महावीर स्वामी बहु आयामी व्यक्तित्व के परिचायक थे - अखिलेश चमोला
सबसे तेज प्रधान टाइम्स गबर सिंह भण्डारी
श्रीनगर गढ़वाल। महावीर जयंती के शुभ अवसर पर अखिलेश चन्द्र चमोला वरिष्ठ हिन्दी अध्यापक राजकीय इंटर कॉलेज सुमाड़ी विकास खण्ड खिर्सू जनपद-पौड़ी गढ़वाल ने प्रकाश डालते हुए बताया कि हिन्दू धर्म में जैन धर्म का सबसे महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। जैन धर्म के 24 वे तीर्थंकर के रूप में बड़े गौरव के साथ महावीर स्वामी का नाम लिया जाता है। महावीर स्वामी का जन्म ईसा के 599 वर्ष पूर्व वैशाली गणतंत्र के कुंडलपुर के इच्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को हुआ। मान्यता है कि इनके अवतरण होते ही राज्य की प्रगति चरमोत्कर्ष शिखर पर पहुंच गई। इस कारण से इनका नाम वर्द्धमान रखा। समय के चलते युवावस्था में इनका विवाह यशोदा नाम की सुन्दर स्त्री के साथ हुआ। जिसके साथ इनकी प्रिय दर्शनी नाम की कन्या हुई। बाद में इस लड़की का विवाह जमाली नामक लड़के के साथ हुआ। महावीर स्वामी हमेशा अपने आप में खोते रहते थे। कोई अलौकिक आवाज इन्हें बार बार यही कहा करती थी कि संसार के धन वैभव सब बेकार हैं,इनका उपभोग करके किसी तरह की शान्ति नहीं मिल सकती है। फलस्वरूप इन्होंने राजमहल का वैभव त्याग करके साधना की धूनि रमा ली। अपने जप तप से अपने इन्द्रियों पर नियंत्रण करके महावीर स्वामी के नाम से प्रसिद्ध हुए। महावीर स्वामी ने उद्घगोस किया कि सच्चा साधु सन्त व साधक कहलाने का अधिकारी वहीं है,जो पूरे विश्व को अपना परिवार समझे। महावीर स्वामी ने समाज में फैली बुराईयों को दूर करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। महावीर स्वामी को जैसे ही ज्ञान प्राप्त हुआ,उन्होंने जीवन को सफल बनाने के लिए तीन सिद्धांत प्रतिपादित किए।पहला अहिंसा दूसरा सत्य तीसरा अनेकान्तवाद। किसी भी प्रकार से हिंसा न पहुंचाना,आवश्यकता से अधिक धन संग्रह करना पाप की श्रेणी में माना,मन बचन कर्म से ही सत्य के साथ आत्मसात करना। ब्रह्मचर्य पूर्वक जीवन यापन करना,भोग विलास से दूर रहना। अनेकान्तवाद बहुपक्षीय वास्तविकता के सार को समझना,सभी धर्मों का आदर करना आदि महत्वपूर्ण पहलुओं को जीवन में अपनाने की सीख दी। इस प्रकार महावीर स्वामी सत्य अहिंसा व करुणा की साक्षात प्रतिमूर्ति थे। समाज की सेवा करते हुए 72 वर्ष की अवस्था में बिहार के पावापुरी में कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या को निर्वाण प्राप्त किया,आज भी महावीर स्वामी के उपदेशों की सार्थकता युग युग युगान्तरों तक बनी रहेगी।