बृज का सुंदर अनुभव : एम एस रावत
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गबर सिंह भण्डारी
श्रीनगर गढ़वाल। बृज में अब भी बहुतों को बहुत सुंदर-सुंदर अनुभव होते हैं,एक साधु थे,भगवान के दर्शन के लिए सब जगह घूमे,पर कही भी कोई अनुभव नहीं हुआ,सोचा अब अंतिम जगह गिरिराज चलें,वहां किसी न किसी रूप में भगवान के दर्शन होई गै,बृज में आए न जान न पहचान एकादशी का दिन था,फलाहार कहां मिले,एक बालक आया बोला बाबा मेरी मां एकादशी का व्रत करती हैं,ब्राह्मण जिमाने के लिए आपको बुला रही हैं,बाबाजी गए, बूढ़ी माता ने ब्रह्मण को प्रसाद बड़े प्रेम से दिया,भर पेट खाकर फिर बोले वह बालक कहां गया माई,बुढ़िया माताजी बोली कौन बालक,बोले जो हमे बुला कर लयों,बूढ़ी माता जी बोली मेरा न कोई लड़का है,न मैने बुलाया है,आप आ गए थे,मैने अतिथि समझकर आपका स्वागत किया, ऐसी बहुत सी घटनाएं होती ही रहती हैं।
श्रीकृष्ण की कृपासे असम्भव भी सम्भव हो जाता है,श्रीकृष्ण जी की वंशि धुन सुन बृंदावन के पत्थर पिघल जाते हैं,आप तो मनुष्य हो,किसी दिन कृपा करके यादि एक हल्की सी स्वप्न झांकी उन्होंने दिखा दिया तो बस,उनकी याद में जीवन भर मुस्कराते ही रह जाओगे,बस मन किसी प्रकार उनकी लीला में फंस जाए,तो काम बन जाए। सोचिए सोचिए गायों की कतार खड़ी है,श्याम सुंदर हाथ में दोहनी लेकर खड़े हैं,गायें हरी-हरी दूब चर रही हैं,श्याम सुंदर का सखा सुबल पास में खड़ा है, प्रत्येक गाय रंभा रही है तथा चाहती हैं कि श्रीकृष्ण पहले उसे दुहें, कृष्ण तो भक्तवत्सल कल्पतरू हैं,एक ही समय एक ही क्षण जितनी गाय हैं,उतने रूपों में दोहने बैठ जाते हैं,बछड़ा श्री कृष्ण की पीठ सूंघ रहा है,गाय श्रीकृष्ण सिर सूंघ रही है,दूर खड़ी राधा रानी सखी की कंधे पर हाथ रखकर यह मधुर छवि निहार रही हैं,उनकी आंखों में प्रेमके आंसू झरते जा रहे हैं, अब इन्ही गायों में,बच्छड़ों में,दूध में ही मन लगा रहे और मृत्यु हो जय। तो इससे अच्छी मृत्यु और क्या हो सकती होगी।
निराश नही होना चाहिए,कभी किसी दिन एक क्षण में ऐसी घटना हो जायेगी कि बस,उस रस समुंद्र में बह जाइयेगा उसमें यह नियम नही कि धीरे-धीरे,उठते-उठते तब होगा,किसी दिन अचानक कोई ऐसी कृपा की आंधी आयेगी कि उड़ाकर,बिल्कुल जमीन से उठाकर रस-समुंद्र के ठीक मध्यमे ले जा कर पटक देगी वहां,जहां से फिर लोटना असंभव होगा,किनारे जबतक पड़े हो तभी तक आगे बढ़ते रहना ,बस इतना ही आगे बढ़ते रहना है कि जबतक कृपा की आंधी न आवे तब तक काल-क्षेम निरंतर नाम-जप करते हुए,बिताएं,साथ में मानसिक लीला चिंतन चलता रहे।