श्रीकृष्ण द्वारा बाल सखा सुदामा का सत्कार - एम.एस.रावत
सबसे तेज प्रधान टाइम्स गबर सिंह भण्डारी
श्रीनगर गढ़वाल। सुदामा नाम के एक गृहस्थ ब्राह्मण श्रीकृष्ण के परम मित्रों में से एक थे,उन्होंने श्रीकृष्ण के साथ गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण की थी,वे गृहस्थ होते हुए भी संग्रह-परिग्रह से दूर रहते हुऐ भी प्रारब्ध के अनुसार जो कुछ मिल जाता उसी में संतुष्ट रहते थे,भगवान की उपासना और भिक्षाटन यही उनकी दिनचर्या थी,उनकी पत्नी परम पतिव्रता और अपने पति के साथ के साथ हर स्थिति में संतुष्ट रहने वाली थी। एक दिन दुःखी पतिव्रता पत्नी भूखसे कांपती हुई अपने पति के पास गई और बोली भगवान साक्षात लक्ष्यपति योगेश्वर श्रीकृष्ण आपके सखा हैं,वे ब्राह्मणों के परमभक्त हैं,आप उनके पास जाइए,जब वे हमारी आपकी व्यथा जानेंगे तो वे आपको कुछ धन तो देंगे,वे इस समय द्वारिका में ही निवास कर रहे हैं,आप वहां अवश्य जाएं मुझे पूर्ण विश्वाश है कि वे दिनों के दीनानाथ आपके बिन कहे ही आपकी हमारी दरिद्रता दूर कर देंगे। जब सुदामा की पत्नी ने कई बार द्वारका जाने की विनंती की तब उन्होंने सोचा-धनकी तो कोई बात नहीं है,परंतु मेरे सखा द्वारिकाधीस के दर्शन तो कर आऊं,फिर पत्नी की बात मन कर उन्होंने द्वारिका जाने का निश्चय कर लिया,फिर उन्होंने पत्नी के साथ विचार विमर्श किया और कहा घर में कुछ तो है नहीं,आपने परम सखा को भेंट देने लायक कुछ हो तो दो,पत्नी ने कहा ब्राह्मणों के घर चार मुठ्ठी चिउड़े मांग लाई और एक पोटली में बंद कर पति को दे दिये,ब्रह्म देवता उन चीउडों को ले कर द्वारिका के लिए चल दिए,द्वारका पहुंचने पर सुदामा अन्य ब्राह्मणों के साथ पूछते हुए,अपने परममित्र योगेश्वर के महल में पहुंचे,सब लोग उनकी दीन हीन अवस्था देख उन पर हंस रहे थे,उन्होंने द्वारपाल से कहा भैया कृष्ण से कह दो कि उनसे मिलने उनका बचपन का सखा सुदामा आया है,पहले तो द्वारपाल को विश्वाश ही नहीं हुआ,लेकिन बाद में उन्होंने कृष्ण से कहा प्रभु दरवाजे पर एक बहुत ही गरीब ब्राह्मण खड़ा है,उसकी दरिद्रता देख कर द्वारिका की धरती भी आश्चर्य चकित है,वह अपना नाम सुदामा बता रहा है,कह रहा है,मै कृष्ण का बचपन का मित्र हूं। सुदामा का नाम सुनते ही बिहारी का खुशी का ठिकाना न रहा और नंगे पैर ही दौड़ते हुए दरवाजे की तरफ देखते ही उन्होंने सुदाम को अपने आलिंगन में भरलिया बोले मित्र तुम आए तो पर बहुत कष्ट भोगने के बाद,आओ द्वारिका में तुम्हारा स्वागत है,बिहारी ने सुदाम को अपने साथ बिठा लिया,उनको स्नान करा कर रेशमी वस्त्र धारण कराए,रुक्मणि स्वयं सुदामा पर पंखा झूला रही थी,बहुत समय तक बचपन की बाते करते रहे,उसके बाद श्रीकृष्ण मित्र कहो हमारी भाभी कैसी है,मेरे लिए क्या भेजा है,पहले तो सुदामा संकोच करते रहे,अंत में कृष्ण ने चीउड़े़ की पोटली निकल दी,योगेश्वर ने उन तीन मुठ्ठी चीउड़ा के बदले सुदामा को तीनों लोकों की संपति दे डाली।