भारतीय ज्ञान परंपरा में उपदिष्ट जीवन मूल्य सदैव अपरिहार्य - डॉ.कविता भट्ट
सबसे तेज प्रधान टाइम्स गबर सिंह भण्डारी
श्रीनगर गढ़वाल। आधुनिक युग तनाव और गलाकाट प्रतिस्पर्धा का पर्याय बनकर रह गया है: इस दृष्टिकोण से भारतीय ज्ञान परंपरा में उपदिष्ट जीवन मूल्य सदैव अपरिहार्य पालनीय हैं। यह बात डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री' ने शिक्षाशास्त्र विभाग,हेमवंती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर उत्तराखंड द्वारा (कम्युनिकेशन,एक्सपोजिटरी राइटिंग एंड सेल्फ डेवलेपमेंट) विषय पर आयोजित सप्त दिवसीय कार्यशाला में कही। उन्होंने अपने विशिष्ट व्याख्यान में अनेक मानवीय मूल्यों यथा संतोष शान्ति और आनंद को प्रमुखता से विवेचित किया। उन्होंने बताया कि भारतीय दर्शन व्यक्ति और व्यक्तित्व को जिस ढंग से व्याख्यायित करता है,इन प्रत्ययों की वैसी विवेचना विश्व की किसी भी संस्कृति में नहीं मिलती और पाश्चात्य संस्कृति का शब्द पर्सन और पर्सनैलिटी इसका ठीक अनुवाद नहीं है। डॉ.कविता भट्ट ने सांख्य दर्शन में उल्लिखित व्यक्तित्व की अवधारणा को बताते हुए द्वैतवाद,प्रकृति पुरुष सिद्धांत,उपनिषद् के पंचकोशीय सिद्धांत इत्यादि को सविस्तार समझाते हुए व्यक्तित्व परिष्करण के संदर्भ में मानवीय जीवन मूल्यों को इसकी प्रमुख आवश्यकता के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने महर्षि पतंजलि द्वारा सूत्रबद्ध नैतिक नियमों जैसे यम (अहिंसा,सत्य,अस्तेय,ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह) और नियम (शौच,संतोष,तप,स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान) के पालन को प्राथमिक आवश्यकता बताया। उन्होंने कहा कि इनका पालन कठिन है किंतु असंभव नहीं। साथ ही उन्होंने मानव जीवन को दुःख निवृत्ति के पथ पर अग्रसर करने हेतु संतोष,शान्ति और आनंद को प्रमुखता से विद्यार्थियों को समझाया। डॉ.शैलपुत्री ने आयोजक प्रो.सीमा धवन,आचार्य,शिक्षाशास्त्र विभाग और उनकी आयोजन टोली तथा विद्यार्थियों को धन्यवाद किया। इस अवसर पर डॉ.अमरजीत परिहार,डॉ.शंकर परगाई और डॉ.नागेंद्र तथा बड़ी संख्या में शिक्षाशास्त्र विभाग के विद्यार्थी उपस्थित रहे।