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देवी-देवताओं को लोग जीव की बलि क्यों चढ़ाते हैं,क्या देवी-देवता जीवों की बलि मांगते हैं--ज्योतिषाचार्य अजय कृष्ण कोठारी

देवी-देवताओं को लोग जीव की बलि क्यों चढ़ाते हैं,क्या देवी-देवता जीवों की बलि मांगते हैं--ज्योतिषाचार्य अजय कृष्ण कोठारी

देवी-देवताओं को लोग जीव की बलि क्यों चढ़ाते हैं,क्या देवी-देवता जीवों की बलि मांगते हैं--ज्योतिषाचार्य अजय कृष्ण कोठारी                                                                                                                

सबसे तेज प्रधान टाइम्स                                             गबर सिंह भण्डारी       

                                   

श्रीनगर गढ़वाल।देवी-देवताओं को बलि चढ़ाने की परंपरा के पीछे कई कारण बताए जाते हैं,लेकिन इस परंपरा का कोई धार्मिक आधार नहीं है: लोगों का मानना है कि बलि देने से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं,कुछ लोगों का मानना है कि बलि देने से मनोवांछित फल मिलता है,बलि देने की परंपरा आम तौर पर शाक्त और तांत्रिकों के संप्रदायों में ही देखने को मिलती है,बाद के समय अन्य संप्रदायों के लोग भी बलि देने लगे,देश भर में माता के कई मंदिरों में बिना बलि के पूजा को संपन्न नहीं माना जाता। आज आपको ज्योतिषाचार्य अजय कृष्ण कोठारी बलि प्रथा के विषय में यथासंभव जानकारी दे रहे हैं। देवी देवताओं की बलि अभी नहीं चलानी चाहिए अभी अर्थात इस कलयुग में बलि चढ़ाने का अर्थ जानना बहुत आवश्यक है बलि चढ़ाने के पीछे बहुत सारे तथाकथित कहानियां है हम सभी लोगों को पता है आजकल लोग अनेकों प्रकार की मन्नतें मांगते रहते हैं लोगों को अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए अनेक अनेक देवी देवताओं की पूजा करते हैं लेकिन इन इच्छाओं की पूर्ति के लिए लोग देवी-देवताओं से मन्नतें मांगते हैं और उन्हें बलि चढ़ाने का भेंट देने की इच्छा रखते हैं। ऐसा कहा जाता है द्वापर युग में या सतयुग में या त्रेता युग में लोग बहुत शुद्ध हुआ करते थे या नहीं वहां पर जब हवन भी किया जाता था तो किसी माचिस का इस्तेमाल नहीं किया जाता था हवन की अग्नि जलाने के लिए भी मंत्र उच्चारण का इस्तेमाल किया जाता था लेकिन क्या आज इस कलयुग में अग्नि जलाने के लिए मंत्र का इस्तेमाल कर सकते हैं असंभव क्योंकि उस प्रकार की मानसिक शुद्धता और शारीरिक शुद्धता नहीं रही है इसीलिए पहले लोग बलि देते थे बलि देने के उपरांत उस शरीर से जो आत्मा वह उच्च स्तर को प्राप्त होता था यानी एक बार फिर से उसे मनुष्य शरीर प्राप्त होता था ताकि उसे फिर से इस भगवान की भक्ति करके मुक्त होने की संभावनाएं बढ़ जाए लेकिन अगर बात की जाए कलयुग में बलि चढ़ाने की लोग अपने जीवन के स्वाद के लिए सिर्फ किसी भी पशु यह जानवर की बलि चढ़ा देते हैं हालांकि कलयुग में यह सभी चीजें वर्जित है हम सभी लोगों को सतर्क होना चाहिए कलयुग का जीव कमजोर कम बुद्धि वाला शारीरिक क्षमता भी कम है तो हम सिर्फ भगवान से प्रार्थना कर सकते हैं और अपने कर्म को सही तरीके से कर सकते हैं आप किसी भी प्रकार की पशु बलि नहीं देनी चाहिए धन्यवाद अच्छा लगा तो जरूर करें उपवोट सर्वप्रथम आप यह जान लीजिए कि देवी-देवता जीवन दायक होते हैं जीवन लेते नहीं। लोगों के बच्चे बीमार होते हैं कोई असाध्य बीमारी हो जाती है तो वे देवी-देवताओं के दरबार में अरदास लेकर जाते हैं कि मेरे बच्चे को ठीक कर दो। वहीं देवी-देवता अगर किसी निरीह जीव की बलि लेकर किसी के बच्चे को जीवन दान दें तो वह देवता नहीं बल्कि दैत्य से भी गए गुजरे हैं। कोई देवी देवता किसी जीव की बलि नहीं मांगता एक की जान लेकर एक को जीवन दान देना यह कहां का न्याय है। वेदों में धर्म के नाम पर किसी भी प्रकार की बलि प्रथा कि इजाजत नहीं दी गई है। यदि आप मांसाहारी है तो आप मांस खास सकते हैं लेकिन धर्म की आड़ में नहीं। "इममूर्णायुं वरुणस्य नाभिं त्वचं पशूनां द्विपदां चतुष्पदाम्। त्वष्टु: प्रजानां प्रथमं जानिन्नमग्ने मा हिश्सी परमे व्योम।''अर्थात 'उन जैसे बालों वाले बकरी,ऊंट आदि चौपायों और पक्षियों आदि दो पगों वालों को मत मार।''- यजु.13/50" देवी देवता को बलि दी जाती है लेकिन जीव की नहीं बल्कि आटे के पिंड की या कुमड़े (जिसका पेटा बनता है) उसका।बलि पर ही आधारित एक कहानी है जो मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं। हिमाचल प्रदेश में स्थित देवी चिंतपूर्णी से संबंधित कथा के अनुसार भक्त माई दास ने अपना सिर काटकर देवी को चढ़ाया था तब देवी ने प्रकट होकर उन्हें जीवित कर दिया था और अपने भक्तों से वरदान मांगने को कहा

