नींबू वर्गीय वाले फलों में सिट्रस कैंकर से कैसे करें प्रबन्धन--उद्यान विशेषज्ञ डॉ.राजेंद्र कुकसाल
नींबू वर्गीय वाले फलों में सिट्रस कैंकर से कैसे करें प्रबन्धन--उद्यान विशेषज्ञ डॉ.राजेंद्र कुकसाल
सबसे तेज प्रधान टाइम्स गबर सिंह भण्डारी
श्रीनगर गढ़वाल। नींबू वर्गीय फलों में लगने वाले महत्वपूर्ण रोगों में से एक सिट्रस कैंकर अत्यंत घातक जीवाणु जनित रोग हैं,जो जीवाणु जैन्थोमोनस सिट्राई के कारण होता है। वैसे तो नींबू की सभी प्रजातियां सिट्रस कैंकर रोग के लिए संवेदनशील होती हैं लेकिन यह रोग सर्वाधिक कागजी नींबू में पाया जाता है। इस बीमारी का संक्रमण पौधों के सभी भागों जैसे,पत्तियों,टहनियों,कांटों,पुरानी शाखाओं और फलों आदि पर होता है। इस बीमारी से रोगग्रस्त पौधों में उपज की हानि लगभग किस्म के आधार पर 5 से 35 प्रतिशत तक होती है। यह बीमारी छोटे पौधों के साथ-साथ बड़े पेड़ों में भी आसानी से लग जाती है। नर्सरी अवस्था में भी पौधे इस रोग के लगने से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। रोग से प्रभावित नींबू के पेड़ की पत्तियां गिरने लगती हैं बाद में पूरा पौधा सूख कर नष्ट हो जाता है। रोग के लक्षण (symptoms) रोग के लक्षणों में नींबू की पत्तियों पर सबसे पहले पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं,जो धीरे-धीरे बढ़कर उभरे हुए खुरदरे एवं भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। फलों को छोड़कर शेष सभी पत्तियों के धब्बे पीले रंग के विलय से घिरे रहते हैं। रोग से प्रभावित फलों के छिलके खुरदरे कार्क की तरह तथा कभी कभी फट जाते हैं। फलों पर धब्बे छिलके तक ही सीमित रहते हैं अतः फलों की उपयोगिता पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। कैंकर रोग से संक्रमित फल दागदार भद्दे दिखाई देते है,दागदार नींबू फल दिखने के कारण ताजे फल के रूप में इसकी बिक्री न के बराबर हो पाती है। इसलिए बाजार में रोग ग्रस्त नीबू का अच्छा मूल्य नहीं मिल पाता है। आमतौर पर इस बीमारी के लक्षण बैक्टीरिया के संपर्क में आने के 14 दिनों के भीतर दिखाई देने लगते हैं। इसके जीवाणु पुराने घावों और पौधों की सतहों पर कई महीनों तक रह सकते हैं। बीमारी से संक्रमित जगह व घावों से जीवाणु कोशिकाएं निकलती है,जो हवा और बारिश के माध्यम से फैलकर दूसरे पौधों को भी संक्रमित कर देती हैं। यह रोग उच्च वर्षा और उच्य तापमान वाले क्षेत्रों में ज्यादा पनपता है। सिट्रस कैंकर रोग का प्रबंधन रोग से ग्रसित व गिरे हुए पत्तों और टहनियों को इकड्डा करके जला कर नष्ट कर दें। नए बागों के रोपण में रोग मुक्त नर्सरी से पौधे खरीदें। नए बागों के रोपण से पहले पौधों को ब्लाइटॉक्स 50 की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी के साथ तथा स्ट्रेप्टोसाइकिलिन की 1 ग्राम मात्रा प्रति 3 लीटर पानी के साथ घोलकर पौधों पर छिड़काव कर दें। इसके बाद ही पौधों को खेतों में लगाएं। पुराने रोग ग्रस्त बागों में मानसून की शुरुआत से पहले प्रभावित पौधों के हिस्सों की छंटाई करें तथा समय-समय पर 1% बोर्डो मिक्चर का छिड़काव एक निश्चित अन्तराल पर समय समय-समय पर करें साथ ही ब्लाइटॉक्स 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी के साथ तथा स्ट्रेप्टोसाइकिलिन की 1 ग्राम मात्रा प्रति 3 लीटर पानी के साथ घोलकर पौधों पर छिड़काव करते रहें। नींबू में फूल आने के तुरंत बाद ब्लाइटॉक्स 50 एवं स्ट्रेप्टोसाइकिलिन का छिड़काव जरूर करें। बोर्डों मिक्चर बनाने की विधि:- 80 ग्राम नीला थोथा (कापर सल्फेट) तथा 80 ग्राम अनबुझा चूना की निर्धारित मात्रा अलग-अलग 5-5 लीटर पानी में घोलें। इन दोनों घोलों को एक साथ उडेलते हुए तीसरे बर्तन में मिश्रित करें तथा लकड़ी की ठंडी से खूब घुमा लें। यही मिश्रण बोड़ो मिश्रण है। मिश्रण को बनाने के लिए कांच,मिट्टी अथवा प्लास्टिक के बर्तनों का ही प्रयोग करें,ताकि नीला थोथा में विद्यमान तांबा धातु के साथ बर्तन की धातु की कोई प्रतिक्रया न हो। बोर्डो मिश्रण बनाने के बाद इसकी अम्लता का परीक्षण करना आवश्यक है। क्योंकि अम्लीय मिश्रण में तांबा धातु के स्वतंत्र कण पौधों के लिए घातक होते हैं। अम्लता के परीक्षण हेतु मिश्रण में एक साफ और तेजधार वाला चाकू समतल अवस्था में कुछ समय के लिए डुवायें और फिर धीरे से बाहर निकाल कर देखें। यदि चाकू की धार के ऊपर लाल भूरे रंग की कोई तह जमी दिखाई दे तो समझें कि मिश्रण अम्लीय हैं,अत: इसमें और चूना मिलाकर इसे सहीे करें। हमेशा ताजा बना हुआ बोर्डो मिक्सचर ही प्रयोग करें।