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कागभुशुण्डि ताल पर सबसे पहले गरुड़ को सुनाई गई थी रामायण

कागभुशुण्डि ताल पर सबसे पहले गरुड़ को सुनाई गई थी रामायण

सबसे तेज प्रधान टाइम्स                                                                       गबर सिंह भण्डारी                                                              ‌

 श्रीनगर गढ़वाल  देवभूमि उत्तराखंड एक ऐसा राज्य है जिसके कण-कण में कोई न कोई इतिहास छिपा हुआ है। यहां के ऊंचे पर्वत और चोटियों से लेकर कई रहस्यमयी जगहों पर सब कुछ मौजूद है। ऐसा ही एक हैरान कर देने वाला राज समेटे हुए काकभुशुण्डि ताल है,जो उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है,इस झील को पौराणिक समय से ही काफी पवित्र माना जाता है। त्रेता युग से जुड़ी इस झील को लेकर कई रहस्य और मान्यताएं जुड़ी हुई है। यही वजह है कि स्थानीय लोग इस झील को लेकर काफी आस्था रखते हैं। पर्यटक भी इस झील में डुबकी लगाकर अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए यहां आते हैं। आज आपको ज्योतिषाचार्य अजय कृष्ण कोठारी काकभुशुण्डि ताल के विषय में जानकारी दे रहे हैं। चमोली जिले में 4500 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद है काकभुशुंडी ताल,नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व में आता है यह क्षेत्र उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित काकभुशुंडी ताल को रामायण से जुड़ी पवित्र झील माना जाता है,ऐसा माना जाता है कि रामायण के पात्र काकभुंडि ने इसी जगह कौवे के रूप में गरुड़ को रामायण की कथा सुनाई थी,इस झील को त्रेता युग की झील भी कहा जाता है,काकभुंडि ताल को लेकर कई रहस्य और मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। स्थानीय लोग इस झील को लेकर काफ़ी आस्था रखते हैं,यहां स्नान करने से लोगों के पाप धूल जाते हैं और पुण्य में बढ़ोतरी होती है,पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक कौवे अपने अंतिम समय में प्राण त्यागने के लिए काकभुंडी ताल ही पहुंचते हैं। काकभुशुण्डि ताल पर बर्फबारी का होना देश में सर्दी की शुरुआत का संकेत है उत्तराखंड के चमोली जिले में 4500 मीटर की ऊंचाई पर काकभुशुण्डि ताल मौजूद है। यह हिमालयी क्षेत्र की सबसे ऊंची और पवित्र झीलों में एक है। ये करीब 1 किलोमीटर तक फैली हुई छोटी आयताकार झील है जो हाथी पर्वत के तल पर है,इसका पानी हल्का हरा है। झील के किनारों कई तरह के फूल खिलते हैं। इनसे झील की खूबसूरती और बढ़ जाती है। यह क्षेत्र संयुक्त राष्ट्र की विश्व धरोहर स्थल नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व में आता है। इस झील का एक रास्ता हिमालय क्षेत्र में जोशीमठ के पास कांकुल दर्रे से भी होकर जाता है। यहां से ये झील करीब 4730 मीटर की ऊंचाई पर है। काकभुशुण्डि ताल के आसपास बर्फबारी शुरू हो चुकी है। यह देश में सर्दी आने का संकेत है। रामायण से जुड़ी झील इस झील का जितना प्राकृतिक महत्व है,उतना ही धार्मिक महत्त्व भी है,ये रामायण से जुड़ी हुई है। इसका नाम रामायण के पात्र काकभुशुण्डि के नाम पर रखा गया है। