हर्ष विद्या मंदिर पीजी कॉलेज में अतिथि व्याख्यान का आयोजन
अंशु वर्मा/गीतेश अनेजा
हरिद्वार। 23 मार्च 2024 को हर्ष विद्या मंदिर पीजी कॉलेज रायसी में राजनीति विज्ञान विभाग के तत्वाधान में शहीद दिवस के उपलक्ष में एक अतिथि व्याख्यान का आयोजन किया गया जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में एस• एस• वी• पीजी कॉलेज हापुड उत्तर प्रदेश में इतिहास विभाग के सहायक आचार्य डॉक्टर दीपक कुमार बैंसला उपस्थित रहे। कार्यक्रम का प्रारंभ महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर राजेश चंद्र पालीवाल ने डॉक्टर दीपक कुमार बैसला के स्वागत के साथ किया उन्होंने कहा कि वर्तमान में शहीद भगत सिंह के विचारों की प्रासंगिकता जैसे महत्वपूर्ण विषय पर अतिथि व्याख्यान करवा कर राजनीति विज्ञान विभाग ने एक सार्थक प्रयास करने की शुरुआत की है। उन्होंने कहा कि भले ही भारत की स्वतंत्रता में महात्मा गांधी सहित बहुत सारे ऐसे नेताओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है जो अहिंसा के रास्ते पर चलकर भारत को स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए प्रयासरत रहे किंतु फिर भी शहीद भगत सिंह राजगुरु एवं सुखदेव के प्रयासों को उस समय की क्रूर सत्ता से मुक्ति के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण आवश्यकता रही। अपने अतिथि व्याख्यान में डॉ दीपक ने राजगुरु सुखदेव एवं भगत सिंह के भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति में किए गए विभिन्न प्रकार के प्रयासों पर प्रकाश डालकर यह बताने का प्रयास किया की उस समय की राजनीतिक एवं अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में सभी स्वतंत्रता सेनानियों के प्रयासों को एक संयुक्त रूप में देखने की आवश्यकता है उन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा किसानों पर अधिक करारोपण एवं अन्यायपूर्ण नीतियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शहीद भगत सिंह जैसे ही कई क्रांतिकारी ने अंग्रेजी सरकार के खिलाफ जो हिंसक रास्ता चुना वह उस समय की एक बड़ी आवश्यकता थी। उन्होंने कहा कि लक्ष्य को अगर एक साधन से प्राप्त करने में कठिनाई हो रही हो तो साधन को बदलकर लक्ष्य को प्राप्त करना ज्यादा श्रेष्ठ होता है। भगत सिंह जैसे बहुत सारे ऐसे क्रांतिकारी युवा उस समय के स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी भूमिका बढ़-चढ़कर निभा रहे थे जिन्हें यह लगता था कि महात्मा गांधी के द्वारा अहिंसक आंदोलन के साधन से भारत की स्वतंत्रता के लक्ष्य को आसानी से प्राप्त नहीं किया जा सकता ।इसलिए उन्होंने केवल अंग्रेजी सरकार की क्रूर नीतियों को समूल नष्ट करने एवं भारत को अंग्रेजों की दास्ता से मुक्ति के लिए हिंसक आंदोलन का सहारा लिया उनके इस आंदोलन को किसी भी रूप में गलत नहीं कहा जा सकता क्योंकि भारत कि स्वतंत्रता अहिंसक एवं हिंसक दोनों प्रकार के आंदोलन के संयुक्त प्रयास से ही संभव हो पाई अगर हम यह कहे कि केवल एक प्रकार के प्रयास से भारत को तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत से आजाद करवाया गया तो यह एक प्रकार का स्वतंत्रता आंदोलन का केवल एक ही पक्ष होगा इसलिए पूरे राष्ट्रीय आंदोलन में क्रांतिकारी युवाओं के द्वारा उठाए गए कदमों को कम महत्वपूर्ण नहीं कहा जा सकता उनकी उतनी ही महता है जितनी गांधी के अहिंसक विचार की। