दुःख ईश्वर का प्रसाद है : एम.एस.रावत
सबसे तेज प्रधान टाइम्स
गबर सिंह भण्डारी
श्रीनगर गढ़वाल। जब भगवान सृष्टि की रचना कर रहे हैं तो उन्होंने जीव को कहा कि तुम्हे मृतलोक जाना पड़े,मैं सृष्टि की रचना करने जा रहे हूं,ये सुन जीव की आंखों आंसू आ गए,वे बोले प्रभु कुछ तो ऐसा करो की मैं लौटकर आपके पास ही आऊ,भगवान को दया आगई,उन्होंने दो बाते की जीव के लिए,पहला संसार की हर चीज में अतृप्त मिला दी कि तुझे दुनिया में कुछ भी मिल जाए तू तृप्त नही होगा,तृप्ति तुझे तभी मिलेगी जब जब तू मेरे पास आयेगा और दूसरा सभी के हिस्से में थोड़ा-थोड़ा दुःख मिला दिया कि हम लौट कर ईश्वर के पास ही पहुंचे,इस तरह हर किसी के जीवन में थोड़ा दुःख है,जीवन में दुःख या विषाद हमे ईश्वर के पास ले जाने के लिए है।
लेकिन हम चूक जाते हैं,हमारी समस्या क्या है कि हर किसी को दुःख आता है,अपने दोस्त रिश्तेदारों के पास कुछ होनेवाला नही,थोड़ा देर का मानसिक संतोष बस यदि दुखों से घबराए नही और ईश्वर का प्रसाद समझ कर आगे बढ़े तो बात बन जाती है,यादि ईश्वर से विलय होने के दिनों को याद करलें तो बात बन जाती है और जीवन दुखों से भी पार हो जाता है,दुःख तो ईश्वर का प्रसाद है,दुखों का मतलब ईश्वर का बुलावा है,ओ हमे याद कर रहा है, पहले भी ये विषाद और दुःख बहुत से संतों के लिए ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बन चुका है,हमे ये बात अच्छे से समझनी चाहिए कि संसार में हर चीज में अतृप्ति है, दुःख और विषाद ईश्वर प्राप्ति का साधन हैं।
--एम.एस.रावत