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धार्मिक, वैज्ञानिक एवं वास्तु दृष्टि से पूजा पाठ में घण्टी क्यों महत्वपूर्ण है

धार्मिक, वैज्ञानिक एवं वास्तु दृष्टि से पूजा पाठ में घण्टी क्यों महत्वपूर्ण है

धार्मिक, वैज्ञानिक एवं वास्तु दृष्टि से पूजा पाठ में घण्टी क्यों महत्वपूर्ण है                                                                    

 सबसे तेज प्रधान टाइम्स                                                                               

गबर सिंह भण्डारी                                                                                                                             

श्रीनगर गढ़वाल।आज हम आपको घण्टी के बारे में विस्तृत जानकारी से अवगत करा रहे हैं,महत्व घण्टा या घण्टी का प्रयोग क्यों किया जाता है - पूजा पाठ के दौरान घण्टा/घण्टी क्यों बजाई जाती है, जानिए धार्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व - घण्टा पूजन के अलावा घंटी लगाए जाने का वास्तु की दृष्टि से बेहद ही खास महत्व है,प्रवेश द्वारा घंटी या घंटा लगाए जाने से मंदिर में नकारात्मक शक्तियां प्रवेश नहीं करती है,वहीं दूसरी ओर घंटी की ध्वनि से चारो ओर का वातावरण सकारात्मक होता है,भगवान के पूजन का यह एक अहम यंत्र है

आज आपको/ज्योतिषाचार्य अजय कृष्ण कोठारी/ घण्टा के विषय में विस्तार से बता रहे हैं,मंदिर के द्वार पर और विशेष स्थानों पर घंटी या घंटे लगाने का प्रचलन प्राचीन काल से ही रहा है,लेकिन इस घंटे या घंटी लगाने का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व क्या है? कभी आपने सोचा कि यह किस कारण से लगाई जाती है.?

 भगवान के पूजन का यह एक अहम यंत्र है,सनातन संस्कृति में पूजन के दौरान घंटी बनजे से जो ध्वनि उत्पन्न होती है उसे अत्यंत शुभ ध्वनि माना जाता है.

   घंटी पांच से सात कीमती धातुओं से बनती है, जो ग्रहों से जुड़ी हैं,सीसा (शनि), टिन (बृहस्पति), लोहा (मंगल), तांबा (शुक्र), पारा (बुध), चांदी (चंद्रमा) और सोना (सूर्य),एक क्लैपर अंदर से जुड़ा होता है और घंटी बजने पर ऊंची तीखी और तेज आवाज करती है.

पूजा या यज्ञ के दौरान पूजारी द्वारा एक घंटी भी बजाई जाती है,ओम् के लंबे उपभेदों को उत्पन्न करने के लिए विशेष रूप से घंटियाँ बनाई जाती हैं,कई लोगों का मानना है कि, मंदिर में घंटी बजाने से भगवान खुश होते है, लेकिन घंटी के बजाने से जो ध्वनि उत्पन्न होती है उससे आस पास का वातावरण पवित्र और शुद्ध होता है, घंटी की ध्वनि से सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है जिससे वातावरण में मौजूद सूक्ष्म वैक्टीरिया व नकारात्मक ऊर्जा का विनाश होता है.

हिंदू धर्म में घंटी बजाते समय जिस मंत्र का जाप किया जाता है वह है-

     आगमार्थं तु देवानां गमनार्थं तु रक्षसाम् ।

कुरु घण्टारवं करोम्यादौ देवताह्वान लाञ्छनम् ॥

अर्थात – मैं यह घंटी बजाता हूं जो देवत्व के आह्वान का संकेत देता है, ताकि पुण्य और महान शक्तियां प्रवेश करेंय और शैतानी और बुरी शक्तियाँ, भीतर और बाहर से निकल जाती हैं.

पौराणिक कथाओं की मानें तो, घंटी बजाकर भक्त अपने आगमन की सूचना देवता को देता है,घंटी की आवाज शुभ मानी जाती है जो देवत्व का स्वागत करती है और बुराई को दूर करती है,कहा जाता है कि घंटी की आवाज मन को चल रहे विचारों से अलग करती है और इस प्रकार मन को अधिक ग्रहणशील बनाती है,लोक मान्यता यह भी है कि, पूजा अर्चना के दौरान घंटी बजने से हमेशा भटकते मन को नियंत्रित करने और देवता पर ध्यान केंद्रित करने में सहायता मिलती है.

घंटी से निकलने वाली आवाजें अंतरिक्ष समाशोधन तंत्र की तरह होती हैं। यह मंदिर में ऊर्जावान असंतुलन को दूर करने के लिए है। हर बार जब कोई भक्त आता है, तो वह उस क्षेत्र के स्थान को साफ कर देता है ताकि उसे कंपन की पूरी मात्रा मिल सके। हॉल में ऊर्जा को अवशोषित करने के लिए बनाए गए मंदिर ऊर्जावान टॉवर हैं। इसलिए जब लोग नकारात्मक ऊर्जा छोड़ते हैं। घण्टी बजाने से यह ऊर्जाओं को शुद्ध करता है ताकि व्यक्ति को फिर से ताजी ऊर्जा का प्रवाह मिले।

