पर्दे में रहने वाली औरत : बालकवि काजल "चंचल"
सबसे तेज प्रधान टाइम्स
गबर सिंह भण्डारी
श्रीनगर गढ़वाल।
कभी परदे में रहने वाली औरत,
आज बेपर्दा हो गई हैं।
शर्म-ओ-लिहाज की तस्वीरें,
लगता हैं शर्मिंदा हो गई हैं।।
कभी थी मिलती जब चादर हि,
तन पर उसे लपेट लिया।
पर आज की इस नारी ने देखो,
तन का कपड़ा ही फेंक दिया।।
घर-आंगन की ये रौनक अब,
मैखाने में झूम रहीं हैं।
मिले कदम से कदम इन्हें क्या,
लगता रस्ता ये भूल रहीं हैं।।
क्यूं चिल्लाती मुझे बचाओ,
जब कोई भेड़िया तुम्हें चबाएं।
झूठ नहीं ये सच है आज का,
कारण भी ये हमने उपजाए।।
-- काजल "चंचल