भारतेंदु हरिश्चंद्र ने 148 साल पहले किया था मोबाइल में प्रयोग की जाने वाली मिश्रित भाषा का उपयोग : सम्राट सुधा
सचिन शर्मा
रूड़की। आधुनिक हिंदी के पुरोधा भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने आज से 148 वर्ष पूर्व आजकल मोबाइल में प्रयोग की जाने वाली मिश्रित भाषा का प्रयोग किया था । यह जानकारी साहित्यकार प्रोफेसर डॉ. सम्राट् सुधा ने भारतेन्दु की पुण्य तिथि 6 जनवरी की पूर्व संध्या पर एक बातचीत में दी।
डॉ. सम्राट् सुधा ने बताया की भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने वर्ष 1877 में एक कविता लिखी थी , जो इस प्रकार थी –
" Gबहु Eस अ C स बल हरहु प्रजन की रि /
सरU जमुना गंग मैं जब लौं थिर जग नी /J Kबल तुम दास हैं नासहु तिनकी R / बढ़ै सY तेज नित T को अचल लिलार / भारत के Aकत्र सब V र सवा बल P न/Bसहु बित्वा ते रहैं तुमरे नितहि अधीन ।"
पहली दृष्टि में यह मोबाइल फोन द्वारा किसी को भेजा गया ' एस.एम. एस.' या व्हाट्स एप मैसेज प्रतीत होता है । यह कविता हिन्दी के युग प्रवर्तक साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने सन् 1877 में लिखी अपनी इस कविता को किन्हीं ' राज राजेश्वरी आर्य्येश्वरी भारताधिश्वरी श्री 108 विजयिनी देवी ' को समर्पित किया था। आज बहुतायत से मोबाइल का प्रयोग करने वाले शार्ट मैसेजिंग सर्विस ( एस. एम. एस.) या व्हाट्स एप द्वारा सन्देश भेजने के लिए अंग्रेजी वर्णों तथा हिन्दी शब्दों की ' खिचड़ी' से बनी ऐसी भाषा का प्रयोग करते हैं, जबकि उपर्युक्त काव्य- उदाहरण यह प्रमाणित करता है कि उन्नीसवीं शताब्दी के आठवें दशक में हिन्दी को नया स्वरूप देते हुए भारतेन्दु आज की मोबाइल की भाषा को लिख रहे थे। भारतेन्दु ने अपनी एक कविता में गणित के अंक प्रयुक्त कर एक अन्य अद्भुत उदहारण भी प्रस्तुत किया था -" करि वि4 देख्यौ बहुत जग बिनु 2ष न 1 /तुम बिनु हे विक्टोरिये नित 900 पथ टेक / ह 3 तुम पर सैन ले 80 कहत करि 100ह / पै बिन7 प्रताप बल सत्रु मरोरे भौंह ।"
डॉ. सम्राट् सुधा ने बताया कि भारतेन्दु के सन्दर्भ में एक आश्चर्यपूर्ण बात यह है कि अंधविश्वासों के घोर विरोधी भारतेन्दु पत्र लिखने हेतु कागज के रंग का चयन दिवस अनुसार किया करते थे। रविवार से शनिवार तक वे क्रमशः गुलाबी, श्वेत, लाल, हरा, पीला, श्वेत तथा नीले रंग के कागज प्रयोग किया करते थे ! 9 सितम्बर, 1850 को जन्में भारतेन्दु का देहावसान 6 जनवरी , 1885 को हुआ था। मात्र 33 वर्ष के अपने जीवन में भारतेन्दु ने हिन्दी साहित्य को 73 छोटे- बड़े काव्य संग्रह, 24 नाटक , 34 अन्य गद्यात्मक रचनाएँ तथा अनगिनत निबंध आदि अपने सर्जनात्मक अवदान के रूप में दिये। भारतेन्दु की प्रारंभिक कविताओं में अंग्रेजी शासन के प्रति प्रशंसात्मक स्वर भी दिखे, परंतु वास्तविकता का बोध होने पर वह यह कहने से भी नहीं चूके-
-" भीतर- भीतर सब रस चूसै
बाहर से तन- मन- धन मूसै
जाहिर बातन में अति तेज
क्यों सखी साजन, नहीं अंग्रेज!"
हिन्दी साहित्य के इतिहास में सन् 1857 से 1900 ईसवी तक के काल का नामकरण ' भारतेन्दु युग' किया जाना भारतेन्दु हरिश्चंद्र के साहित्यिक योगदान तथा उनकी बहु आयामी सर्जनात्मकता का सम्यक् सम्मान है!