वसंत की दस्तक पर साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच दीपशिखा की काव्य गोष्ठी हुई आयोजित
वसंत की दस्तक पर साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच दीपशिखा की काव्य गोष्ठी हुई आयोजित
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मनीषा सूरी /पीयूष सूरी
हरिद्वार। ऋतुराज वसंत के आगमन की दस्तक और भारतीय गणतंत्र दिवस की 73 वीं वर्षगांठ के निमित्त दीपशिखा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच ने अपनी अध्यक्षा डा. मीरा भारद्वाज के राजलोक विहार स्थित निवास पर एक सरस काव्य गोष्ठी का आयोजन किया। देर शाम तक चली इस गोष्ठी में नगर के अनेक लोकप्रिय कवियों ने अपनी काव्य छटा बिखेरी। कवि गोष्ठी का संचालन डा. सुशील कुमार त्यागी 'अमित' ने किया और अध्यक्षता डा. मीरा भारद्वाज ने की। वाग्धीश्वरी माँ वीणापाणि की प्रतिमा के सम्मुख दीप प्रज्वलन तथा पुष्पार्चन के बाद सुश्री वृंदा शर्मा की वाणी वंदना से प्रारम्भ हुई इस गोष्ठी में मदन सिंह यादव ने 'धरती का फूलों से हो गया श्रृंगार, मौसम में आई बसंत की बहार' कह कर ऋतुराज का स्वागत किया तो वरिष्ठतम कवि पं. ज्वाला प्रसाद शांडिल्य 'दिव्य' ने 'झूम उठी है मेदिनी फूला हर श्रृंगार, तन-मन प्रफुल्लित ओर चहुँ, मुदिता हुई अपार' के साथ वासंती वातावरण का महिमा मंडन किया। डा. मीरा भारद्वाज ने 'श्रद्धा सुमन करें अर्पण, राष्ट्रभक्ति का भाग जगाएं, आओ मिल गणतंत्र मनाए' सुना कर भारतीय गणतन्त्र को नमन किया, डा. सुशील कुमार त्यागी 'अमित' ने ' बेड़ी की पायल पैरों, और तोंक गले के हार मिले, थी फिक्र किस तरह भारत को, आज़ादी का उपहार मिले' के साथ भारत के स्वाधीनता सेनानियों को याद किया तो 'मुक्ति फौज की गाथा बाचूँ देश प्रेम की तान में, आओ अनुपम गीत सुनाऊँ वीर बोस की शान में' के साथ नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को श्रद्धा सुमन अर्पित किये। कवि महेश भट्ट 'उत्प्रेरक' ने 'राष्ट्रप्रेम का आराधन तन मन धन से करना होगा राष्ट्रप्रेम की धाराओं का सिंचन करना ही होगा' के साथ राष्ट्र प्रेम का आह्वान किया। युवा कवियित्री श्रीमती कंचन प्रभा गौतम ने 'कंठ में मेरे जो भी ईश्वर है, वह तेरा ही है वरदान, यह जग सूना मूक-बधिर सा, जो न होता तेरा ज्ञान' के साथ स्वर-देवी माता सरस्वती के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की, तो कवि अरुण कुमार पाठक ने 'मानव जीवन कुछ भी नहीं ये सपनों का संसार है, क़दम क़दम पर सपने बुनना इसका कारोबार है' सुना कर संसार में मानवीय नियति के दर्शन को सामने रखा।
'ज़िन्दग़ी को देखा तो मैं ज़िन्दग़ी से मिल गयी, शर्माई सकुचाई सी, हर कली खिल गयी' प्रस्तुत करके वासंती बयार का असर डा. कल्पना कुशवाहा 'सुभाषिनी' ने बयाँ किया, तो उधर साधुराम 'पल्ल्व' ने भी 'उषा की तरुण किरण तुम मन को भाती हो, जब नित्य सवेरे अलसाई सी छत पर आती हो' के साथ जाड़े में चढ़ती धूप का स्वागत किया और प्रफुल्ल ध्यानी ने कुचले हैं हर्फ़, ज़ख्मी है इन पर मैल्यार आनी है, अभी तो निकली हैं कोपलें, फूल्ले का खिलना बाकी है' कह कर गोष्ठी में वासंती रंग घोला और 'माटी की नैया पर एक ज्योतिका सवार थी, परमेश्वर से मिलने चली प्रार्थी की गुहार थी' सुना कर नवोदित कवियित्री वृंदा शर्मा ने ख़ूब तालियाँ बटोरीं।