साहित्यिक संस्था परिक्रमा ने नव संवत्सर पर किया काव्य गोष्ठी का आयोजन
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मनीषा सूरी /पीयूष सूरी
हरिद्वार। भारतीय नव वर्ष अर्थात नव संवत्सर के आगमन के अवसर पर अग्रणी साहित्यिक संस्था परिक्रमा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच ने सामुदायिक केंद्र सेक्टर-4, भेल के सभागार में एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया, जिसमें नगर के श्रेष्ठ कविजनों ने जहांँ नव संवत्सर के स्वागत में अपनी रचनाएँ पढ़ीं, वहीं अन्य अनेक विषयों पर भी उन्होंने काव्य पाठ किया।
माँ सरस्वती के सम्मुख दीप प्रज्जवलन तथा श्रीमती सुमन पंत और राज कुमारी की वाणी वन्दना के बाद संस्था सचिव शशि रंजन 'समदर्शी' ने 'चैत्र शुक्ल प्रतिपदा हिंदू नव वर्ष है आता, आओ शुभकामनाएँ करें दिल खोलकर', सुमन पंत 'सुरभि' ने 'आया बसंत फिर से है सखी, मन में उमंग फिर जागी है, फैली सुगंध चहूँ ओर सखी, प्रकृति जैसे आल्हादित है', मदन सिंह यादव ने ' वर्ष नया खुशियाँ लाए, मिट जाएं सभी क्लेश', तथा महेन्द्र कुमार ने 'शुभ आगमन बसंत का, भाग हुए गुलज़ार' सुना कर नवसंत्सर व बसंत का महिमा मंडन किया।
अरुण कुमार पाठक ने 'याद तुम्हारी करते-करते कितने सावन बीत गये तुम क्या जानो प्यार में मेरे, दृग कैसे रीत गये', वरिष्ठ कवि कुंअर पाल सिह 'धवल' ने गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए 'मैं तेरा अहसानमंद हूँ, जो मुझ पर उपकार हो गया', साधुराम 'पल्लव' मेहरबानी क्या कहूँ आपके हिजाब की', डा. कल्पना कुशवाहा 'सुभाषिनी' ने 'मैं सुर तेरा बन जाऊंगी, गीत मेरे तुम बन जाओ', राजकुमारी थर्रान ने 'उठी दिल में जबसे लहर थोड़ा-थोड़ा, हुआ मेरा दुश्मन शहर थोड़ा-थोड़ा' तथा चित्रा शर्मा ने 'आज कुछ नववधू सी चमक रही थी, हांँ मेरी लट आज उसी ने संवारी थी' सुना कर वातावरण में प्रेम के रंग भरे।
ओजस्वी युवा कवि अरविन्द दुबे ने 'दोहा, ग़ज़ल या कविता में दिन बीते हैं, मत पूछो हम कवियों से कि हम कैसे जीते हैं' कह कर कवियों का दर्द बयाँ किया तो, रविंद्र गुल ने 'ऐसा तो काम कोई हमसे हुआ ना अब तक, क्यों नाम हो रहा है, फिर ख़ामख्वाँ हमारा' की शिकायत कुछ अलग रही। युवा अमन कुमार शुक्ला 'शशांक' ने 'द्रौपदी की साड़ी खींची किंतु खींच पाये ना, धर्म से अधर्म युद्ध कभी जीत पाए ना' कह कर सुना कर ख़ूब तालियाँ बटोरी। बृजबाला शर्मा ने स्वरचित भजन 'दरबार शेरांवाली का निराला भक्तों' प्रस्तुत किया। उपाध्यक्ष श्रीमती नीता नय्यर 'निष्ठा' ने न केवल अपनी गद्यात्मक रवना 'शुक्रिया अपनों के करूँगी तो, ज़हमत होगी' रखी, बल्कि, कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुंअर पाल सिंह धवल के साथ गोष्ठी में सुनाई गयीं रचनाओं की समीक्षा भी की।