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि यहां काकभुशुण्डि ने कौवे के रूप में गरुड़ को रामायण की कथा सुनाई थी। सबसे ऊंची झील होने के साथ ही ये पवित्र भी है। माना जाता है कि यहां स्नान के बाद हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। काकभुशुण्डि की कथा ग्रंथों के मुताबिक लोमश ऋषि के श्राप के कारण काकभुशुण्डि कौवा बन गए थे। श्राप से छुटकारा पाने के लिए उन्हें राम मंत्र और इच्छामृत्यु का वरदान दिया था,इसके बाद उन्होंने पूरा जीवन कौवा के रूप में ही बीताया। काकभुशुण्डि ने वाल्मीकि से पहले ही रामायण गिद्धराज गरूड़ को सुना दी थी। युद्ध के दौरान जब रावण के पुत्र मेघनाद ने भगवान राम को नागपाश से बांध दिया था,तब देवर्षि नारद के कहने पर गिद्धराज गरूड़ ने भगवान राम को नागपाश मुक्त कराया,भगवान राम के नागपाश से बंध जाने पर गरूड़ को उनके भगवान होने पर शक हुआ। गरूड़ का संदेह दूर करने के लिए देवर्षि नारद ने उन्हें ब्रह्मा के पास भेजा। ब्रह्मा ने उन्हें भगवान शिव के पास भेजा और भगवान शिव ने उन्हें काकभुशुण्डि के पास भेज दिया। काकभुशुण्डि ने गरूड़ को राम चरित्र की कथा सुनाकर उनका शक दूर किया। प्राकृतिक सौन्दर्य काकभुशुण्डि ताल इस झील तक पहुंचने के लिए बड़ी झाड़ियों,नदियों,दर्रो और फिसलन वाली चट्टानों से गुजरना पड़ता है। यह सबसे मुश्किल और दुर्गम ट्रैक है। इस ताल की यात्रा नीलकंठ चौखम्बा और नर-नारायण की चोटियों से होकर गुजरती है,कई जगहों पर खड़ी चढ़ाई भी है। मछली के आकार के साथ ही हल्के हरे और नीले पानी से भरा यह ताल अद्भुत है। शांति चाहने वाले लोगों के लिए ये जगह स्वर्ग से कम नहीं है। झील के पास घास के मैदान-नदियां और और जंगल का रास्ता सुकून देता है,काकभुशुण्डि ताल के ऊपर दो विशाल चट्टानें हैं। स्थानीय कथाओं के मुताबिक ये काक कौवा और गरुड़ ईगल हैं,जो चर्चा कर रहे हैं। कौवे मरने के लिए इस झील में आते हैं माना जाता है कि कौवे मरने के लिए इस झील की ओर आते हैं झील के चारों ओर कौवे के टूटे हुए पंख देखे जा सकते हैं लेकिन यहां किसी ने कभी किसी कौवे को मरते नहीं देखा। क्या है इसकी धार्मिक मान्यताएं और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महर्षि वाल्मीकि और तुलसीदास से पूर्व रामकथा का वर्णन करने वाले प्रथम व्यक्ति लोमस ऋषि माने गए हैं जो स्वयं काक (कौवे) की योनि में जाकर काकभुशुण्डि नाम से प्रसिद्ध हुए। मान्यताओं के अनुसार हिमालय क्षेत्र में स्थित यह स्थान उनकी तपोस्थली रहा है,जिसके प्रमाण रामचरितमानस के बाल काण्ड व उत्तर काण्ड में मिलते हैं,यह ताल अर्धचंद्राकार रूप में लभभग 1 से 2 किलोमीटर की गोलाई में बना है,इसे त्रेतायुग की झील भी माना जाता है ताल अपनी सुंदरता और शांत वातावरण के साथ-साथ हरे भरे रंग-बिरंगे फूलों के लिए भी मशहूर है,जिससे इसकी खूबसूरती और अधिक बढ़ जाती है,यह क्षेत्र संयुक्त राष्ट्र की विश्व धरोहर स्थल नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व में आता है,इस झील का एक रास्ता हिमालय क्षेत्र में जोशीमठ के पास के दर्रे से होकर जाता है। कैसे पहुंच सकते हैं-काकभुशुण्डि ताल पहुंचने के लिए पहले जोशीमठ तक आना पड़ता है। यहां से आगे काकभुशुण्डि तक जाने के दो रास्ते हैं। एक भुइंदर गांव से घांघरिया के पास से जाता है, जबकि दूसरा गोविंद घाट से जाता है। यहां से नजदीक में जॉली ग्रांट हवाई अड्डा देहरादून में है। इस झील से एयरपोर्ट की दूरी लगभग 132 किलोमीटर है। एयरपोर्ट से झील तक जाने के लिए कार और टैक्सी मिलती है। झील से नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। यहां से सड़क रास्ते के जरिये जोशीमठ तक पहुंचा जा सकता है। आचार्य अजय कृष्ण कोठारी/ज्योर्तिविद ग्राम कोठियाडा पो.ओ.बरसीर रुद्रप्रयाग श्री कोटेश्वर शक्ति वैदिक भागवत पीठ एवं ज्योतिष संस्थान।



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