  योगिक दृष्टि से-कुंडलिनी योग के दृष्टिकोण से, घंटी की आवाज मनुष्य शरीर के चक्रों को तेजी से सक्रिय करती है और शरीर में ऊर्जा का संचार करती है। साथ ही घंटी कितनी बार बजानी चाहिए यह मंत्र के अक्षरों की संख्या पर निर्भर करता है। तदनुसार घंटी को 8, 16, 24 या 32 बार बजाया जाना चाहिए। शिल्प शास्त्रों में यह उल्लेख किया गया है कि घंटी पंचधातु से बनी होनी चाहिए – पाँच धातुएँ, अर्थात् तांबा, चाँदी, सोना, जस्ता और लोहा। ये पांच धातुएं पंच भूत का प्रतिनिधित्व करती हैं।

    हिन्दू प्रतिक-घंटियों का सनातन संस्कृति में प्रतीकात्मक अर्थ है। घंटी का घुमावदार शरीर अनंत का प्रतिनिधित्व करता है। घंटी की ताली या जीभ सरस्वती का प्रतिनिधित्व करती है, जो इच्छा और ज्ञान की देवी हैं। घंटी का हैंडल प्राण शक्ति – महत्वपूर्ण शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है और प्रतीकात्मक रूप से हनुमान, गरुड़, नंदी (बैल) या सुदर्शन चक्र से जुड़ा हुआ है।

घण्टा/घण्टी के प्रकार -घंटियां 4 प्रकार की होती हैं  - 

1- गरूड़ घंटी, 2- द्वार घंटी, 3- हाथ घंटी और 4- घंटा.!1.गरूड़ घंटी - गरूड़ घंटी छोटी-सी होती है जिसे एक हाथ से बजाया जा सकता है.

2.द्वार घंटी - यह द्वार पर लटकी होती है,यह बड़ी और छोटी दोनों ही आकार की होती है.

3.हाथ घंटी - पीतल की ठोस एक गोल प्लेट की तरह होती है जिसको लकड़ी के एक गद्दे से ठोककर बजाते हैं.

4.घंटा - यह बहुत बड़ा होता है,कम से कम 5 फुट लंबा और चौड़ा,इसको बजाने के बाद आवाज कई किलोमीटर तक चली जाती है.

मंदिर में घंटी लगाए जाने के पीछे न सिर्फ धार्मिक कारण है बल्कि वैज्ञानिक कारण भी इनकी आवाज को आधार देते हैं, धार्मिक महत्व - पहला कारण घंटी बजाने से देवताओं के समक्ष आपकी हाजिरी लग जाती है,मान्यता अनुसार घंटी बजाने से मंदिर में स्थापित देवी-देवताओं की मूर्तियों में चेतना जागृत होती है जिसके बाद उनकी पूजा और आराधना अधिक फलदायक और प्रभावशाली बन जाती है.

दूसरा कारण यह कि घंटी की मनमोहक एवं कर्णप्रिय ध्वनि मन-मस्तिष्क को अध्यात्म भाव की ओर ले जाने का सामर्थ्य रखती है,मन घंटी की लय से जुड़कर शांति का अनुभव करता है,मंदिर में घंटी बजाने से मानव के कई जन्मों के पाप तक नष्ट हो जाते हैं,सुबह और शाम जब भी मंदिर में पूजा या आरती होती है तो एक लय और विशेष धुन के साथ घंटियां बजाई जाती हैं जिससे वहां मौजूद लोगों को शांति और दैवीय उपस्थिति की अनुभूति होती है.

तीसरा कारण यह कि जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ,तब जो नाद (आवाज) गूंजी थी वही आवाज घंटी बजाने पर भी आती है,घंटी उसी नाद का प्रतीक है.

उल्लेखनीय है कि यही नाद 'ओंकार' के उच्चारण से भी जागृत होता है,कहीं-कहीं यह भी लिखित है कि जब प्रलय आएगा उस समय भी ऐसा ही नाद गूंजेगा,मंदिर के बाहर लगी घंटी या घंटे को काल का प्रतीक भी माना गया है.

वैज्ञानिकों का कहना है कि जब घंटी बजाई जाती है तो वातावरण में कंपन पैदा होता है, जो वायुमंडल के कारण काफी दूर तक जाता है,इस कंपन का फायदा यह है कि इसके क्षेत्र में आने वाले सभी जीवाणु, विषाणु और सूक्ष्म जीव आदि नष्ट हो जाते हैं जिससे आसपास का वातावरण शुद्ध हो जाता है.

अत: जिन स्थानों पर घंटी बजने की आवाज नियमित आती है वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध और पवित्र बना रहता है,इससे नकारात्मक शक्तियां हटती हैं. नकारात्मकता हटने से समृद्धि के द्वार खुलते हैं.!!शुभ मंगलमय हो भगवान केदारनाथ प्रभो की कृपा बनी रहें। आचार्य अजय कृष्ण कोठारी श्रीमद्भागवत कथा वक्ता ज्योर्तिविद/ग्राम कोठियाडा़,पो.ओ-बरसीर, रुद्रप्रयाग {श्री कोटेश्वर शक्ति वैदिक भागवत पीठ एवं ज्योतिष संस्थान्}उत्तराखंड



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