किताबों के बीच : डॉ. सम्राट् सुधा
सचिन शर्मा
हरिद्वार। " बाक़ी काम छोड़कर , महीनों की लगातार मेहनत से लेखक एक किताब लिखता है और पाठक जब तक सारे कामों से निपट नहीं लेता , उसे हाथ नहीं लगाता !" सामरसेट मॉम के इस वाक्य से मैं पूरी तरह सहमत नहीं; मॉम के सम्भवतः कतिपय वैयक्तिक अनुभव रहे होंगे । व्यक्तिगत रूप से पुस्तकों को प्राथमिकता के रूप में अपने जीवन में स्थान देते अनेक लोगों के चेहरे आज ' विश्व पुस्तक दिवस ' पर मेरे समक्ष हैं।
यूनेस्को द्वारा वर्ष 1995 में घोषित 'विश्व पुस्तक दिवस' आज है । इस दिवस विशेष को पुस्तक दिवस रखने के पीछे यूनेस्को की दृष्टि निगेला सर्वांटिस, इंका ग़ैरसिलासो और सर्वाधिक स्थापित साहित्यिक विलियम शेक्सपियर पर रही , जिन सभी की पुण्यतिथि 23 अप्रैल ही है। अस्तु, यह दिन उपर्युक्त साहित्यकारों के प्रति श्रद्धांजलि का भी दिन है! सभी को नमन ! सो, इन सभी की स्मृति में पुस्तकों को उन्नयन देने हेतु 23 अप्रैल को ही ' विश्व पुस्तक दिवस ' घोषित किया गया , लेकिन साथ ही कॉपीराइट【 ©】की बाध्यता व अनुपालन के संग !
यूनेस्को के एक अध्ययन के अनुसार कोरोना काल में पुस्तक पढ़ने की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।
यह सही बात हैं कि पुस्तक पठन , चाहे किसी भी विषय का हो, कम हुआ ही है । जिस शहर में मैं रहता हूँ , वहाँ विविध अध्ययन की पुस्तकों की मात्र 2 दुकानें हैं , इनमें भी मात्र एक ही में साहित्यिक पुस्तकें उपलब्ध हैं।सार्वजनिक पुस्तकालय एक है और ऐसी वैयक्तिक लाइब्रेरी,जिनमें पुस्तकें प्रतिदिन निकाल कर सचमुच पढ़ी भी जाती हों, अज्ञात होते हुए भी लगता यही है कि बहुत ही कम हैं। देश की कई प्रमुख रेलगाड़ियों में रवाना होने से पूर्व कभी पत्रिकाएं भी दी जाती थीं , अब वे न्यूज़पेपर तक सिमट कर रह गयीं हैं। सार यही है कि पुस्तक सम्भवतः बहुत लोगों के लिए अनावश्यक या अचिंतनीय हैं ।
अरसे पहले लेमनी स्निकोट का एक कथन पढ़ा था -" कभी ऐसे व्यक्ति पर भरोसा ना करें, जिसने अपने साथ पुस्तक ना लायी हो !" उम्र के साथ यह कथन बहुत सटीक प्रमाणित हुआ। घोर संघर्ष से स्वयं को सिद्ध करने वाले मैक्सिम गोर्की ने ' मेरे विश्वविद्यालय' में लिखा है -" इन पुस्तकों ने मेरे हृदय को निखारा और उन खरोंचों तथा दाग- धब्बों को साफ़ कर दिया , जो कटु और मैली- कुचैली वास्तविकता से रगड़ खाने के कारण मेरे हृदय पर पड़ गये थे। मैं उन्हें पढ़ता और एक अडिग विश्वास से मेरा हृदय भर जाता ; मुझे लगता कि दुनिया में मैं अकेला नहीं हूँ और देर या सवेर अपना रास्ता खोज लूँगा !"
कॉपीराइट कानून की अपने देश में बहुत अच्छी स्थिति नहीं है। अधिकांश पत्रिकाएं लेखक की रचना से सम्बद्ध कोई 'कॉन्ट्रेक्ट' नहीं करती हैं, जिसका लाभ प्रकाशक और लेखक दोनों उठाते हैं!
पुस्तक मात्र हमारे द्वारा ही पढ़ी जाती हैं या वे भी हमें पढ़ती हैं ? मेरे वैयक्तिक अनुभव है कि हाँ , वे भी हमें पढ़ती हैं और सम्यक् राह भी सुझाती हैं। मार्क हेडन कह गये हैं - “पढ़ना एक वार्तालाप है। सभी किताबें बात करती हैं, लेकिन एक अच्छी किताब सुनती भी है।
"वैयक्तिक रूप से मुझे लगता है कि प्रत्येक व्यक्ति को शेक्सपीयर की कविताएं True Love तथा Time and Love अवश्य पढ़नी चाहिए ! स्टीफन किंग का एक वाक्य महत्वपूर्ण है -" Good books don't give up all their secret at once," सोचता हूँ क्या यह बात अद्वितीय व्यक्तियों पर लागू नहीं होती ! दिल भी किताब की ही तरह है ! ख़ालिद शरीफ़ क्या ख़ूब कह गये हैं-
"जो एक लफ्ज़ की ख़ुशबू न रख सका महफूज़
मैं उसके हाथ में पूरी किताब क्या रखता !"
किताब पढ़ना और किताब तक पहुंचना भी एक नियति ही ही हुई ना ! पुस्तक भेंट किया जाना एक पावन सारस्वत परंपरा है और भेंट में पुस्तक मिलना एक सौभाग्य ! सभी पुस्तक प्रेमियों को शुभकामनाएं !
-- डॉ. सम्राट् सुधा