किसानों को दरकिनार करके नहीं हो सकता भारत का विकास : डा० रविंद्र प्रताप राणा
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लंढौरा। चमनलाल महाविद्यालय में आयोजित किसान संगोष्टी में देश के किसानों की समस्याओं पर बोलते हुए डा० रविंद्र प्रताप राणा ने कहां की भारत का विकास किसानों को दरकिनार करके नहीं हो सकता किसान यदि संकटग्रस्त होंगे तो देश का हर वर्ग प्रभावित होगा।
चमनलाल महाविद्यालय में किसानों की आत्महत्या, सुलगता भारत,समस्याएं,चुनौतियों को लेकर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी मे बोलते हुए डा० अतवीर यादव ने कहा कि उत्पादन लागत का बढ़ना तथा फसल की सहीं किमत न मिलना ही किसान की सबसे बड़ी समस्या है। कार्पोरेट ओर सरकारों की मिलीभगत से उत्पादन लागत में बेतहाशा बढ़ोतरी हो रही हैं। उन्होंने सरकार के दबाव में मिडिया द्वारा सहीं तथ्यों को सामने न लाने की बात कहीं।
इस मौके पर डा० रविंद्र प्रताप राणा ने कहा कि सरकार किसानों की अनदेखी कर रही हैं। यही वजह है कि कृषि बिल का विरोध कर रहे किसानों मे ढाई सौ किसानों की मौत हो चुकी है मगर सरकार किसानों की पीड़ा समझने के बजाए अपनी जगह अडिग हैं। देश में किसानों आत्महत्या करना एक चिंता का विषय है। पिछले कुछ समय में मीडिया और सर्वे करने वाली संस्थाओं पर सरकारी नियंत्रण बढ़ा है। जिससे सही आंकड़े सामने नहीं आ रहे हैं। वर्तमान में मात्र 23 फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था है लेकिन किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अपनी फसल नहीं भेज पाते। बहुराष्ट्रीय कंपनियों और फैक्ट्रियों ने किसान की जमीन ही नहीं छीनी है उन्होंने किसानों की हवा और पानी में भी जहर घोल दिया है। कॉरपोरेट को कृषि क्षेत्र में प्रवेश कराने के लिए खाद्य सामग्री की संग्रह करने की सीमा खत्म कर दी गई है। और यह कॉरपोरेटर व्यवस्था हमें संवेदनहीन बना रही है। गन्ना किसानों का लगभग 20000 करोड़ रुपए चीनी मिलों पर बकाया है और किसान बैंकों से या साहूकारों से कर्ज लेकर आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं। संगोष्ठी में बोलते हुए डा० आशुतोष भटनागर ने कहा कि किसी भी क्षेत्र में नीतियां बनाने का काम विश्वविद्यालयों में होना चाहिए इसे राजनीतिक लोगों के चंगुल से बचाना होगा तभी हम इस देश के मजदूरों और किसानों का भला कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि कभी हम प्रति हेक्टेयर सर्वाधिक धान उगाते थे लेकिन विकास की अंधी दौड़ ने हमें उस स्थिति में पहुंचा दिया है जब हमारे किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं। हमें खेती के अपने अनुभव से सीखना होगा। देशी बीज तथा देशी खाद इस देश में कृषकों की दुर्दशा दूर करने में सक्षम है आज समय है कि हम अपनी नीतियों का पुनर्मूल्यांकन करें। पूंजीवादी व्यवस्था ने गांव की आत्मनिर्भरता को खत्म कर दिया है और हम विकास के नाम पर अपना भविष्य नष्ट कर रहे हैं। यह स्थिति इस देश के भविष्य के लिए बहुत खतरनाक है। डा० सुरजीत सिंह ने कहा कि किसानों की दुर्दशा दूर करने का एक ही उपाय है कि हम गांव को आत्मनिर्भर बनाएं कृषि क्षेत्र में अनुसंधान की आवश्यकता है। कृषि क्षेत्र की विदेशों पर निर्भरता खत्म कर स्वदेशी साधनों को अपनाकर अभी हम किसानों की जिंदगी को खुशहाल बना सकते हैं। क्योंकि किसान इस देश की मुख्य धुरी है लेकिन आज तक वह खुद को विकास की धारा से नहीं जोड़ पाया क्योंकि हमारे विकास की संकल्पना मैं अधूरापन है। किसान सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थितियों के कारण आत्महत्या करने पर विवश हो रहा है। प्राचार्य डॉ सुशील उपाध्याय ने कहां की किसानों का अपनी धरती के साथ भावनात्मक रिश्ता होता है हर चीज को बाजार के हवाले कर देना खतरनाक साबित होगा। किसान पूंजीवादी व्यवस्था में पूंजीपतियों की चला क्यों का मुकाबला नहीं कर पाएंगे और उनका भविष्य संकट में पड़ जाएगा इसीलिए हमें किसानों को बाजारवादी व्यवस्था के चालक हाथों में सौंपना उचित नहीं है। कॉरपोरेट का पहला और आखरी लक्ष्य केवल लाभ कमाना होता है जो लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के खिलाफ है। गांवों को आत्मनिर्भर बनाकर ही हम किसानों की समस्याओं का हल कर सकते हैं। संगोष्ठी में डा० नीशू कुमार भाटी द्वारा लिखी गई पुस्तक का विमोचन किया गया। इस मौके पर राम कुमार शर्मा,प्राचार्य डा० सुशील उपाध्याय,डा० विमलकांत तिवारी, डा० नवीन कुमार, डा० निशू कुमार भाटी,दिनेश कौशिक,अतुल हरित आदि लोग मौजूद रहे।