बाल गंगा में केदारनाथ जैसी आपदा:सुरेश भाई
बाल गंगा में केदारनाथ जैसी आपदा:सुरेश भाई
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सत्यप्रकाश ढौंडियाल
टिहरी गढ़वाल/घनसाली। रक्षा सूत्र आंदोलन के प्रणेता एवं पर्यावरण विद सुरेश भाई ने बताया कि बूढ़ा केदार टिहरी जनपद के भिलंगना ब्लॉक में सहस्रताल ग्लेशियर से आ रही बालगंगा और धर्म गंगा में 26- 27 जुलाई को केदारनाथ जैसा भीषण जल प्रलय देखा गया है। बूढ़ाकेदार में धर्म गंगा और बाल गंगा का संगम है। जिसके किनारे बसे हुए थाती, गोंफल, रक्षिया, तोली, भिगुन समेत दर्जन भर गांवों में तबाही का खतरनाक मंजर सामने आया है। दोनों नदी में अपार जल राशि बढ़ने से किनारो पर बने दर्जनों आवासीय भवन, होटल और गौशालाएं सूखे पत्तों की तरह गिरकर बह गए हैं। नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र के लगभग 20 किमी में छोटे और सीमांत किसानों की खेती-बाड़ी मलवा में तब्दील हो गई है।तोली गांव में मकान के अंदर सो रहे मां बेटी मलवे में दफन हो गए हैं। भिगुन गांव में एक स्कूल पूरी तरह ध्वस्त हो गया। क्षेत्र के आधा दर्जन से अधिक पुल भविष्य में आने-जाने के लिए और भी खतरा पैदा कर सकते हैं। समाज सुधारक स्व० बिहारी लाल जी ने बड़े बांध के विकल्प के रूप में 30 वर्ष पहले इस क्षेत्र में 50 किलो वाट छोटी पन बिजली का निर्माण किया था।वह भी मलवे में तब्दील हो गयी है। उनके द्वारा स्थापित लोक जीवन विकास भारती में भी पानी भर गया है। बहुत देरी से हो रही बारिश के तुरंत बाद ही ऐसी दुर्लभ घटना के बारे में यहां के बुजुर्ग शिक्षक किशोरी लाल नगवान बता रहे हैं की बरसात के समय 7 से 15 दिनों तक लगातार बारिश के बावजूद भी कभी ऐसा नुकसान नहीं देखा।वैसे इस क्षेत्र में 1997 से लेकर 2024 के बीच में लगभग चार बार भीषण जल प्रलय का सामना लोगों ने किया है जिसमें कोट, अगुंडा आदि स्थानों पर जनधन की हानि भी हुई। 2013 की केदारनाथ आपदा के समय यहां भारी नुकसान हुआ है। इसके बाद नदियों में बड़ी मात्रा में गाद भर गया और बड़े-बड़े बोल्डर बहकर खेतों और रास्तों के बीच में जमा हुए थे।लोगों ने इसके बाद सरकार से नदी तटों के ट्रीटमेंट के लिए निवेदन भी किया। लेकिन जो काम हुआ वह इतना घटिया और निम्न दर्जे का था जो बीच-बीच में आयी बाढ़ में बहता गया। इस दूरस्थ क्षेत्र में सरकार का कोई विशेष ध्यान नहीं रहता है। आज भी यहां पर बिजली पानी की आपूर्ति और रास्तों की बुरी हालत है। नदी तटों को सुरक्षित और मजबूत रखने के लिए यहां पर पत्थर, बजरी आदि की कमी नहीं है ।इसके बावजूद बाढ़ से सुरक्षा हो इसका कोई मजबूत प्रयास नहीं हैं। यहां ऊंचाई के क्षेत्र में वनों का कटान बड़ी तेजी से हो रहा है और इसके साथ ही पिछले वर्षों से लगातार आ रही छोटे-बड़े भूकंप से भी धरती जर्जर हो गई है। अभी तो जंगल की आग का धुआं पूरी तरह बुझ ही नहीं था कि बाढ़ लोगों के सर पर आ पहुंची है जिसके लिए भविष्य में सुरक्षित और मजबूत उपाय की दिशा में राज्य को कदम उठाने पड़ेंगे।