सौंदर्य और प्रेम का प्रतीक बसन्त पॅचमी -अखिलेश चन्द्र चमोला
सौंदर्य और प्रेम का प्रतीक बसन्त पॅचमी -अखिलेश चन्द्र चमोला
सबसे तेज प्रधान टाइम्स गबर सिंह भण्डारी
श्रीनगर गढ़वाल । भारत वर्ष को ऋतु ओं का देश भी कहा जाता है।यहां पर बसन्त, ग्रीष्म, शरद,हेमन्त, शिशिर ऋतु ओं की अनुपम छटा देखने को मिलती है।इन सब ऋतु ओं का अपना अलग महत्व है।बसन्त ऋतु को ऋतु ओं का राजा कहा जाता है।शास्त्रों में बसन्त ऋतु के सन्दर्भ में कहा गया है --जिस ऋतु में मानव जगत ही नही,अपितु प्रकृति प्रदत्त बृक्ष लता आदि भी आनन्दित होते हैं,उसे बसन्त कहते हैं।माघ मास की शुक्ल पंचमी को बसन्त पंचमी मनाई जाती है।हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ शुक्ल पंचमी 25 जनवरी को दोपहर 12बजकर 34मिनट से लेकर अगले दिन 26 जनवरी को सुबह 10बजकर 30 मिनट तक रहेगी।उदय तिथि के आधार पर 26 जनवरी को ही बसन्त पंचमी का पुनीत त्योहार है।इस दिन रवि योग भी बन रहा है।जो हर दृष्टि से बड़ा ही शुभ कारी माना जाता है।
मान्यता है कि इस दिन माॅ सरस्वती का प्रकटीकरण हुआ था।इस कारण आज के दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है।इससे अज्ञानता दूर होती है।ज्ञान की रश्मियों से पूरा मन अभिसिन्चित होने लगता है।सुखद पहलु ओं की अनुभूति होने लगती है।
इस दिन मां सरस्वती की पूजा करने के साथ ही पीले वस्त्र तथा हल्दी का तिलक भी लगाने का बिधान है।पीला रंग सुख समृद्धि का प्रतीक है।इस पर्व को ऋषि पंचमी के नाम से भी जाना जाता है।बसन्त पंचमी में किसी कार्य करने की शुरुआत के लिए मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती है।यह पर्व अपने आप में बड़ा ही शुभ कारी माना जाता है।
इस पर्व पर जन्म लेना भी अपने आप में बड़ा ही शुभ कारी माना जाता है।ऐसा ब्यक्ति भविष्य में नया कीर्तिमान स्थापित करता है।इसी दिन प्रगति वादी काव्य धारा के प्रणेता सूर्य कान्त त्रिपाठी निराला जी का जन्म हुआ। यह पर्व प्रमुख देश भक्त वीर बालक हकीकत की भी याद दिलाता है।महाकवि कालीदास ने इसे ऋतु उत्सव तथा हजारीप्रसाद द्विवेदी ने मादक उत्सवों का काल कहा।बसन्त पंचमी के पावन पर्व से पृथ्वी पर सच्चे स्वर्ग की अनुभूति होने लगती है
(लेखक राज्य के उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान के साथ स्वर्ण पदक तथा बिभिन्न राष्ट्रीय सम्मानोपाधियों से सम्मानित हैं)