सबसे बडा भगवन्नाम का आश्रय : एम.एस.रावत
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गबर सिंह भण्डारी
श्रीनगर गढ़वाल। वृन्दावन की एक गोपी रोज दूध दही देने मथुरा जाया करती थी,एकदिन वृज़ में एक संत आये,गोपी भी उनकी कथा सुनने लगी संत कथा में कहते हैं, भगवान के नाम की बड़ी महिमा है,उनके नाम से बड़े संकट भी टल जाते हैं, उनका नाम तो भाव सागर से भी तर जाते हैं,यदि भाव सागर से पर होना है तो भगवान का नाम कभी मत छोड़ना,कथा समाप्त हुई गोपी फिर अगले दिन फिर दूध दही बेचने चली बीच में यमुना थी,गोपी को संत की बात याद आई,संत ने कहा कि भगवान का नाम तो भवसागर से पर लगाने वाला है,जिस भगवान का नाम भवसागर को पार लगा सकता है तो क्या उन्ही भगवान का नाम क्या मुझे इस साधारण सी नदी को पार नहीं लगा सकता।
ऐसा सोचकर गोपी ने अपने मन में भगवान के नाम का आश्रय लिया और भोली भाली गोपी यमुना जी कि ओर आगे बढ़ गईं, अब जैसे ही यमुना में पैर रखा तो लगा मानो जमीन पर चल रही है और ऐसे ही सारी नदी परहो गईं,पार पहुंचकर बड़ी प्रश्नन हुई, मनमे सोचने लगी कि संत ने तो ये बडा अच्छा तरीका पार जाने का हरदिन नाव को किराया देना पड़ता है,चलो किरायेकी बचत हुई,
एक दिन गोपी ने सोचा कि संत ने मेरा इतना भला किया मुझे उन्हें खाने पर बुलाना चाहिये,अगले दिन गोपी जब दही दूध बेचने गईं,तब संत को घर पर भोजन करने का न्योता दे दिया,संत भी तैयार हो गये,अब बीच में यमुना आ गई संत नाविक को बुलाने लगा तो गोपी बोली बाबा नाविक को क्यों बुला रहे हैं,हम ऐसे ही यमुनाजी पर चलेंगे शान बोले गोपी, कैसी बात कर रही हो,यमुनाजी ऐसे कैसे पार करेंगे।
गोपी बोली बाबा!अपने ही तो रास्ता बताया था,अपने कथा में कहा था कि भगवान के नाम का आश्रय लेकर भवसागर से पार हो सकते हैं तो मैंने सोचा जब भव सागर से पार हो सकते हैं तो यमुना जी से पार क्यों नहीं हो सकते। फिर मैं ऐसे ही करने लगी, इस लिये मुझे अब नाव की जरुरत नहीं पड़ती,संतको विश्वास नहीं हुआ बोले गोपी तू ही पहले चल। मैं तुम्हारे पीछे-पीछे आता हूँ,गोपी ने भगवान के नाम का आश्रय लिया और जिस प्रकार रोज जाती थी,वैसे ही यमुनाजी को पार कर गई।
अब जैसे ही संतने यमुना जी में पैर रखा तो झप्पाक से पानी गिर गये,संत को आश्चर्य हुआ,गोपी ने पीछे देखा तो संत पानी में गोते खा रहे थे,फिर गोपी वापस आई,संत का हाथ पकड़ कर जब चली तो संत भी गोपी की ही भांति ही ऐसे चले जैसे जमीन में चल रहे हों,पार जा कर संत गोपी के चरणों में गिर गये और बोले गोपी तू धन्य है,सही अर्थों में नाम का आश्रय तो तुमने लिया है,मैने उसके नाम की महिमा बताई तो सही में स्वयं नाम का आश्रय नहीं लिया।