यमराज और डाकू : एम.एस.रावत
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गबर सिंह भण्डारी
श्रीनगर गढ़वाल। एक साधु व डाकू यम लोक पहुंचे,डाकू यमराज से दंडमांगा साधुने स्वर्गकी सुकेसुविदा यमराज ने डाकू को साधू की सेवा करने का दंड दिया साधू तैयार नही हुआ,यम ने साधू से कहा-तुम्हारा तुम्हारा तप अभी अधूरा है,मृत्यु के बाद एक साथ साधू और एक डाकू,साथ-साथ यमराज के दरबार में पहुंचे,यमराज ने अपने बही खातों में देखा और दोनो से कहा यदि तुम दोनो अपने बारे में कुछ कहना चाहते हो,डाकू ने अत्यंत विनम्र शब्दों में बोला महाराज,मैने जीवनभर पाप कर्म किए हैं,मैं बहुत बड़ा अपराधी हूं,अत:आप जो दंड मेरे लिऐ तय करेंगे,मुझे स्वीकार होगा,डाकू के चुप होते ही साधू बोला महाराज,मैने अजीवन तप और भक्तिकी है,मैं कभी असत्य के मार्ग पर नही चला,मैने सदैव सत्कर्म किए हैं, इसलिए आप कृपा कर मेरे लिए स्वर्ग के सुख साधनों का प्रबंध करें,यमराज ने दोनों की इच्छा सुनी और डाकू से कहा कि तुम्हे दंड दिया जाता है कि तुम आज से साधुकी सेवा करो,डाकू ने सिर नवा कर आज्ञा स्वीकार करली,यमराज की यह आज्ञा सुन कर साधु ने आपत्ति करते हुऐ,कहा महाराज !इस पापी के स्परस से मै अपवित्र हो जाऊंगा,मेरी तपस्या तथा भक्ति का पुण्य निरार्थक हो जायेगा,यह सुनते ही यमराज क्रोधित होते हुऐ बोले-निरपराध और भोले भाले व्यक्तियों को लूटने और हत्या करने वाला तो इतना विनम्र हो गया कि तुम्हारी सेवा करने के लिऐ तैयार हूं,और एक तुम हो कि वर्षों की तपस्या के बाद भी अहंकारग्रस्त ही रहे और यह न जाने सके कि सबमें एकही आत्मतत्व समाया हुआ है,तुम्हारी तपस्या अधूरी है,अत: आज से तुम इस डाकू की सेवा करो।
--एम.एस.रावत