प्रो. (डॉ.) दिनेश चमोला 'शैलेश' का सृजन-मूल्यांकन’ विषय पर 11वां राष्ट्रीय पाक्षिक व्याख्यान संपन्न
प्रो. (डॉ.) दिनेश चमोला 'शैलेश' का सृजन-मूल्यांकन’ विषय पर 11वां राष्ट्रीय पाक्षिक व्याख्यान संपन्न
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मनीषा सूरी/ पीयूष सूरी
देहरादून / दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास के संयोजन में ' 'प्रख्यात हिंदी साहित्यकार प्रोफेसर (डॉ.) दिनेश चमोला 'शैलेश' का सृजन-मूल्यांकन
’ विषय पर आयोजित पाक्षिक व्याख्यानमाला का ग्यारहवां (11) ऑनलाइन *राष्ट्रीय व्याख्यान प्रो . चमोला के हिंदी बाल कविता संग्रह 'एक सौ एक बालगीत’ विषय पर केंद्रित रहा ।
समारोह के अध्यक्ष के रूप में मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय, भोपाल (मध्य प्रदेश) के कुलपति एवं प्रख्यात इलेक्ट्रोनिकीविद, प्रो. संजय तिवारी जी रहे । प्रो. तिवारी ने प्रोफेसर चमोला की विगत साढ़े चार (4) दशकों से हिंदी साहित्य को दिए जा रहे राष्ट्रीय के योगदान की भूरि भूरि प्रशंसा की और उन्हें सुमित्रानंदन पंत एवं अन्य पर्वतीय कवियों- साहित्यकारों की परंपरा का साधक कहा । भावी राष्ट्र के निर्माण में प्रोफेसर चमोला की ये कविताएं अपनी महती भूमिका निभाएंगी ।
प्रो. चमोला विभिन्न विधाओं में सात दर्जन से अधिक पुस्तकें लिख चुके हैं जिन पर देश के अनेक विश्वविद्यालयों में पीएचडी स्तरीय अनेक शोध कार्य संपन्न हो चुके हैं तथा अन्य अभी चल रहे हैं । विगत 43 वर्षों से उनकी यह अखंड लेखकीय व पत्रकारिता जीवन की साधना इस बात का प्रमाण है कि वह एक सुधी अध्येता के साथ-साथ एक भावप्रवण कवि, जीवंत कथाकार तथा देश के अनेक राष्ट्रीय समाचार पत्रों के चर्चित स्तंभलेखक भी हैं ।
यह मेरे लिए अत्यंत हर्ष का विषय है कि आज की संगोष्ठी की विवेच्य पुस्तक 'एक सौ एक बाल गीत' देश के एक स्तरीय विश्वविद्यालय के एम. ए. के पाठ्यक्रम की पाठ्यपुस्तक के रूप में पढ़ाया भी जा रहा है । संग्रह की अधिकांश बाल कविताएं जहां बालकों में चरित्र, मूल्यबोध, भविष्य दृष्टि एवं संस्कारों का गहन चित्रण करती हैं, वहीं इन कविताओं में राष्ट्रीय चेतना का स्वर भी कूट-कूट कर भरा हुआ है । ये कविताएं सांस्कृतिक मूल्यों से भी परिपूर्ण है । इनमें बाल सुलभ जिज्ञासा, महत्वाकांक्षा, कुछ हट कर और नया करने की अद्भुत व दृढ़ इच्छा शक्ति को भी कवि ने बहुत ही मनोरम, प्रभावी एवं भाव प्रवण शब्दों में पिरोकर राष्ट्रीय महत्व का कार्य किया । ये कविताएं बालकों में भावी राष्ट्र के निर्माण की ललक जगातीं कविताएं हैं, जो अब पग पग पर नए मूल्यों का सूत्रपात करने में समर्थ हैं । राष्ट्रीय महत्त्व की इन कविताओं में इनका मंतव्य अथवा प्रतिपाद्य अत्यंत सूक्ष्म, गहन एवं विचारोत्तेजक रूप में कवि ने उभारा है । मूल्यों के ह्रास के इस युग में ये बाल कविताएं जिज्ञासु पाठकों के लिए आस्थादीप के समान हैं । जीवन की निसारता, यथार्थता व वैचारिक दर्शन से उपजी हुई इन कविताओं में सत्संकल्प के साथ मूल्य-स्थापना, गहन शिक्षण, चरित्र निर्माण एवं वैश्विक कल्याण के भाव सन्निहित हैं । वे जितने अच्छे कवि, व्यंग्य लेखक व उपन्यासकार हैं, उससे अधिक प्रभावी बाल साहित्यकार भी हैं जो बहुत सीमित विषयवस्तु में उस असीम के सार्थक संदेश एवं जीवन यथार्थ को प्रकट करने में कदाचित हिचकिचाते नहीं । निश्चित रूप से यह कविता संग्रह, भारतीय जीवन मूल्यों एवं आध्यात्मिक परंपरा को पुष्ट कर एक विवेकशील व सुसंस्कृत समाज के निर्माण की एक महत्वपूर्ण एवं सार्थक पहल है । मैं इसके लिए लेखक को बधाई देता हूं एवं आश्वस्त हूं कि भविष्य में भी प्रो.चमोला अपनी उत्कृष्ट रचनाधर्मिता से हिंदी साहित्य के भंडार को समृद्ध करने में अपना पूर्ववत देते रहेंगे।