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कांग्रेस के प्रयास एवं महात्मा गांधी के भारत के विभाजन की मुखालफत करने को इंगित करते हुए डॉक्टर दीपक ने कहा कि वर्तमान में भले ही गांधी को भारत के विभाजन का कारण माना जा रहा हो किंतु उन्होंने भारत के विभाजन को कभी भी पूर्ण मन से स्वीकार नहीं किया। उन्होंने तो भारत का विभाजन अपनी लाश पर करने की चेतावनी कांग्रेस एवं कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व को दी थी किंतु तत्कालीन परिस्थितियों एवं ब्रिटिश नीति नियंताओं के चालबाजी भारी निर्णयो के कारण भारत का विभाजन हुआ। स्वतंत्रता आंदोलन के विभिन्न पक्षों जिनमें मुख्य रूप से भगत सिंह एवं उनकी टीम के द्वारा किए गए विभिन्न प्रकार के हिंसक प्रयोग जो तत्कालीन ब्रिटिश सरकार के खिलाफ किए गए थे उनका वर्णन किया गया। उन्होंने कहा कि वर्तमान में गांधी को इस बात का दोष भी दिया जाता है कि वह अगर चाहते तो भगत सिंह को फांसी की सजा से बचा सकते थे किंतु उन्होंने गांधी इरविन समझौते में भगत सिंह को बचाने का कोई प्रयास नहीं किया। हालांकि यह सत्य है किंतु गांधी जी अपनी मूल विचारधारा अहिंसा पर आगे बढ़ते हुए कहते थे कि हिंसा के साधन एवं विदेशी सहायता किसी भी प्रकार से भारतीय स्वतंत्रता के आंदोलन को लक्ष्य तक पहुंचने में बाधा बन सकती है इसलिए उन्होंने गांधी इरविन समझौते में राजनीतिक कैदियों की रिहाई के लिए तो प्रयास किया किंतु भगत सिंह की रिहाई के लिए किसी प्रकार का प्रयास नहीं किया जो उनकी विचारधारा के खिलाफ था किंतु फिर भी गांधी की महत्ता एवं भगत सिंह की महता को किसी भी प्रकार से भारतीय स्वतंत्रता के आंदोलन में कम नहीं आंका जा सकता। भगत सिंह की लोकप्रियता से तो ब्रिटिश सरकार इतना ज्यादा भयभीत थी कि 24 मार्च की नियत तिथि पर फांसी देने के स्थान पर एक दिन पूर्व उन्हें 23 मार्च को ही फांसी केवल इसलिए दे दी गई की कहीं पूरे भारतवर्ष में यह ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एक बड़ा एवं सामूहिक आंदोलन न खड़ा हो जाए। कार्यक्रम के प्रारंभ मे राजनीति विज्ञान विभाग की सहायक आचार्या डॉ विनीता ने अतिथि एवं व्याख्यान में जुड़े हुए सभी छात्र-छात्राओं का स्वागत एवं अभिनंदन किया कार्यक्रम के अंत में राजनीति विज्ञान विभाग के सहायक आचार्य डॉक्टर मनोज कुमार ने मुख्य वक्ता महाविद्यालय के प्राचार्य, अन्य आचार्य गण एवं छात्र-छात्राओं को धन्यवाद प्रेषित किया। इस अवसर पर डॉक्टर सारिका महेश्वरी डॉक्टर कुलदीप टंडवाल डॉ पूनम चौधरी डॉक्टर निशा पाल डॉक्टर सुरजीत कौर डॉ अंजू बर्चीवाल राहुल कश्यप रिया पारथी सैनी अंजुम अमरीन प्राची राणा रईस निशा अभिषेक आशीष अनिल कुमार भारती अक्षिका नागर कनिष्का चौधरी अंशिका पुंडीर आदि उपस्थित रहे।