तब भक्त ने कहा,'हे देवी कलयुग में इतनी कठिन परीक्षा कोई नहीं दे सकेगा' उससे प्रसन्न होकर देवी ने कहा भक्त प्रवर अब जो प्राणी जलयुक्त नारियल चढ़ाएगा उससे मैं अति प्रसन्न होंगी और उसे बली समझकर ग्रहण करूंगी। भेड़,बकरी और किसी जीव की बलि देवी देवता नहीं मांगते और ना तो ऐसा कहीं लिखित प्रमाण मिलता है। जीवो की बलि चढ़ाने के पीछे लोगों का अपना निजी स्वार्थ होता है। बलि चढ़ाकर लोग उसका मांस पका कर अपनी जीभ का स्वाद बनाते हैं। मांस से क्षुधा की तृप्ति करते हैं। जीवो की बलि चढ़ाना पाप ही नहीं बल्कि महापाप है आप स्वंय में विचार करें कि आप को जरा सी खरोच आ जाती है तो आप चीख पड़ते हैं और जिसका गला काट देंगे उसको कितनी पीड़ा होगी। क्या यह जानने का प्रयास आपने कभी किया या बस ऐसे ही जीवो की बलि चढ़ा कर उसका मांस पका कर खा गए। बलि चढ़ाना और कुछ नहीं अपने जीभ की क्षुधा को शांत करने का बस एक माध्यम है। किसी भी जीव की बलि लेना किसी भी देवता के लिए उचित नहीं है। ऐसा मैं नहीं ऐसा पुराणों में भी लिखा गया है कोई भी देवता अगर किसी जीव की बलि लेता है तो देवता नहीं दैत्य से भी गया गुजरा है। क्योंकि देवता लोगों को जीवन देते हैं उनका जीवन लेते नहीं उनका कर्म ही यही है कि वह जीवो की रक्षा करें उनकी मनोकामना पूरी करें। क्योंकि इंसान को अग्नि की जरूरत हुई तो अग्निदेव को बनाया गया,वायु की जरूरत हुई तो वायु देव को बनाया गया,रात्रि में उजाले की जरूरत हुई तो चंद्रमा को बनाया गया। ऐसे ही देवों को बनाया ही इसीलिए गया है ताकि वह धरती पर मौजूद जीवो की रक्षा करें। उन्हें जीवन दें। हिन्दू देवी-देवताओं के समक्ष बकरे की बलि क्यों दि जाती है,सनातन धर्म में भी कहीं कहीं यह कुप्रथा हो सकती है। वेदों से अनुप्राणित हिन्दू धर्म में किसी भी प्रकार की बलि के लिए कोई स्थान नहीं है। जिस हिन्दू धर्म में अहिंसा परमो धर्म कहा जाता हो और जहां "सर्वाणि भूतानि मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे" की वैदिक शिक्षा हो वहां बलि देना धर्म सम्मत कैसे हो सकता है। जैसा कि आप भी जानते हैं ईश्वर तो सबको हर चीजें प्रदान करता है,तो क्या हम किसी जीव को कष्ट प्रदान करे तो उसे पसंद होगा,जिसे स्वयं भगवान ही बनाए हैं। यह मेरे खुद अपने निजी विचार हैं किसी माता बहन भाई बंधुओं को बुरा लगे या किसी की भावनाओं को ठेस से तो मैं क्षमा प्रार्थी हूं। लेखक-आचार्य अजय कृष्ण कोठारी/ज्योर्तिविद ग्राम कोठियाडा पो.ओ.बरसीर रुद्रप्रयाग श्री कोटेश्वर शक्ति वैदिक भागवत पीठ एवं ज्योतिष संस्थान।



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