सिद्धपीठ ज्वाल्पा देवी मंदिर का आध्यात्मिक रहस्य--आचार्य भाष्करानंद अणथ्वाल
सिद्धपीठ ज्वाल्पा देवी मंदिर का आध्यात्मिक रहस्य--आचार्य भाष्करानंद अणथ्वाल
सबसे तेज प्रधान टाइम्स गबर सिंह भण्डारी श्रीनगर गढ़वाल। देवभूमि उत्तराखंड में अनेकों देवी देवताओं के सिद्धपीठ स्थापित है आज आपको सिद्धपीठ मां भगवती ज्वालपा देवी के आध्यात्मिक रहस्य के विषय में अचार्य भाष्करानंद अणथ्वाल विस्तृत जानकारी दे रहे हैं। स्कन्द पुराण के केदार खंड में वर्णन है कि एक बार इंद्र ऐरावत पर सवार विचरण कर रहे थे वहीँ पुलोम राक्षस की पुत्री सचि भी वहां अपनी सहेलियों के साथ विचरण कर रही थी,अनायास सचि की दृष्टि इंद्र पर पड़ी,उसके मन में इंद्र को वर के रूप में पाने की इच्छा उत्पन्न हुई,उसने ऋशियों से पुछा कि यह कैसे संभव होगा,ऋशियों ने परामर्श दिया कि नाबालिका नदी के तट पर दिप्त ज्वाला के रूप में दिप्त ज्वलेश्वरी ज्वाल्पा माता धाम है वहां पर आप तपस्या करो,सचि ने ज्वाल्पा धाम में मां दिप्त ज्वलेश्वरि ज्वाल्पा माता की अखंड तपस्या की मां ज्वाल्पा ने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे इंद्र के रूप में वर प्राप्त होने के वर प्रदान किया तथा इंद्र ने उसे पत्नी के रूप में स्वीकार किया,आज भी जिन कन्याओं के विवाह में विलम्ब होता है तथा वें ज्वाल्पा माता की सच्चे मन से आराधना करती हैं उनका विवाह शीघ्र हो जाता है,पूर्व में इस स्थान का नाम अमकोटी था,यहां ढाकरी रात को विश्राम करते थे,किवदन्ती के अनुसार एक कफोला विष्ट रात्रि विश्राम के बाद सुबह अपना भारा नहीं उठा सका,बाद में भारे (ढाकर) को खोलकर देखा गया तो उसमें पिंडी स्वरुप मां की मूर्ती पाई गई,अणथ्वालों के पूर्वज रामदेव जी ने एक छोटा सा मंदिर बनाया और उसमें माँ दिप्ति ज्वलेश्वरी (ज्वाला के रूप में ) की मूर्ती स्थापित कर दी,तथा अखंड जोत की स्थापना कर दी,तभी से अणथ्वाल बंधु (अणेथ,कोला,नौगांव ) पुजारी के रूप में पूजा करते आ रहे हैं,अर्द्धनारीश्वर के रूप में हिमालय की अधिष्ठात्री माँ पार्वती तथा गणेश जी की मूर्ती भी स्थापित है,8 सदी में आदि शंकराचार्य ने मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा तथा जीर्णोद्धार किया। "मां सिद्धि बुद्धि प्रदायनी है,मां भवानी भय हरिणी मातु मातेश्वरी,जयति जय जय ज्वाल्पा मां जोत जगदी रौ तेरी" अणथ्वाल बंधु पांता (बारी) के रूप में अखंड ज्योत की रक्षा करते हैं तत्कालीन टिहरी के राजा ने भी पुजारियों को ताम्रपत्र दिया था तथा दीपक के तेल के लिए सेरा भी प्रदान किया था,पूर्व में वसंत पंचमी को यहां मेला लगता था,मां के मंदिर में शेर का भी यहां पर आध्यात्मिक रहस्य है। नवरात्रों में यहां पूजा दुर्गा सप्तशती का पाठ वह हवन किया जाता है और मेला लगता है।