नई शिक्षा नीति में अनेक खूबियां
सबसे तेज प्रधान टाइम्स गबर सिंह भण्डारी
देवप्रयाग/श्रीनगर गढ़वाल। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर आयोजित सम्मेलन में वक्ताओं ने नई शिक्षा नीति-2020 की खूबियों पर चर्चा की। वक्ताओं ने कहा कि यह नीति भारत के प्राचीन ज्ञान के संरक्षण और प्रचार-प्रसार में बहुत लाभदायक सिद्ध होगी। तीन दिवसीय कार्यक्रम के उद्घाटन अवसर पर मुख्य अतिथि उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.दिनेशचंद्र शास्त्री ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा के संरक्षण के लिए यह नीति महत्त्वपूर्ण साबित होगी। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान प्रणाली के मूल में संस्कृत ही है। ज्ञान के अंदर विज्ञान भी है। विज्ञान का कार्य प्रकृति के गुप्त रहस्यों को खोलना है। यही ज्ञान की कसौटी है। भारतीय ज्ञान पद्धति में यही सब कुछ समाहित है। पहले भारत में 732000 गुरुकुल थे,जिनमें रहकर भारत और विदेश के अंतेवासी ज्ञान ग्रहण करते थे,परंतु शिक्षा के मैकाले के मॉडल के प्रवेश के बाद यह सब छिन्न-भिन्न हो गया। प्रो.दिनेशचंद्र शास्त्री ने कहा कि केवल शिक्षा नीति में परिवर्त के साथ ही अध्यापकों को भी स्वयं को बदलना होगा। हमें अपनी समझ बढ़ाने के साथ ही स्वयं में करुणा भाव भी जगाना होगा। हम समान चित्त भले ही न हो पाएं,परंतु हम सहचित्त तो बन ही सकते हैं। यही लोकतंत्र का भी सिद्धांत है। सारस्वत अतिथि सेंट स्टीफन कॉलेज,दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के प्रोफेसर पंकज मिश्र ने कहा कि नई शिक्षा नीति-2020 में बहुत सी खामियां भी हैं। इसमें संस्कृत शकुंतला बनकर रह गयी है। आज तक अनेक संस्थानों के बच्चों को विषय का चयन ही समझ में नहीं आ पाया है। उन्होंने कहा कि हम आधुनिक ज्ञान के साथ अपने प्राचीन को जोड़े तो कोई बुरा नहीं है। विशिष्ट अतिथि हेमवती नंदन गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के सह आचार्य प्रो.विश्वेश वाग्मी ने कहा कि नई शिक्षा नीति में पहली बार संस्कृत ज्ञान प्रणाली का प्रयोग हुआ है,यह सुखद बात है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए परिसर निदेशक प्रो.पीवीबी सुब्रह्मण्यम ने कहा कि नई शिक्षा नीति ने हमें अनेक अवसर उपलब्ध करा दिये हैं,उन्हें भुनाना हमारा काम है। नई शिक्षा नीति का सदुपयोग कर हमें अपने पुरातन ज्ञान संरक्षण और प्रचार-प्रसार करना है। इससे पहले अतिथियों ने कार्यक्रम के आरंभ पर दीपप्रज्वलन कर मां सरस्वती को पुष्पांजलि अर्पित की। निदेशक प्रो.सुब्रह्मण्यम ने अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम के संयोजक डॉ.सच्चिदानंद स्नेही ने कार्यक्रम की रूप रेखा प्रस्तुत की। पहले दिन डॉ.वीरेंद्र सिंह बर्त्वाल,संजीव भट्ट और साक्षी कुमारी इत्यादि ने शोध-पत्रों का वाचन किया। कार्यक्रम का संचालन जनार्दन सुवेदी ने किया,धन्यवाद ज्ञापन डॉ.सूर्यमणि भंडारी ने किया।
इस अवसर पर डॉ.शैलेंद्र नारायण कोटियाल,डॉ.सुशील बडोनी,डॉ.गणेश्वर झा,डॉ.अरविंद सिंह गौर,डॉ.पंकज कोटियाल,डॉ.शैलेंद्र प्रसाद उनियाल,डॉ.दीपक कोठारी,डॉ.दीपक पालीवाल,डॉ.सोमेश बहुगुणा,किशोरी राधे,पायल पाठक,डॉ.अनिल कुमार आदि उपस्थित थे।