संस्कृत शिक्षा निदेशक डॉ. भारद्वाज का नवसृजन साहित्यिक संस्था ने किया अभिनन्दन
कुलदीप शर्मा
विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ की ओर से भी हुआ सम्मान
रुड़की। संयुक्त निदेशक माध्यमिक शिक्षा डॉ. आनंद भारद्वाज को उत्तराखंड में संस्कृत शिक्षा निदेशक बनाए जाने पर रुड़की की साहित्यिक संस्था 'नव सृजन' द्वारा उनके सम्मान में एक अभिनंदन समारोह एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। वरिष्ठ साहित्यकार सुबोध कुमार पुंडीर 'सरित्' की अध्यक्षता में इस कार्यक्रम का संचालन ग़ज़लकार पंकज त्यागी 'असीम 'ने किया। मंचासीन मुख्य अतिथि डाॅ.आनंद भारद्वाज ,विशिष्ट अतिथि पूर्व प्राचार्य डॉ. श्रीमती मधुराका सक्सेना, वरिष्ठ साहित्यकार कृष्ण सुकुमार ,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीगोपाल नारसन, डॉ. दिनेश त्रिपाठी, अध्यक्षता कर रहे सुबोध पुंडीर एवं संस्था महासचिव किसलय क्रांतिकारी को बैज अलंकरण के उपरांत सभी अतिथियों ने माॅं सरस्वती के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्वलन किया। वरिष्ठ साहित्यकार सुरेंद्र कुमार सैनी द्वारा रचित माॅं सरस्वती वंदना का वाचन नगर के गायक अनिल वर्मा अमरोहवी द्वारा किया गया । नव सृजन साहित्यिक संस्था के समन्वयक सुरेंद्र कुमार सैनी ने डॉ. आनंद भारद्वाज के सम्मान में लिखे गए अभिनंदन पत्र को पढ़कर उनकी उपलब्धियों का उल्लेख किया । सन् 1987 से दिल्ली में यूनियन एकेडमी कनॉट प्लेस में प्रवक्ता (भौतिक विज्ञान) के पद से अपने कैरियर की शुरुआत करके आज सन् 2024 में संस्कृत शिक्षा निदेशक उत्तराखंड के पद पर पहुंचने तक के उनके सफर को उनके दृढ़ संकल्पित होकर जनहित में समर्पित भाव से विभागीय कार्य करने का परिचायक बताया गया । अभिनंदन पत्र को संस्था के पदाधिकारियों तथा मंचासीन सभी अतिथियों ने सामूहिक रूप से डॉ. आनंद भारद्वाज को भेंट किया। इस अवसर पर रणवीर सिंह व श्रीमती दीपिका सैनी तथा अशोक वशिष्ठ सहित अनेक आगंतुकों ने डॉ. भारद्वाज को फूल तथा बुके देकर उनका सम्मान किया। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. श्रीगोपाल नारसन ने अपनी कविता 'आनंदम आनंदम आनंदम /डॉ. भारद्वाज की उपलब्धियों का आनंदम' सुनाकर सबको रोमांचित कर दिया तथा बाद में उन्होंने इस कविता को अभिनंदन पत्र के रूप में ही विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ की ओर से डॉक्टर भारद्वाज को भेंट भी किया। काव्य गोष्ठी में शायर पंकज त्यागी 'असीम' की ग़ज़ल 'जाने वो किस जमीन के झांसे में आ गया/ भाई मुखाल्फ़ीन के झांसे में आ गया' को बहुत सराहना मिली। डाॅ. मधुराका सक्सेना की कविता 'काया और माया का ऐसा यहां खेल है/ सांप और नेवले का ही अब यहां मेल है' को भी लोगों ने पसंद किया। गीतकार पंकज गर्ग की ग़ज़ल 'अगर अपना बना लो जान दे दे/ ये पंकज है कभी बिकता नहीं है' तथा साहित्यकार महावीर 'वीर' के मुक्तक 'खुद को दिनकर कहने वाले लाखों फिरते हैं, लेकिन/ रात मिटा कर जो दिन कर दे वह दिनकर कहलाता है' को खूब वाहवाही मिली। साहित्यकार कृष्ण सुकुमार की ग़ज़लों को भी सराहा गया। डॉ. वंदना भारद्वाज ने अपने पिता डॉ. आनंद भारद्वाज की लिखी ग़ज़ल 'कोई सोता है महलों में, कोई जंगल में सोता है /यह किस्सा है नसीबों का, जो लिक्खा है वो होता है' सुना कर पूरे वातावरण को भावुक कर दिया। काव्य गोष्ठी में सौ सिंह सैनी, नवीन शरण 'निश्चल', अशोक वशिष्ठ, अरविंद भारद्वाज, अनुपमा गुप्ता, राम शंकर सिंह तथा राम कुमार राम ने भी काव्य पाठ किया। मुख्य अतिथि डॉ. आनंद भारद्वाज ने इस अभिनंदन कार्यक्रम को आयोजित करने के लिए नवसृजन साहित्यिक संस्था का धन्यवाद ज्ञापित किया तथा बताया कि संस्कृत शिक्षा निदेशक बनने के उपरांत उन्होंने निर्णय लिया है कि संस्कृत भाषा के विस्तार एवं उन्नयन के लिए कुछ ठोस कार्य जमीनी स्तर पर किए जाएंगे जिसके अंतर्गत उत्तराखंड राज्य में 65 संस्कृत प्रवेशिका विद्यालय स्थापित किए जाएंगे, जिन्हें चलाने के लिए कोई भी सक्षम व्यक्ति या रजिस्टर्ड संस्था आवेदन कर सकती है। इन विद्यालयों में कक्षा 5 तक की संस्कृत शिक्षा दी जाएगी तथा संस्कृत पढ़ाने वाले शिक्षक को मानदेय देने के लिए केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय दिल्ली ने अपनी सहमति भी प्रदान कर दी। डॉ. दिनेश त्रिपाठी ने नव सृजन संस्था को अपना हर संभव सहयोग देने का आश्वासन दिया। संस्था के महासचिव किसलय क्रांतिकारी ने डॉक्टर भारद्वाज को उनकी प्रोन्नति होने पर संस्था की तरफ से शुभकामनाएं ज्ञापित की। सुबोध कुमार पुंडीर 'सरित्' ने एक खूबसूरत रचना के माध्यम से डॉक्टर आनंद भारद्वाज का स्वागत किया ।
इस कार्यक्रम में श्रीमती अल्का त्रिपाठी, रणवीर सिंह रावत, श्रीमती दीपिका सैनी, श्रीमती रश्मि त्यागी, श्याम कुमार त्यागी तथा विराट हिंदुस्तान आदि मौजूद रहे।