बच्छणस्यूं क्षेत्र के रमणीय स्थल व पौराणिक मठ-मंदिरों को रुद्रप्रयाग पर्यटन सर्किट से जोड़े जाने कि मांग
बच्छणस्यूं क्षेत्र के रमणीय स्थल व पौराणिक मठ-मंदिरों को रुद्रप्रयाग पर्यटन सर्किट से जोड़े जाने कि मांग सबसे तेज प्रधान टाइम्स गबर सिंह भण्डारी
श्रीनगर गढ़वाल। जनपद रूद्रप्रयाग का सृजन सन् 1998 में उत्तरप्रदेश की मायावती सरकार द्वारा किया गया जिसमें कि जनपद चमोली जनपद टिहरी और जनपद पौड़ी के क्षेत्र के कुछ क्षेत्रों को मिलाया गया था। पौड़ी जनपद से केवल पट्टी बच्छणस्यूं क्षेत्र की बीस ग्राम सभाओं को जिला रुद्रप्रयाग में सम्मिलित किया गया। सन 1998 से आज सन 2024 चल रहा है इस जनपद को बने 26 वर्ष हो गए हैं। बच्छणस्यूं क्षेत्र में आदि काल से बहुत से पौराणिक मन्दिर और रमणीय स्थल हैं जिनकी ओर आजतक किसी का ध्यान नहीं गया है। इस क्षेत्र के पवित्र और धार्मिक स्थलों का सौन्दर्यीकरण किया जाय। इस विषय में प्रकृति प्रेमी अध्यापक जसपाल सिंह गुसाई ने जानकारी देते हुए बताया कि बच्छणस्यूं क्षेत्र में जो मठ मंदिर हैं वे सभी नागर शैली में सातवीं और ग्यारहवीं शताब्दी बने हुए हैं क्योंकि इतिहासकारों का मानना है कि उत्तर भारत में सभी मन्दिर नागर शैली के हैं और इनका निर्माण कतूरी राजाओं द्वारा किया गया है। पट्टी बच्छणस्यूं में बैरागणा मन्दिर समूह,पंचमुखी महड़ महादेव मंदिर समूह,सिरमुण्डा महादेव मन्दिर,शकुना महादेव क्वली मन्दिर लगभग सभी एक ही शैली में निर्मित थे जो कि अब कुछ इनमें टूटने क कगार पर हैं। बैरागणा मन्दिर समूह में लक्ष्मी और नारायण की मूर्ति विराजमान है हमारे पुराणवेता आचार्य डाक्टर प्रकाश चमोली के लेख के अनुसार जब बद्रीनाथ की डोली इस मार्ग से चली थी तो यहां पर बद्रीनाथ जी ने विश्राम किया था इसलिए इस स्थान पर बद्रीनारायण का मन्दिर निर्मित किया गया और इस क्षेत्र के लोग यही पर आकर बद्री विशाल के दर्शन करते थे। इसी प्रकार महड़ महादेव मन्दिर है जहां पर पांच मुंह का आप शिव लिंग है जो कि मुझे लगता है कि ऐसा पांच मुंह वाले शिव का लिंग उत्तर भारत में कहीं भी देखने को नहीं मिलता है। और इस मन्दिर समूह में एक मड़ मन्दिर भी है जो कि 45 अंश पूरव की ओर झुका हुआ है और आदि काल से ऐसा नहीं खड़ा है क्योंकि मान्यता है कि जब इस मन्दिर के नीचे बच्छण गाड पर एक घाट है जिसे कोलमणि घाट कहते हैं यहां पर इस क्षेत्र के मुर्दो को जलाया जाता था और चित्ता से निकलने वाला धुआं सबसे पहले इस मड मन्दिर में पहुंचता था ऐसी इसकी मान्यता है। डुंगरा गांव के ठीक ऊपर पहाड़ी पर नैना देवी का मन्दिर है जहां पर एक बहुत बड़ा ताल है जिसे बिरही ताल कहते हैं। इस क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता और रूद्रप्रयाग के पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष बिक्रम पटवाल और सतीश पटवाल,सुरी पटवाल दयाल सिंह पटवाल बताते हैं कि जब गंगा जी निकली तो इस ताल में समा गई थी। इससे इस क्षेत्र में बड़ी जन धन की हानि नहीं हुई और देवी की शक्ति से पूरी गंगा नदी धरातल में चली गई जिसका पानी आज भी इस ताल में और ताल के नजदीक एक कुंआ है उसमें निकलता है। बच्छणस्यू और कण्डारस्यूं पट्टी के ठीक बीच में मौजखाल की पहाड़ी पर बांज,बुरांश,काफल,और मोरू के जंगल में मां डौन्डियों भगवती महाकाली के एक मन्दिर है जिसमें पहले पशु बलि दी जाती थी। इस देवी के जो मैती हैं वह ग्राम आंक सेरा बच्छणस्यू के खाती गुसांई लोग हैं। इस मन्दिर के अन्दर एक बहुत बड़ी शिला है जिस पर लाल सिन्दूर,काजल, बिन्दी,और सरसों का तेल लगाया जाता है। इसके दर्शन करने से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है। इस शिला को बाहर निकालने की भी प्रथा है कि यह शिला केवल आंक सेरा के गुसांई लोग ही बाहर निकाल सकते हैं अन्य कोई भी यदि इस शिला को बाहर निकालने का प्रयास करेगा तो उस परिवार में अनर्थ हो जाएगा। इस शिला को बाहर निकालने की भी कुछ मान्यताएं और मूल्य हैं। जो इसके पुजारी हैं वे कण्डारस्यूं पट्टी के सरणा गांव वाले हैं। शिला को बाहर निकालते समय शिला को आंक सेरा के गुसांई लोग उठा कर सरणा के पुजारी के पीठ पर रखते हैं तब यह शिला तीन माह के लिए बाहर खुले में रखी जाती है। इसी तरह यहां पर गुरु गोरखनाथ की पहाड़ी पर स्थित गोरखनाथ मंदिर भी स्थापित है।और कहीं मठ मंदिर इस श्रेत्र में विराजमान हैं। प्रकृति प्रेमी जसपाल सिंह गुसाई ने आगे कहा कि पट्टी बच्छणस्यूं के इस क्षेत्र की पौराणिक धरोहर संस्कृति के सम्बन्ध में यह कहना चाहता हूं कि यहां पर तीर्थाटन और पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। क्यों न इन सभी देव स्थलों और पर्यटन स्थलों का एक सर्किट बनाया जाए जो कि जनपद रूद्रप्रयाग के पर्यटन से जोड़ा जाता। जिससे इनकी मान्यता मूल्यों का और आस्था को प्रोत्साहन मिलता व यहां देश विदेश के लोग देव दर्शन के लिए आते उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती और क्षेत्र का चहुंमुखी विकास होता। रुद्रप्रयाग पर्यटन विभाग से बच्छणस्यूं पट्टी स्थित पौराणिक सिद्धपीठ मठ मंदिरों को पर्यटन सर्किट से जोड़ने के लिए इस क्षेत्र के जनप्रतिनिधि,सामाजिक कार्यकर्ता उत्तराखंड सरकार के कैबिनेट पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज एवं क्षेत्रीय विधायक भरत चौधरी से शीघ्र ही प्रस्ताव बनाकर मुलाकात करेंगे।