पितरों के ऋण से उऋण होने का अवसर है श्राद्धपक्ष : आचार्य रितेश
आज से दो अक्टूबर तक होगा पितृपक्ष
पितरों के ऋण से उऋण होने का अवसर है श्राद्धपक्ष : आचार्य रितेश
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सचिन शर्मा
हरिद्वार। आश्विन कृष्ण पक्ष को पितृपक्ष या श्राद्धपक्ष कहते हैं। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक 16 दिनों का श्राद्ध पक्ष माना जाता है। ज्योतिषाचार्य पंं. रितेश कुमार तिवारी ने बताया कि इस साल श्राद्धपक्ष 17 सितंबर से शुरू हो रहे हैं जो 2 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या के साथ समाप्त होंगे। उन्होंने कहा कि श्राद्धपक्ष पितृ ऋण उतारने का सबसे पावन अवसर होता है। शास्त्रों के अनुसार, जिस तिथि में पितरों की मृत्यु हुई हो, पितृपक्ष की उसी तिथि में श्राद्ध करना चाहिए। मान्यता है कि विधि-विधान से श्राद्ध करने पर पितरों की श्राद्ध करने से पितृ ऋण से छुटकारा मिल जाता है और पितृदेव प्रसन्न होकर सुख-शांति, समृद्धि एवं वैभव प्रदान करते हैं। शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध कर्म कभी व्यर्थ नहीं होता है। देवकार्य से भी ज्यादा महत्वपूर्ण पितृ कार्य माना गया है। उन्होंने बताया कि देवताओं से पहले पितरों को तृप्त करना चाहिए। पितरों की श्राद्ध करने से कुल में वीर, निरोगी, शतायु एवं श्रेय प्राप्त करने वाली संततियां उत्पन्न होती हैं। ज्योतिषाचार्य पंं. रितेश कुमार तिवारी ने बताया कि यदि किसी को अपने पितरों के देहावसान की तिथि मालूम नहीं हों तो ऐसी स्थिति में आश्विन अमावस्या को तर्पण किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि शास्त्रों के मुताबिक, पुत्र ही पिता को पुं नामक नरक से मुक्ति दिलाता है। इसलिए पुत्र को ही श्राद्ध, पिंडदान का अधिकारी माना गया है। पुत्र के अभाव में पुत्री का पति यानी दामाद, पुत्री का पुत्र यानी दोहता, भ्राता आदि को श्राद्ध कर्म का अधिकारी माना गया है।