विशिष्ट अतिथि के रूप में कालीकट विश्वविद्यालय, कालीकट (केरल) के प्रोफेसर एवं हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष, प्रो. प्रमोद कोवप्रत ने कहा कि प्रोफेसर चमोला के साहित्यिक योगदान से तुम्हें कई दशकों से परिचित हूं। वे राजभाषा प्रयोजनमूलक हिंदी एवं शब्दकोश आदि विधाओं के मूर्धन्य विद्वान रहे हैं । किंतु उन्होंने इतनी विधाओं में अपना धारपूर्ण लेखन किया है, यह मुझे पहली बार ज्ञात हुआ है । मैं उनके पत्रकारिता के क्षेत्र में दिए गए अवदान से भी विगत अनेक दशकों से भलीभांति परिचित हूं । किंतु आज इस मंच से उनकी अद्भुत काव्य प्रतिभा से परिचित होकर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं । उनकी कविताओं में अतीत का गुणगान, जीवन से संघर्ष करने की चेतना, मूल्य बोध और बालकों में चरित्र व राष्ट्र निर्माण के सूत्र कूट-कूट कर भरे हुए हैं। महात्मा गांधी ने राष्ट्रीय एकता वी अनेकता में एकता के सूत्र की संकल्पना से दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा से जिस संकल्पना की स्वप्न देखे थे वह आज प्रोफेसर अंबिग जैसे हिंदी सेवी विद्वानों के सहयोग से सभा के कार्यक्रमों में पुनर्जीवित होकर भारत को एकता अखंडता के सूत्र में पिरोने के स्वयं में जीवंत प्रमाण हैं । पंडित सोहनलाल द्विवेदी, मैथिली शरण गुप्त, रामधारी सिंह दिनकर एवं राम नरेश त्रिपाठी आदि कवियों की राष्ट्रीय चेतनापरक काव्य परंपरा को अपनी कविताओं में संजोए हुए हैं, यह महत्त्व की बात है । वे मूल्यबोध के अग्रणी कवि हैं । उनकी कलम से बाल मनोविज्ञान से लेकर ज्ञान परंपरा के विविधमुखी चिंतन का समावेश बखूबी हुआ है । उन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं में रचना कर न केवल देश में वैश्विक ख्याति अर्जित की है, बल्कि अपने इस महत्वपूर्ण संग्रह "एक सौ एक बालगीत" में पर्यावरण, दर्शन, राष्ट्रबोध, आदर्श, मूल्यबोध, भारतीय ज्ञान परंपरा, वैज्ञानिक चिंतन, बाल मनोविज्ञान तथा भ्रष्टाचार आदि अनेक मुद्दों पर खुलकर अपनी लेखनी चलाई है । इस तरह का सृजनकर्म राष्ट्रीय एकता एवं बालकों के चरित्र निर्माण के लिए मिल का पत्थर है । निश्चित रूप से प्रो. चमोला जी के षष्टिपूर्ति के अवसर पर इस प्रकार के आयोजन उनके सृजनकर्म के प्रति असीम आदर के जीवंत प्रमाण हैं ।आमंत्रित विद्वान के रूप में जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर (राजस्थान) के पूर्व डीन एवं प्रखर आलोचक, प्रो. एस.के. मीणा ने प्रो. चमोला को कालजयी कवि बताते हुए उनके इस महत्वपूर्ण संग्रह की एक-एक कविता का अत्यंत सूक्ष्म एवं गहन प्रामाणिक विवेचन प्रस्तुत किया। इस संग्रह में भारत माता के गुणगान, अतीत के वैभवशाली स्वाभिमान, बालक की अद्भुत कल्पना शक्ति, नवाचारी मस्तिष्क को आधार बनाकर अनेक मूल्योन्मुखी सूत्रों का चित्रण किया है । बाल साहित्य की रचना करना अत्यंत कठिन एवं दुष्कर कार्य है । उन्होंने अपनी अद्भुत काव्य प्रतिभा के बल पर अनेक मर्मस्पर्शी विषयों को अत्यंत प्रभावी ढंग से चित्रित कर बाल साहित्य की मूलभूत प्रासंगिकता को सिद्ध किया है ।इस अवसर पर 2 घंटे तक अबाध रूप से चले इस कार्यक्रम में प्रोफेसर चमोला ने दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, चेन्नई को बधाई देते हुए विद्वानों की इस अपूर्व श्रृंखला का आभार व्यक्त कर इसके सतत आयोजन के हेतु अपना आशीर्वाद प्रदान किया ।सभा की कुल सचिव प्रोफेसर एम एन मन अंबीग ने धन्यवाद प्रस्ताव ज्ञापित किया।ध्यातव्य हो उत्तराखंड के जनपद रुद्रप्रयाग के ग्राम कौशलपुर में 14 जनवरी 1964 को जन्मे; विभिन्न विधाओं में सात दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखने वाले साहित्य अकादमी के "बाल साहित्य पुरस्कार" से सम्मानित प्रो. दिनेश चमोला शैलेश' विगत 43 वर्षों से साहित्य साधना कर रहे हैं । संप्रति विश्वविद्यालय में प्रोफेसर एवं कुलानुशासक हैं तथा वर्तमान में गढ़ विहार मोहकमपुर, देहरादून में रहते हैं।