वितीय सत्र के अध्यक्ष साहित्य अकादमी से सम्मानित केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी जी ने भारतीय एवं पाश्चात्य काव्य सिद्धान्तों पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि काव्य सहृदयों को लोकोत्तर में ले जाती है। उन्होंने बताया कि उत्तम काव्य निर्माण के लिये प्रतिभा होना नितान्त अनिवार्य है अर्थात् कविता का ‘बीजभूत संस्कार-विशेष’ जो कवि में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहता है, ऐसी शक्ति को प्रतिबा कहा जाता है; इसके बिना काव्योत्पत्ति असम्भव है। इसके बिना येन-केन प्रकारेण छन्दरहित पादपूर्ति से काव्य में चारुता नहीं आती।
सम्पूर्तिसत्र में मुख्य-अतिथि के रूप में उपस्थित संस्कृत शिक्षा निदेशक श्री पद्माकर मिश्र जी ने अपने उद्बोधन में श्रेष्ठ काव्य रचना के लिये कवि में निपुणता होनि चाहिए, जो लोकशास्त्र काव्यादि के अवेक्षण से सम्भव है। विशिष्ट-अतिथि के रूप में उपस्थित उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी के सचिव डॉ. वाजश्रवा आर्य जी ने भारतीय काव्यशास्त्र परम्परा पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिये महाविद्यालय को शुभकामनाएँ दी।
सत्रान्त में रूपक-महोत्सव एवं संस्कृत-अॉलम्पियाड़ में विजयी छात्रों को अतिथियों द्वारा सम्मानित किया गया। महाविद्यालय के प्रभारी प्राचार्य डॉ. व्रजेन्द्र कुमार सिंहदेव ने सभी अतिथियों को पौधा तथा श्रीमद्भगवद्गीता प्रदान कर सभी का स्वागत तथा धन्यवाद ज्ञापित किया।
कार्यक्रम का सञ्चालन डॉ. रवीन्द्र कुमार व डॉ. आशिमा श्रवण ने किया। सम्मेलन के समापन अवसर पर डॉ. मञ्जूषा कौशिक, श्री हरीश गुरुरानी, श्री उम्बर प्रसाद, श्री श्यामकान्त चाँपागाई डॉ. बबलू वेदालङ्कार, डॉ. निरञ्जन मिश्र, डॉ. मञ्जु पटेल डॉ. आलोक कुमार सेमवाल, डॉ. दीपक कुमार कोठारी, डॉ. प्रमेश बिजल्वाण, श्री विवेक शुक्ला, श्री अतुल मैखुरी, श्री मनोज कुमार गिरि, डॉ. अङ्कुर कुमार आर्य, श्रीमती स्वाति शर्मा आदि के साथ संस्कृत महाविद्यालयों के प्राध्यापक तथा महाविद्यालय के कर्मचारी उपस्थित रहे।