बेंगलुरु में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में पेश किए गए डॉ. सम्राट सुधा व कुमाऊं विवि की छात्रा के शोध पत्र
अंशु वर्मा/गीतेश अनेजा
बेंगलूरु। के-नारायणपुरा, कोतनूर, बेंगलूरु में स्थित क्रिस्तु जयंती महाविद्यालय, स्वायत्त, के हिंदी अध्ययन विभाग के द्वारा आयोजित समकालीन हिंदी साहित्य में विमर्श की विविध आयाम विषय पर एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न हुई। इस गोष्ठी में देश भर से आये विद्वानों के शोधपत्रों साथ उत्तराखंड के रुड़की में प्रोफेसर साहित्यकार डॉ. सम्राट् सुधा का शोधपत्र समकालीन हिन्दी साहित्य में विमर्श भी ऑफ लाइन प्रस्तुत किया गया । उत्तराखंड के कुमाऊं विश्वविद्यालय की शोध छात्रा आराधना चमोला ने भी हिन्दी साहित्य में किन्नर विमर्श पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया।
उद्घाटन सत्र प्रातः 9:30 बजे से10:30 बजे तक चला । उद्घाटन सत्र में उद्घाटन के रूप में श्रीवेंकटेश्वर विश्वविद्यालय, तिरुपति, हिंदी विभागाध्यक्ष, प्रो.राम प्रकाश ने समकालीन विमर्श पर बहुत विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि अस्मिता-बोध की तभी आवश्यकता पड़ती है, जब हमारी पहचान पर खतरा हो। तात्पर्य यह कि अगर किसी व्यक्ति या समुदाय के जाति, धर्म, कुल, वंश, राष्ट्र, भाषा, लिंग आदि पहचानों को मिटाने या हीन साबित करने की कोशिश की जाती है तो वह अमुक व्यक्ति या समुदाय इन पहचानों को बचाने की चेष्टा करता है। इस रूप में अपने विचारों को प्रकाश डाला है ।
बीज वक्ता के रूप में पांडिचेरी केंद्रीय विश्वविद्यालय,पुदुच्चेरी, हिंदी विभागाध्यक्ष, प्रो.पद्माप्रिया श्रीरामकवचम ने बीज व्याख्यान में विचारों को व्यक्त करते हुए नारी अस्मिता अपने स्थूल रूप में नारी की वैयक्तिकता, व्यक्ति या मनुष्य के रुप में उसकी गरिमा, प्रतिष्ठा तथा पहचान है , जिसमें अपने जीवन पर खुद उसकी सत्ता होती है और स्त्री सबलीकरण पर विस्तार से अपने विचारों को प्रकट किया गया है।
अध्यक्ष के रूप में क्रिस्तु जयंती महाविद्यालय, स्वायत्त के प्राचार्य फादर. डॉ. अगस्टीन जॉर्ज ने अस्मिता मलक चिंतन पर विशेष रूप से प्रकाश डाला है।
विशेष उपस्थिति के रूप में मानविकी संकाय के अध्यक्ष, डॉ. गोपकुमार. ए.वी. ने अस्तित्व एवं अस्मिता की आवश्यकता पर अपने विचारों को प्रकट किया है। विषय प्रवर्तक के रूप में हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ.श्रीधर पी.डी ने समकालीन हिंदी साहित्य में विमर्श की विविध आयाम की रूपरेखा को विश्लेषण करते हुए अपने विचारों का अभिव्यक्त किया ।
उत्तराखंड के रुड़की से प्राप्त साहित्यकार तथा प्रोफेसर डॉ. सम्राट् सुधा के शोधपत्र की ऑफ लाइन प्रस्तुति की गयी। डॉ. सम्राट् सुधा के शोध का प्रतिपाद्य यह रहा कि कि समकालीन हिन्दी साहित्य के चर्चित विमर्श दलित विमर्श ; स्त्री विमर्श ; किन्नर विमर्श ; समलैंगिक विमर्श ; वृद्ध विमर्श ; बाल विमर्श आदि हैं, जो अपनी अंतर्वस्तु में अभी अधिक या कहें पूर्ण विमर्श तक नहीं पहुंचे हैं , दूसरी ओर समकालीन हिन्दी साहित्य के विशिष्ट नाम का महत्त्वपूर्ण प्रश्न अभी अनुत्तरित है ! समग्रतः हम कह सकते हैं कि समकालीन हिन्दी साहित्य के विमर्श आज भी अपूर्ण ही हैं।
उत्तराखंड के कुमाऊं विश्वविद्यालय की शोध छात्रा आराधना चमोला ने भी हिन्दी साहित्य में किन्नर विमर्श विषयक अपने शोध पत्र में प्रतिपादित किया कि हिन्दी साहित्य में किन्नर विमर्श को गंभीरता से नहीं लिया गया है। कतिपय कथाओं में उपहास के रूप में उनका वर्णन है, परंतु वर्तमान हिन्दी साहित्य में अब इसे समुचित विमर्श के रूप में स्थान दिया जा रहा है।
इस एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी दो सत्रों में आयोजन किया गया था, जिसका पहला सत्र-समकालीन हिंदी साहित्य में आदिवासी, पर्यावरण और वृद्ध विमर्श था, दूसरा सत्र- समकालीन हिंदी साहित्य में दलित, स्त्री, पुरुष, बाल और अन्य विमर्शों को रखा गया था। बेंगलूरु और भारत के अन्य राज्यों से पधारे प्राध्यापक, शोधार्थी, छात्र-छात्राएं इस संगोष्ठी में अपना प्रपत्र प्रस्तुत किया है। कार्यक्रम बहुत ही सक्रिय एवं सफलता के साथ आयोजन किया। कार्यक्रम का संचालन प्रो. विनोद बाबूराव मेघशाम ने किया, धन्यवाद ज्ञापन कृष्णा डी लमानी ने किया है। कार्यक्रम के संयोजक के रूप में डॉ .मुस्लिम अब्दुल रजाक और डॉ गनशेतवार साईनाथ नागनाथ किया। विभाग के सभी प्राध्यापक- प्रो. विनोद बाबूरावमेघशाम, डॉ. मोहम्मद नयाज पाषा, डॉ कृष्णा डी लमानी आदि प्राध्यापक उपस्थित थे।