मां भुवनेश्वरी देवी मन्दिर,जहां श्रृंग के रूप में होती है देवी की पूजा
मां भुवनेश्वरी देवी मन्दिर,जहां श्रृंग के रूप में होती है देवी की पूजा
सबसे तेज प्रधान टाइम्स गबर सिंह भण्डारी
श्रीनगर गढ़वाल ।उत्तराखंड में आद्य शक्ति मां भुवनेश्वरी का एकमात्र ऐसा मंदिर है,जहां देवी प्रतिमा के स्थान पर लिंग पूजा होती है,इस लिंग को श्रृंग भी कहते हैं,लोक मान्यता है कि यह श्रृंग अनादि काल से यहां स्थित है,मां भुवनेश्वरी देवी के मंदिर में श्रद्धापूर्वक पुष्प चढ़ाने और पूजा अर्चना के बाद धर्म, अर्थ, काम और अंत में मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. आज आपको/ज्योतिषाचार्य अजय कृष्ण कोठारी/ मां भुवनेश्वरी देवी के विषय में बता रहे हैं
गढ़वाल मंडल मुख्यालय पौड़ी से करीब 20 किमी दूर कोट ब्लाक के भवन गांव के समीप चंद्रकूट पर्वत के शीर्ष पर विराजमान अष्ठ खंब के बीच में मंदिर के गर्भ गृह में प्रकाशमान लिंग स्थापित है,पुजारी पंकज जुयाल बताते हैं कि इस लिंग को साक्षात देवी के तीन रूपों में मान्यता है,भुवनेश्वरी मंदिर समिति के सचिव नवीन जुयाल बताते हैं कि भगवती भुवनेश्वरी ही आद्य शक्ति हैं, वह अखिल ब्रह्मांड की स्वामी हैं,ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन्हीं के चरणों की वंदना करते हैं,यही वजह है कि कोट के भुवनेश्वरी मंदिर में सुबह ब्रह्म मुहूर्त में माता को जगाने के लिए धूयैंल बजाई जाती है,तीन जोड़ी ढोल दमाऊं की घमक (धूयैंल) दूर गांवों तक पहुंचकर लोगों को जगाती है,ग्रामीण सुबह उठते ही भुवनेश्वरी का स्मरण कर दिन का शुभारंभ करते हैं,रात्रि में बाजगीर धूयैंल देकर आरती के साथ ही माता को विश्राम तक पहुंचाते हैं,आध्यात्म के साथ ही भुवनेश्वरी मंदिर और आसपास का क्षेत्र प्राकृतिक नजारों से भी भरपूर है,यही वजह है कि नवरात्रों में यहां हजारों की संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ती है.
भुवनेश्वरी सिद्धपीठ से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर बाबा भैरवनाथ जी की गुफा है,जो झिलमिल गुफा के नाम से प्रसिद्ध इस गुफा में श्रद्धालु बाबा का आशीर्वाद लेने के लिए पहुंचते हैं,मनोरम दृश्य और सौंदर्य से परिपूर्ण यह जगह यात्रियों को आनंदित कर देती है,श्री भुवनेश्वरी सिद्धपीठ से जुडी एक पौराणिक कथा बहुत ही प्रचलित है.कथा के अनुसार समुद्र मंथन से निकले विष को पीने के बाद भगवान शिव उसके प्रभाव को शांत करने के लिए बिना किसी को बताए मणिकूट पर्वत की घाटी में मणिभद्रा व चन्द्रभद्रा नदी के संगम पर स्थित बरगद की छांव तले समाधिस्थ हो गए,इसके बाद माता सती,शिव के परिजन तथा समस्त देवतागणों ने भगवान शिव को खोजना शुरू कर दिया,खोजते-खोजते करीब 40 हजार वर्ष बीत गए, जिसके बाद माता सती को पता चला कि भगवान शिव मणिकूट पर्वत की घाटी में समाधिस्थ है,इसके बाद माता सती जब वहां पहुंची तो देखा भगवान शिव की समाधि नहीं खुली है,ऐसे में माता सती भी ब्रह्मकूट नामक पर्वत के शिखर पर बैठकर तपस्या करने लगी,करीब 20 हजार वर्ष और बीत जाने के बाद भगवान शिव की समाधि खुली,माता सती के इस अनन्य तप के कारण यह स्थान सिद्धपीठ कहलाया। देवताओं के आग्रह पर माता यहां पिंडी रूप में विराजमान हुईं.!!शुभ मंगलमय हो भगवान बद्री विशाल की कृपा बनी रहें। आचार्य अजय कृष्ण कोठारी श्रीमद्भागवत कथा वक्ता ज्योर्तिविद/ग्राम कोठियाडा़,पो.ओ-बरसीर, रुद्रप्रयाग {श्री कोटेश्वर शक्ति वैदिक भागवत पीठ एवं ज्योतिष संस्थान्}उत्तराखंड