पहाड़ी ढलान की स्थिरता पर शोध के लिए एनआईटी को मिला 38.88 लाख रुपये का परियोजना अनुदान
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गबर सिंह भण्डारी
श्रीनगर गढ़वाल। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान(एनआईटी), उत्तराखण्ड एक वाह्य वित्त पोषित परियोजना के तहत राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में ढलान की स्थिरता (स्लोप स्टेबिलिटी) का अध्ययन करने जा रहा है। "स्टडी ऑफ ड्रेनेज पैटर्न इन श्रीनगर गढ़वाल सिटी एंड इट्स इन्फ्लुएंस ऑन हिल स्लोप स्टेबिलिटी" नामक इस अनुसन्धान परियोजना में जल निकासी पैटर्न और मिट्टी/चट्टान गुणों के आधार पर ढलान की स्थिरता का आंकलन किया जाएगा। इस परियोजना पर कार्य करने के लिए सिविल इंजीनियरिंग विभाग के सह प्राध्यापक डॉ.विकास प्रताप सिंह को तीन साल की अवधि के लिए उच्च शिक्षा अनुदान एजेंसी (एचईएफए) द्वारा 38.88 लाख रुपये की राशि अनुदानित की गई है।
एनआईटी के निदेशक प्रोफेसर ललित कुमार अवस्थी ने परियोजना के मुख्य अन्वेषक डॉ.विकास प्रताप सिंह को बधाई दी और कहा कि एनआईटी उत्तराखंड सामाजिक हित और स्थानीय मुद्दों के तकनीकी समाधान खोजने के लिए अनुसंधान और विकास गतिविधियों में सदैव सक्रिय है।
उन्होंने आगे कहा कि शहरीकरण के कारण बुनियादी ढांचे की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। पहाड़ी शहरों में भूमि कि कमी के बावजूद भी उच्च जनसंख्या घनत्व और घरेलू सीवेज की खराब जल निकासी आदि के साथ अनियोजित और बेतरतीब निर्माण देखा जा रहा है। इस तरह के सभी कारक पहाड़ी ढलानों को ठीक उसी तरह कमजोर और अस्थिर बनाते हैं,जैसे जोशीमठ में भूमि धसावं और भवन में दरारों की हालिया घटनाओं के मामले देखा गया था।
प्रोफेसर अवस्थी ने रेखांकित किया कि वर्तमान परिदृश्य में, यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रासंगिक है क्योंकि इस प्रकार के अवांछित ढलान विफलताओं के कारण लोगों की आजीविका और आश्रय का काफी नुकसान होता है, जिसका समाज पर प्रतिकूल असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि इस अध्ययन के निष्कर्ष अन्य पहाड़ी शहरों में इसी तरह के अध्ययन आयोजित करने के लिए एक बेंचमार्क के रूप में काम कर सकते है। इसके अलावा स्थानीय प्रशासन और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण आदि के लिए एक मार्गदर्शक और लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने का काम कर सकते है।
परियोजना के मुख्य अन्वेषक डॉ.विकास प्रताप सिंह ने बताया कि इस अध्ययन में टोही सर्वेक्षण के माध्यम से,गंभीर रूप से झुकी हुई पहाड़ी ढलानों पर स्थित आवासीय और वाणिज्यिक भवनों के साथ कई अन्य स्थानों की पहचान की जाएगी। उसके बाद ढलान की ज्यामिति और भौतिक गुणों के बारे में डेटा एकत्रित किया जाएगा जिसका उपयोग ढलान स्थिरता का प्रारंभिक विश्लेषण करने के लिए किया जाएगा। प्रारंभिक स्थिरता विश्लेषण के आधार पर,आगे के अध्ययन के लिए सबसे कमजोर स्थानों की पहचान की जाएगी। इसके बाद संरचनात्मक भार,जल निकासी पैटर्न (सीवेज और अपवाह दोनों) सामग्री गुणों के निर्धारण के लिए चट्टान/मिट्टी के नमूने का परीक्षण और अन्य साइट-विशिष्ट मापदंडों पर विस्तृत जांच की जाएगी। अंत में इस डेटा के आधार पर उपयुक्त पारंपरिक ढलान स्थिरता विधि और कम्प्यूटेशनल टूल का उपयोग करके एक विस्तृत ढलान स्थिरता विश्लेषण आयोजित किया जाएगा।
उन्होंने यह भी अनुमान लगाया गया है कि सर्वेक्षण और अध्ययन से प्राप्त तकनीकी डेटा का उपयोग कमजोर ढलानों की निगरानी और प्रारंभिक चेतावनी जारी करने के लिए एक प्रणाली विकसित करने के लिए भी किया जा सकता है।